राजस्थान उच्च न्यायालय ने मुआवजा उपकर पर आरवीयूएनएल की अपील खारिज की

राजस्थान उच्च न्यायालय ने मुआवजा उपकर पर आरवीयूएनएल की अपील खारिज की

राजस्थान उच्च न्यायालय ने मुआवजा उपकर पर आरवीयूएनएल की अपील खारिज की
Modified Date: May 25, 2025 / 10:02 pm IST
Published Date: May 25, 2025 10:02 pm IST

जयपुर, 25 मई (भाषा) राजस्थान उच्च न्यायालय ने मुआवजा उपकर के मुद्दे पर अदाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के साथ विवाद में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरवीयूएनएल) की अपील खारिज कर दी है।

न्यायमूर्ति अवनीश झिंगन और न्यायमूर्ति भुवन गोयल की खंडपीठ ने कहा कि आरवीयूएनएल, कोयला खनन के लिए स्वच्छ ऊर्जा उपकर के तहत अदाणी के स्वामित्व वाली संयुक्त उद्यम कंपनी एईएल द्वारा भुगतान की गई राशि की प्रतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी है।

केंद्र सरकार ने आरवीयूएनएल को कोयला ब्लॉक आवंटित किए थे, जिसने इन कोयला ब्लॉक के विकास और संचालन, निगम के ताप बिजलीघरों को कोयले के परिवहन और वितरण के लिए एक संयुक्त उद्यम कंपनी बनाने के लिए निविदाएं आमंत्रित की थीं। सफल बोलीदाता होने के नाते अदाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) ने संयुक्त उद्यम कंपनी बनाई और आरवीयूएनएल के साथ 30 साल के लिए कोयला खनन और विकास समझौता (सीएमडीए) किया।

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वर्ष 2010 में केंद्र सरकार ने वित्त अधिनियम, 2010 की दसवीं अनुसूची में उल्लिखित वस्तुओं पर स्वच्छ ऊर्जा उपकर (सीईसी) लगाया था जिसमें एक उत्पाद कोयला भी था।

सीएमडीए के अनुसार आरवीयूएनएल सीईसी का भुगतान कर रहा था लेकिन वर्ष 2017 में माल एवं सेवा कर अधिनियम (जीएसटी) लागू हो गया। जीएसटी के कार्यान्वयन से होने वाले राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए राज्यों को माल एवं सेवा कर (राज्यों को मुआवजा) अधिनियम, 2017 भी लागू किया गया।

वित्त अधिनियम, 2010 द्वारा लगाया गया सीईसी, कराधान संशोधन अधिनियम, 2017 द्वारा निरस्त कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 2017 के अधिनियम के तहत भुगतान किए गए उपकर की प्रतिपूर्ति के मुद्दे पर दोनों कंपनियों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया जिसे ‘मुआवजा उपकर’ के रूप में जाना जाता है।

इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा गया था। अदाणी कंपनी के इस तर्क को मानते हुए कि आरवीयूएनएल को पूरे कोयला खनन पर उन्हें मुआवजा उपकर की प्रतिपूर्ति करनी चाहिए, ‘आर्बिट्रेटर’ ने दावे को स्वीकार कर लिया। मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत आरवीयूएनएल द्वारा दायर आपत्तियों को वाणिज्यिक अदालत ने खारिज कर दिया। इसके बाद, आरवीयूएनएल ने उच्च न्यायालय का रुख किया।

आरवीयूएनएल की अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा, ‘‘भाषा स्पष्ट है कि भविष्य में लागू होने वाले सेवा कर और अन्य करों का भुगतान निगम की ओर से कंपनी द्वारा किया जाना है और वे प्रतिपूर्ति योग्य होंगे।’’

पीठ ने कहा कि ‘आर्बिट्रेटर’ का निष्कर्ष सीएमडीए की शर्तों के उचित निर्माण पर आधारित है और प्रशंसनीय है।

भाषा सं पृथ्वी आशीष

आशीष


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