आरडी बर्मन की 86वीं जयंती : पूर्वोत्तर के कलाकार ने हिंदी सिनेमा संगीत को दी नयी पहचान

आरडी बर्मन की 86वीं जयंती : पूर्वोत्तर के कलाकार ने हिंदी सिनेमा संगीत को दी नयी पहचान

आरडी बर्मन की 86वीं जयंती : पूर्वोत्तर के कलाकार ने हिंदी सिनेमा संगीत को दी नयी पहचान
Modified Date: June 27, 2025 / 09:18 pm IST
Published Date: June 27, 2025 9:18 pm IST

नयी दिल्ली, 27 जून (भाषा) हिंदी सिनेमा के संगीत को एक नयी पहचान दिलाने वाले आरडी बर्मन की शुक्रवार को 86वीं जयंती मनाई गई।

उनकी पहली हिट फिल्म 1966 की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ थी और आखिरी फिल्म ‘1942: ए लव स्टोरी’ थी। ये दोनों फिल्में उनके संगीत करियर के 28 साल के कालखंड को बताने के लिए काफी है। इस बीच उन्होंने ‘पड़ोसन’, ‘कटी पतंग’, ‘शोले’ और ‘इजाजत’ जैसे फिल्मों में अलग-अलग मूड और अलग-अलग शैलियों में धुनों को पीरो को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।

कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में जन्मे आरडी बर्मन, एस डी बर्मन और मीरा देव बर्मन की इकलौती संतान थे, जो त्रिपुरा के शाही परिवार से थे। उन्हें अपने पिता और भारत के महानतम संगीतकारों में से एक एसडी बर्मन व अन्य गुरुओं से उचित संगीत प्रशिक्षण मिला।

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उन्होंने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद और समता प्रसाद से तबला की शिक्षा ली। बर्मन को हारमोनिया बजाना बहुत पसंद था।

कहा जाता है कि युवा राहुल देव बर्मन को पिता ने कलकत्ता पढ़ने भेजा था लेकिन वह पढ़ाई में अच्छे नहीं थे और उन्होंने 17 साल की उम्र में एक धुन तैयार की थी। उनके पिता ने इसे ‘फ़ंटूश’ में इस्तेमाल किया था। यह गाना था ‘ऐ मेरी टोपी पलटके आ’।

अनिरुद्ध भट्टाचार्य और बालाजी विट्ठल द्वारा लिखित किताब ‘आरडी बर्मन: द मैन, द म्यूजिक’ के अनुसार, ‘सर जो तेरा चकराए’ गीत की धुन भी तब उन्होंने तैयार की थी जब वह बच्चे थे। उनके पिता ने इसे गुरु दत्त की ‘प्यासा’ (1957) के साउंडट्रैक में शामिल किया था।

आरडी बर्मन शुरुआती करियर में सफल नहीं थे, क्योंकि फिल्में ‘छोटे नवाब’, ‘भूत बंगला’, ‘तीसरा कौन’ और ‘पति पत्नी’ में दिया गया उनका संगीत कमाल नहीं दिखा सका और चर्चा होने लगे कि उनमें पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की क्षमता नहीं है।

लेकिन शम्मी कपूर और आशा पारेख अभिनीत ‘तीसरी मंजिल’ ने न केवल लोगों के उनके प्रति नजरिए को बदला, बल्कि हिंदी सिनेमा में संगीत रचना के तरीके को भी बदल दिया।

‘ओ मेरे सोना रे सोना’, ‘ओ हसीना जुल्फो वाली’, ‘आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा’ और फिल्म के कई अन्य गानों को बाद की पीढ़ी ने विज्ञापनों, रीमिक्स और रील में बार-बार इस्तेमाल किया जो संकेत है कि उनकी रचना कालजयी हैं। ये आज भी युवाओं को उतना ही लुभाती हैं जितना 40 साल पहले युवाओं के दिलों में तरंगे पैदा कर देती थीं।

भाषा धीरज पवनेश

पवनेश


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