Age of Consent For Sex: सहमति से सेक्स करने की उम्र 18 से घटाकर 16 साल होगी! न्यायमित्र ने की न्यायालय से सिफारिश

Age of consent for sex: संबंध बनाने की वैध सहमति उम्र 18 से घटाकर 16 की जाए: न्यायमित्र ने न्यायालय से सिफारिश की

Age of Consent For Sex: सहमति से सेक्स करने की उम्र 18 से घटाकर 16 साल होगी! न्यायमित्र ने की न्यायालय से सिफारिश

The age of consent for sex, image source: South China Morning Post

Modified Date: July 24, 2025 / 06:23 pm IST
Published Date: July 24, 2025 5:45 pm IST
HIGHLIGHTS
  • यौन गतिविधियों को पूर्ण अपराधीकरण करने को चुनौती
  • वर्तमान में किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए प्रेम संबंध अपराध

नयी दिल्ली: Age of consent for sex, न्यायमित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने सहमति से शारीरिक संबंध बनाने के लिये वैधानिक उम्र 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने की शीर्ष अदालत से सिफारिश की है। चर्चित ‘निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ’ मामले में शीर्ष अदालत की सहायता करने वाली न्यायमित्र जयसिंह ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) 2012 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोर एवं किशोरियों से जुड़ी यौन गतिविधियों को पूर्ण अपराधीकरण करने को चुनौती देते हुए अपने लिखित प्रस्तुतियां दी हैं।

उन्होंने दलील दी कि वर्तमान कानून किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए प्रेम संबंधों को अपराध मानता है और उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। जयसिंह ने कहा कि कानूनी ढांचा किशोरों के बीच सहमति से बने संबंधों को गलत तरीके से दुर्व्यवहार के बराबर मानता है, तथा उनकी स्वायत्तता, परिपक्वता और सहमति देने की क्षमता को नजरअंदाज करता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘सहमति की आयु 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष करने को उचित ठहराने के लिए कोई तर्कसंगत कारण या अकाट्य आंकड़ा नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 द्वारा इसे बढ़ाए जाने से पहले 70 वर्षों से अधिक समय तक (यौन सहमति की) आयु सीमा 16 वर्ष ही रही थी।

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बिना बहस के की गई थी संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र में वृद्धि

जयसिंह ने कहा कि (शारीरिक) संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र में वृद्धि बिना किसी बहस के की गई थी, और यह न्यायमूर्ति वर्मा समिति की सिफारिश के विरुद्ध है। न्यायमित्र ने कहा कि आजकल किशोर समय से पहले ही यौवन प्राप्त कर लेते हैं और अपनी पसंद के रोमांटिक और यौन संबंध बनाने में सक्षम होते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों सहित वैज्ञानिक और सामाजिक आंकड़े बताते हैं कि किशोरों में यौन गतिविधियां असामान्य नहीं हैं।

जयसिंह ने 2017 और 2021 के बीच 16-18 वर्ष की आयु के नाबालिगों से जुड़े पॉक्सो कानून के तहत अभियोजन में 180 प्रतिशत की वृद्धि का हवाला दिया। उन्होंने कहा, ‘‘अंतरजातीय या अंतरधार्मिक संबंधों से जुड़े मामलों में अधिकतर शिकायतें अक्सर लड़की की इच्छा के विरुद्ध माता-पिता द्वारा दर्ज कराई जाती हैं।

न्यायमित्र ने चेतावनी देते हुए कहा कि सहमति से यौन संबंध को अपराध घोषित करने से ‘‘युवा जोड़ों को खुले संवाद और शिक्षा को प्रोत्साहित करने के बजाय छिपने, शादी करने या कानूनी परेशानी में पड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है।’’

16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के बीच सहमति से किए गए यौन कृत्यों को अभियोजन से छूट

इस समस्या के समाधान के लिए, उन्होंने न्यायालय से कानून में ‘‘आयु के निकट’’ अपवाद को शामिल करने का आग्रह किया, जो 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के बीच सहमति से किए गए यौन कृत्यों को पॉक्सो और आईपीसी के तहत अभियोजन से छूट देगा।

उन्होंने कहा, ‘‘किशोरों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करना मनमाना, असंवैधानिक और बच्चों के सर्वोत्तम हितों के विरुद्ध है।’’ वरिष्ठ अधिवक्ता ने अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और भारतीय न्यायशास्त्र का हवाला देते हुए तर्क दिया कि कानूनी क्षमता सख्ती से उम्र-बाधित नहीं है।

जयसिंह ने बंबई, मद्रास और मेघालय सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों के रुझानों की ओर भी इशारा किया गया है, जहां न्यायाधीशों ने पॉक्सो के तहत किशोर लड़कों के खिलाफ स्वतः मुकदमा चलाने पर असहमति व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि इन न्यायालयों ने रेखांकित किया कि नाबालिगों से संबंधित सभी यौन कृत्य बलपूर्वक नहीं होते हैं, तथा कानून को दुर्व्यवहार और सहमति से बने संबंधों के बीच अंतर करना चाहिए।

जयसिंह ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए यौन संबंध को दुर्व्यवहार नहीं माना जाना चाहिए और इसे पॉक्सो तथा दुष्कर्म कानूनों के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। उन्होंने पॉक्सो की धारा 19 के तहत अनिवार्य अभ्यावेदन दायित्वों की समीक्षा का आह्वान किया, जो किशोरों को सुरक्षित चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने से रोकता है।

जयसिंह ने अपनी लिखित रिपोर्ट में कहा, ‘‘यौन स्वायत्तता मानव गरिमा का हिस्सा है, और किशोरों को अपने शरीर के बारे में विकल्प चुनने की क्षमता से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन है।’’

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लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com