राव के कार्यकाल में सुधार ‘गुपचुप’ रूप से किये गए: मोंटेक सिंह अहलूवालिया |

राव के कार्यकाल में सुधार ‘गुपचुप’ रूप से किये गए: मोंटेक सिंह अहलूवालिया

राव के कार्यकाल में सुधार ‘गुपचुप’ रूप से किये गए: मोंटेक सिंह अहलूवालिया

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Modified Date: June 11, 2025 / 06:09 PM IST
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Published Date: June 11, 2025 6:09 pm IST

नयी दिल्ली, 11 जून (भाषा) योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में 1991 में किए गए आर्थिक सुधारों की विशेषता स्पष्टतावादी दृष्टिकोण अपनाने की तुलना में ‘गुपचुप सुधार’ करना अधिक थी। उन्होंने कहा कि न तो राव और न ही तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ‘बड़े धमाकेदार’ बदलाव करने के समर्थक थे।

लेखक डेविड सी एंगरमैन की पुस्तक ‘एपोस्टल्स ऑफ डेवलपमेंट: सिक्स इकोनॉमिस्ट्स एंड द वर्ल्ड दे मेड’ के विमोचन के अवसर पर मंगलवार को अहलूवालिया ने राव और मनमोहन दोनों को ‘क्रमिक’ दृष्टिकोण अपनाने वालों की श्रेणी में रखा, जैसा रुख उन्होंने खुद अपनाया था।

हालांकि, उन्होंने दो प्रकार के क्रमिक बदलाव के बीच अंतर किया जिसे उन्होंने ‘क्रमिकता’ और ‘गुपचुप सुधार’ का नाम दिया।

अहलूवालिया ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि मैंने ‘गुपचुप सुधार’ वाक्यांश गढ़ा है या नहीं, लेकिन मैंने निश्चित रूप से इसका इस्तेमाल किया है और शायद सबसे पहले। मैंने इसका इस्तेमाल सुधारों को लाने के लिए राव द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण का वर्णन करने के लिए किया। मनमोहन सिंह इसके निर्माता थे, उन्हें वास्तव में पता था कि क्या करना है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन, जैसा कि वे खुद अक्सर कहते थे, वे प्रधानमंत्री के समर्थन के बिना ऐसा नहीं कर सकते थे। न तो राव और न ही मनमोहन सिंह बड़े और धमाकेदार सुधारों में बहुत विश्वास करते थे। वे दोनों इस अर्थ में, क्रमिकतावादी थे।’’

अर्थशास्त्री अहलूवालिया (81) 1991 के सुधारों को लागू करने वाली टीम के एक प्रमुख सदस्य थे। उन्होंने अपनी बात समझाने के लिए शिपिंग उद्योग से जुड़े सादृश्य का उपयोग किया।

उन्होंने कहा कि उनके एक मित्र, जो शिपिंग उद्योग से जुड़े थे, ने एक बार कहा था: एक छोटी नाव के घूमने का घेरा बड़ी नाव की तुलना में बहुत छोटा होता है। उन्होंने कहा कि यह स्वीकार करना होगा कि यदि आप एक बहुत बड़े जहाज को चला रहे हैं, तो उसे मुड़ने में समय लगेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत में ‘गुपचुप सुधार’ का वास्तव में मतलब यह था कि हम दिशा बदलने जा रहे हैं, लेकिन हम खुले तौर पर ऐसा नहीं कहने जा रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि इसका मतलब अक्सर यह होता है कि सुधार की घोषणाएं स्पष्ट समयसीमा या प्रतिबद्धताओं के बिना की जाती हैं, जो कि अधिक पूर्वानुमानित और योजनाबद्ध मार्ग के विपरीत हैं।

भाषा संतोष नरेश

नरेश

 

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