सशस्त्र बल कर्मियों के बच्चों के लिए सीट आरक्षण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई को सहमत न्यायालय

सशस्त्र बल कर्मियों के बच्चों के लिए सीट आरक्षण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई को सहमत न्यायालय

सशस्त्र बल कर्मियों के बच्चों के लिए सीट आरक्षण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई को सहमत न्यायालय
Modified Date: March 28, 2025 / 08:23 pm IST
Published Date: March 28, 2025 8:23 pm IST

नयी दिल्ली, 28 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका की सुनवाई के लिए शुक्रवार को सहमति जताई, जिसमें पूर्व सैनिकों और सशस्त्र बलों के कर्मियों के बच्चों के लिए मेडिकल पाठ्यक्रमों की एक प्रतिशत सीट पर आरक्षण बरकरार रखने के आदेश को चुनौती दी गई है।

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, ‘अंतरिम आदेश के तहत, उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिकाओं के खारिज होने से पहले की स्थिति अगले आदेश तक जारी रहेगी।’

पीठ ने नोटिस जारी कर तेलंगाना, केंद्र सरकार और अन्य पक्षों से चार सप्ताह के भीतर याचिका पर जवाब देने को कहा है।

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याचिकाकर्ताओं ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी है कि एक प्रतिशत सीट के आरक्षण का लाभ केवल सेना, नौसेना और वायुसेना के कर्मियों के बच्चों तक ही सीमित है तथा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) कर्मियों के बच्चों को इससे बाहर रखा गया है।

उच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश/तेलंगाना गैर-सहायता प्राप्त गैर-अल्पसंख्यक व्यावसायिक संस्थानों (स्नातक चिकित्सा व दंत चिकित्सा व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के विनियमन) नियम, 2007 और तेलंगाना चिकित्सा एवं दंत चिकित्सा महाविद्यालय प्रवेश (एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश) नियम, 2017 के प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया था।

उच्च न्यायालय में एक याचिकाकर्ता ने याचिका दायर की थी, जिसके पिता ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में सेवाएं दी थीं।

याचिकाकर्ता ने 2024 में राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) दी थी।

उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में कहा गया था कि बीएसएफ, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और सशस्त्र सीमा बल, सीएपीएफ का हिस्सा हैं।

याचिका में कहा गया है कि सेना, नौसेना और वायुसेना के कर्मियों के बच्चों तक एक प्रतिशत सीट के आरक्षण का लाभ सीमित करने वाले नियम ‘भेदभावपूर्ण और कानून की दृष्टि से गलत’ हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘इस मामले में दिलचस्प पहलू यह है कि क्या याचिकाकर्ता/बीएसएफ कर्मियों के बच्चे एक ही नाव पर सवार हैं। दूसरे शब्दों में, क्या सीएपीएफ कर्मियों के बच्चों को सेना, नौसेना और वायुसेना कर्मियों के बच्चों के समान माना जा सकता है।’

उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह सच है कि सेना, नौसेना और वायुसेना के कर्मी अलग-अलग अधिनियमों/नियमों के अंतर्गत आते हैं और उनकी सेवा शर्तें सीएपीएफ कर्मियों की सेवा शर्तों से भिन्न हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि तेलंगाना राज्य में कुछ पाठ्यक्रमों में सरकार सेना, नौसेना और वायुसेना कर्मियों के बच्चों के अलावा सीएपीएफ कर्मियों के बच्चों को भी आरक्षण प्रदान करती है।

हालांकि, अदालत ने यह भी कहा, ‘केवल इसलिए कि कुछ पाठ्यक्रमों में दोनों श्रेणियों के लिए आरक्षण लागू किया गया है, न तो दोनों के बीच समानता स्थापित होती है और न ही वर्तमान याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कोई लागू करने योग्य अधिकार निर्धारित होता है।’

उच्च न्यायालय ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा था कि ये नियम असंवैधानिक नहीं हैं और न ही संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता के प्रावधान का उल्लंघन करते हैं।

भाषा

जोहेब सुरेश

सुरेश


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