नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने क्रिप्टोकरेंसी पर विनियामक ढांचा तैयार करने संबंधी याचिका पर विचार करने से बुधवार को इनकार कर दिया और कहा कि वह ‘‘कानून नहीं बना सकता’’।
क्रिप्टोकरेंसी एक डिजिटल या आभासी मुद्रा है, जो क्रिप्टोग्राफी द्वारा सुरक्षित है, जिससे इसे नकली बनाना या दोहरा खर्च करना लगभग असंभव है।
यह याचिका न्यायमूर्ति बी आर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने दावा किया कि क्रिप्टोकरेंसी को लेकर देश भर में कई शिकायतें दर्ज की गई हैं।
वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मुद्दे पर विनियामक ढांचे के लिए केंद्र और अन्य को निर्देश देने की गुहार लगा रहे हैं, क्योंकि इसे विनियमित करने के लिए कोई कानून नहीं है।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘यह नीति निर्माताओं के अधिकार क्षेत्र में है। हम ऐसा कोई निर्देश कैसे जारी कर सकते हैं? हम कानून नहीं बना सकते।’’
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मुद्दे पर भारत सरकार के समक्ष अपना अभ्यावेदन दे सकते हैं।
वकील ने दलील दी कि कई याचिकाकर्ताओं ने विभिन्न पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन इस मुद्दे पर कोई नियामक नीति नहीं थी।
पीठ ने कहा, ‘‘याचिका में की गई प्रार्थनाएं विधायिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हैं। मामले को देखते हुए, हम याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं।’’
पीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता चाहें तो वे उचित प्राधिकारी के समक्ष अपना अभ्यावेदन दे सकते हैं, जिस पर विचार किया जाएगा।
केंद्र ने पिछले साल जनवरी में शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि क्रिप्टोकरेंसी को विनियमित करने और संबंधित अपराधों की प्रभावी जांच करने के लिए तंत्र पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
शीर्ष अदालत विभिन्न राज्यों में कथित क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी के लिए दर्ज मामलों में एक आरोपी की जमानत याचिका पर अलग से सुनवाई कर रही थी।
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