उपासना स्थल कानून पर केंद्र के जवाब दाखिल करने के अधिकार को बंद करने का आग्रह
उपासना स्थल कानून पर केंद्र के जवाब दाखिल करने के अधिकार को बंद करने का आग्रह
नयी दिल्ली, 21 जनवरी (भाषा) मथुरा शाही मस्जिद ईदगाह समिति ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर उपासना स्थल अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब दाखिल करने के केंद्र के अधिकार को बंद करने का अनुरोध किया है।
समिति ने अपनी याचिका में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र पर मामले में जवाब देने में जानबूझकर देरी करने का आरोप लगाया है। शीर्ष अदालत ने मार्च 2021 में केंद्र को नोटिस जारी किया था। हालांकि, केंद्र सरकार ने कई अवसर दिए जाने के बावजूद अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 17 फरवरी को होने वाली है और यह न्याय के हित में होगा यदि केंद्र का जवाब दाखिल करने का अधिकार बंद कर दिया जाए।
एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, शीर्ष अदालत ने पिछले साल 12 दिसंबर को देश की अदालतों को धार्मिक स्थलों, विशेष रूप से मस्जिदों और दरगाहों पर दावों के संबंध में लंबित मामलों में कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने और अगले निर्देश तक नए मुकदमों पर विचार करने से रोक दिया था।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ के निर्देश पर विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही रोक दी गई, जिसमें वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक स्वरूप का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण कराने का अनुरोध किया गया था।
विशेष पीठ छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उपासना स्थल अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी गई है। इनमें वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल है।
उपासना स्थल कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन देश में जो भी धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में थे, उसी स्वरूप में रहेंगे। हालांकि, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया था।
भाषा आशीष माधव
माधव

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