पुनर्वास के लिए ‘आउट-बोर्ड’ कैडेटों को सुविधाएं प्रदान करने की योजना की उम्मीद : न्यायालय
पुनर्वास के लिए ‘आउट-बोर्ड’ कैडेटों को सुविधाएं प्रदान करने की योजना की उम्मीद : न्यायालय
नयी दिल्ली, सात अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को राय व्यक्त की कि सैन्य प्रशिक्षण के दौरान बाहर (आउट-बोर्ड) कर दिये गये प्रशिक्षुओं के लिए सुविधाओं और सहूलियतों की एक योजना शुरू की जानी चाहिए, ताकि उनका चिकित्सकीय रूप से और अन्य तरीकों से पुनर्वास किया जा सके।
‘आउट बोर्ड’ कैडेट वे प्रशिक्षु होते हैं जिन्हें प्रशिक्षण के दौरान किसी कारण से अकादमी से बाहर कर दिया जाता है।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने यह टिप्पणी उन कैडेटों के समक्ष आ रही कठिनाइयों पर स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई के दौरान की, जिन्हें प्रशिक्षण कार्यक्रमों के दौरान दिव्यांगता के कारण सैन्य संस्थानों से चिकित्सा आधार पर मुक्त कर दिया गया था।
इस मामले में न्यायालय की सहायता कर रहीं (न्यायमित्र) वरिष्ठ अधिवक्ता रेखा पल्ली ने अपनी लिखित दलीलें पीठ के समक्ष पेश कीं, जिनमें ‘आउट-बोर्ड’ कैडेटों के लिए चिकित्सा सहायता, वित्तीय सहायता, शैक्षिक और पुनर्वास विकल्पों तथा बीमा कवरेज के संबंध में कुछ सुझाव दिए गए।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि इन सुझावों पर सेवा मुख्यालय के विशेषज्ञों द्वारा विचार किया जा सकता है और उसके बाद रक्षा मंत्रालय को सिफारिशें की जा सकती हैं।
भाटी ने कहा कि इसके बाद रक्षा और वित्त मंत्रालय संयुक्त रूप से सिफारिशों पर विचार कर सकते हैं।
पीठ ने कहा, “इन परिस्थितियों में, हम एएसजी से अनुरोध करते हैं कि वह इस लिखित प्रस्तुतीकरण की एक प्रति सूचना सेवा मुख्यालय में संबंधित प्राधिकारियों को उपलब्ध कराएं, जो तदनुसार उक्त कार्य को यथाशीघ्र तथा सर्वाधिक उपयुक्त तरीके से पूरा कर सकें…।”
पीठ को यह भी बताया गया कि आउट-बोर्ड कैडेटों की संख्या लगभग 699 है।
पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, यह उम्मीद की जाती है कि इन आउट-बोर्ड अधिकारी कैडेटों को सुविधाओं और सहूलियतों की एक योजना प्रदान की जाएगी, ताकि वे अपने भविष्य में चिकित्सा और अन्य प्रकार से पुनर्वासित हो सकें।’’
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि ऐसे कैडेटों को पूर्व सैनिक नहीं माना जा सकता, क्योंकि उन्हें औपचारिक रूप से रक्षा बलों में शामिल नहीं किया गया था।
न्यायालय ने कहा, “देखिए, उन्हें औपचारिक रूप से रक्षा बलों में शामिल नहीं किया गया है। वे अधर में हैं। यदि उन्हें अभी तक कमीशन नहीं मिला है, तो उन्हें पूर्व सैनिक नहीं माना जा सकता।”
पीठ ने कहा कि इन आउट-बोर्ड कैडेटों के लिए एक कार्यक्रम या योजना हो सकती है, भले ही उनके साथ पूर्व सैनिकों के समान व्यवहार नहीं किया जाता।
न्यायमित्र ने पीठ को बताया कि सरकार को पहले ऐसे कैडेटों को मान्यता देने और उसके बाद उनके लिए आर्थिक तथा स्वास्थ्य सुविधाओं सहित अन्य प्रकार से लाभ के लिए योजना बनाने की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा कि संबंधित प्राधिकारी सबसे पहले अधिकारियों के प्रशिक्षण की पूरी योजना में प्रशिक्षण के दौरान दुर्भाग्यपूर्ण चोटों के कारण संबंधित सेवाओं में अधिकारी के रूप में नियुक्त नहीं किये गए आउट-बोर्ड कैडेटों की स्थिति और पद को मान्यता देकर यह कार्य कर सकते हैं।
न्यायालय ने मामले में सुनवाई की अगली तारीख 18 नवंबर तय की है।
भाषा
प्रशांत सुरेश
सुरेश

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