यूएपीए के तहत मामलों में मोहलत देने से पहले विशेष अदालत को विवेक का इस्तेमाल करना चाहिये: न्यायालय

यूएपीए के तहत मामलों में मोहलत देने से पहले विशेष अदालत को विवेक का इस्तेमाल करना चाहिये: न्यायालय

यूएपीए के तहत मामलों में मोहलत देने से पहले विशेष अदालत को विवेक का इस्तेमाल करना चाहिये: न्यायालय
Modified Date: February 24, 2023 / 10:32 pm IST
Published Date: February 24, 2023 10:32 pm IST

नयी दिल्ली, 24 फरवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि आंतकवाद-रोधी कानून के तहत दर्ज एक मामले में तहकीकात पूरी करने के लिए जांच एजेंसी को अतिरिक्त मोहलत देने से पहले विशेष अदालत को उचित समय निर्धारित करने तथा एक आरोपी की हिरासत अवधि 90 दिनों तक बढ़ाने को लेकर विवेक का इस्तेमाल करना चाहिये।

उच्च न्यायालय ने कहा कि जांच जारी रखने के लिए हिरासत अवधि बढ़ाने के दौरान सरकारी वकील की रिपोर्ट आरोपी को प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है।

उसने कहा कि हालांकि, ‘‘आरोपी एक मूक दर्शक नहीं हो सकता’’ और विशेष अदालत को जांच की प्रगति के बारे में रिपोर्ट की जांच करते समय और जांच के लिए हिरासत में लेने के कारणों पर विचार करने की आवश्यकता होगी।

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न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की एक पीठ ने कहा, ‘‘आंतकवाद-रोधी कानून के तहत दर्ज एक मामले में तहकीकात पूरी करने के लिए जांच एजेंसी को अतिरिक्त मोहलत देने से पहले एक विशेष अदालत को उचित समय निर्धारित करने तथा एक आरोपी की हिरासत अवधि 90 दिनों तक बढ़ाने को लेकर विवेक का इस्तेमाल करना चाहिये।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि विशेष अदालत को इस बात पर गौर करना होगा कि प्रथम दृष्टया गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध का मामला बनता है।

इसने कहा कि इस संबंध में किसी भी कारण को आदेश में शामिल करने की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि इससे की गई जांच का खुलासा होगा।

पीठ ने अपने 81 पृष्ठों के फैसले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 43डी(2)(बी) के तहत हिरासत की अवधि को 90 दिनों से अधिक बढ़ाने की वैधता के संबंध में 10 अपीलों में उठाए गए आम मुद्दों पर विचार किया।

इन मामलों में आरोपी की हिरासत और जांच की अवधि 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन कर दी गई थी।

उच्च न्यायालय ने आरोपियों जीशान कमर, मिझा सिद्दीकी और शिफा हारिस की अपील सहित कई अपील को खारिज कर दिया, जिन्होंने जांच और हिरासत के लिए समय बढ़ाने के विशेष अदालत के आदेशों को चुनौती दी थी, जिसके कारण उन्हें लगातार हिरासत में रखा गया।

हालांकि, अदालत ने आरोपियों मुशाब अनवर और डॉ. रहीस रशीद को जमानत दे दी और निर्देश दिया कि उन्हें एक लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने पर जमानत पर रिहा किया जाए।

उच्च न्यायालय को सूचित किया गया कि आरोपी मोहम्मद मनन डार को निचली अदालत से पहले ही जमानत मिल चुकी है।

भाषा

देवेंद्र दिलीप

दिलीप


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