राज्यों को दुर्लभतम मामलों में ‘ज़मीन के बदले ज़मीन’ की नीतियां बनानी चाहिए: शीर्ष अदालत

राज्यों को दुर्लभतम मामलों में ‘ज़मीन के बदले ज़मीन’ की नीतियां बनानी चाहिए: शीर्ष अदालत

राज्यों को दुर्लभतम मामलों में ‘ज़मीन के बदले ज़मीन’ की नीतियां बनानी चाहिए:  शीर्ष अदालत
Modified Date: July 15, 2025 / 10:42 pm IST
Published Date: July 15, 2025 10:42 pm IST

नयी दिल्ली, 15 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राज्यों को उनकी ‘‘जमीन के बदले जमीन’’ संबंधी नीतियों के प्रति आगाह करते हुए कहा है कि ऐसी योजनाएं ‘‘दुर्लभतम मामलों’’ में ही लागू की जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने आगे कहा कि राज्य सरकार के भूमि अधिग्रहण का विरोध करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार से वंचित करने की दलील ‘टिकने वाली’ नहीं है।

पीठ ने हरियाणा सरकार की ओर से दायर मुकदमे को सभी राज्यों के लिए ‘आँखें खोलने वाला’ बताया।

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पीठ हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के संपदा अधिकारी और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2016 के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें विस्थापितों के पक्ष में निचली अदालत के आदेशों को बरकरार रखा गया था।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने 14 जुलाई को 88 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा, ‘‘हमने स्पष्ट कर दिया है कि भूमि अधिग्रहण के मामलों में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका के अधिकार से वंचित किये जाने का तर्क टिकने योग्य नहीं है।’’

उच्च न्यायालय ने उन विस्थापित भूस्वामियों को 2016 की पुनर्वास नीति के तहत लाभ पाने का हकदार माना था, जिनकी भूमि हरियाणा के अधिकारियों ने सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अधिगृहीत की थी, न कि 1992 की अधिक रियायती योजना के तहत।

यह फैसला हरियाणा की भूमि अधिग्रहण संबंधी उस ‘‘बेहद असामान्य नीति’’ की आलोचना करता है, जिसके तहत यदि सरकार सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण करती है, तो वह विस्थापितों को वैकल्पिक भूमि के भूखंड प्रदान करती है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि केवल दुर्लभतम मामलों में ही सरकार विस्थापित व्यक्तियों को मुआवज़ा देने के अलावा उनके पुनर्वास के लिए कोई योजना शुरू करने पर विचार कर सकती है।

पीठ ने कहा, ‘‘कभी-कभी राज्य सरकार अपनी प्रजा को खुश करने के लिए अनावश्यक योजनाएं पेश करती है और अंततः मुश्किलों में फंस जाती है। इससे अनावश्यक रूप से कई मुकदमेबाज़ी को बढ़ावा मिलता है। इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण यह है।’’

पीठ ने कहा कि यह ज़रूरी नहीं है कि सभी मामलों में मुआवज़े के अलावा, संपत्ति मालिकों का पुनर्वास भी ज़रूरी हो।

पीठ ने कहा, ‘‘सरकार द्वारा उठाए गए किसी भी लाभकारी कदम को केवल भूस्वामियों के प्रति निष्पक्षता और समता के मानवीय दृष्टिकोण से निर्देशित किया जाना चाहिए।’’

यह विवाद 1990 के दशक की शुरुआत में हरियाणा सरकार द्वारा अधिगृहीत भूमि से जुड़ा है।

यद्यपि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवज़ा दिया गया था, इसके बावजूद एक समानांतर राज्य नीति के तहत विस्थापितों को पुनर्वास भूखंड देने का भी वादा किया गया था।

भाषा सुरेश दिलीप

दिलीप


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