उच्चतम न्यायालय ने सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों को बहुत कम पेंशन मिलने पर जताई चिंता |

उच्चतम न्यायालय ने सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों को बहुत कम पेंशन मिलने पर जताई चिंता

उच्चतम न्यायालय ने सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों को बहुत कम पेंशन मिलने पर जताई चिंता

:   Modified Date:  February 26, 2024 / 08:59 PM IST, Published Date : February 26, 2024/8:59 pm IST

नयी दिल्ली, 26 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों को बहुत कम पेंशन मिलने पर सोमवार को चिंता जताई और केंद्र से इस मुद्दे का ‘न्यायसंगत समाधान’ तलाशने को कहा।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की सहायता मांगी। इससे पहले, शीर्ष अदालत को बताया गया कि सेवानिवृत्त जिला न्यायिक अधिकारियों को 19,000-20,000 रुपये की पेंशन मिल रही है।

पीठ ने कहा, ‘‘सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को लंबी सेवा के बाद 19,000-20,000 रुपये की पेंशन मिल रही है, उनका गुजारा कैसे होगा? यह ऐसा पद है जहां आप कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हैं। आप अचानक वकालत के पेशे में नहीं जा सकते और 61-62 साल की उम्र में उच्च न्यायालय जाकर वकालत नहीं शुरू कर सकते हैं।’’

विषय में न्याय मित्र नियुक्त किये गए वकील के. परमेश्वर ने सुनवाई के दौरान कहा कि न्यायाधीशों की न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त पेंशन आवश्यक है।

देश भर में न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों में एकरूपता बनाए रखने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, शीर्ष अदालत ने इससे पहले न्यायिक अधिकारियों के लिए दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग के अनुरूप वेतन, पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों से जुड़े आदेशों के क्रियान्वयन की निगरानी के वास्ते दो न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि कानून के शासन में आम लोगों के विश्वास को बनाए रखने के लिए आवश्यक न्यायिक स्वतंत्रता को तभी सुनिश्चित किया जा सकता है जब न्यायाधीश वित्तीय गरिमा की भावना के साथ अपना जीवन-यापन कर सकते हों।

न्यायालय ने कहा था कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि अन्य सेवाओं के अधिकारियों ने एक जनवरी 2016 तक अपनी सेवा शर्तों में संशोधन का लाभ उठाया है, लेकिन न्यायिक अधिकारियों से संबंधित इसी तरह के मुद्दे इसके आठ साल बाद अब भी अंतिम निर्णय का इंतजार कर रहे हैं।

भाषा सुभाष माधव

माधव

 

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