उच्चतम न्यायालय ने एनएसए के तहत एहतियाती हिरासत में रखे गये विधि छात्र को रिहा करने का आदेश दिया

उच्चतम न्यायालय ने एनएसए के तहत एहतियाती हिरासत में रखे गये विधि छात्र को रिहा करने का आदेश दिया

उच्चतम न्यायालय ने एनएसए के तहत एहतियाती हिरासत में रखे गये विधि छात्र को रिहा करने का आदेश दिया
Modified Date: June 28, 2025 / 06:45 pm IST
Published Date: June 28, 2025 6:45 pm IST

(फाइल फोटो के साथ)

नयी दिल्ली, 28 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत प्राथमिकी दर्ज किये जाने के बाद एहतियाती हिरासत में लिए गए एक विधि छात्र को तुरंत रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि यह ‘पूरी तरह से अवैध’ है।

न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मध्यप्रदेश के बैतूल के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 11 जुलाई, 2024 को पारित किये गये हिरासत आदेश में त्रुटि पाई तथा कहा कि वह इस मामले में विस्तृत और तर्कसंगत आदेश पारित करेगी।

 ⁠

बैतूल में एक विश्वविद्यालय परिसर में हुए विवाद के बाद पुलिस ने अन्नू पर मामला दर्ज किया था। याचिकाकर्ता अन्नू की कथित तौर पर प्रोफेसर से झड़प हुई थी।

अन्नू के खिलाफ हत्या के प्रयास और अन्य संबंधित अपराधों को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

जेल में जब अन्नू था तब उसके खिलाफ एनएसए के प्रावधानों के तहत हिरासत आदेश जारी किया गया था। बाद में इस आदेश की पुष्टि की गई और तब से हर तीन महीने में इसे बढ़ाया जाता रहा है।

शीर्ष अदालत की पीठ ने शुक्रवार को अपने आदेश में कहा,‘‘11 जुलाई, 2024 के पहले हिरासत आदेश के अवलोकन के बाद, हमने पाया है कि अपीलकर्ता को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा तीन (दो) के तहत एहतियाती हिरासत में लिया गया है। हालांकि, हमारा मानना ​​है कि जिन कारणों से उसे एहतियाती हिरासत में लिया गया है, वे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा तीन की उपधारा (दो) की जरूरतों को पूरा नहीं करते हैं। इसलिए, अपीलकर्ता की निवारक हिरासत पूरी तरह से असमर्थनयोग्य हो जाती है।’’

पीठ ने कहा कि एहतियाती हिरासत अन्य आधारों पर भी अस्वीकार्य है, जैसे कि अपीलकर्ता (विधि छात्र) के आवेदन को राज्य सरकार के पास न भेजकर जिलाधिकारी ने स्वयं निर्णय ले लिया तथा अन्य आपराधिक मामलों में अपीलकर्ता की हिरासत के तथ्य को भी ध्यान में नहीं रखा गया तथा इसपर भी विचार नहीं किया गया कि नियमित आपराधिक कार्यवाही में निरुद्ध होने के बावजूद उसे एहतियाती हिरासत में क्यों रखा जाना आवश्यक था।

पीठ ने कहा, ‘‘इस प्रकार, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, हम निर्देश देते हैं कि फिलहाल भोपाल की केंद्रीय जेल में बंद अपीलकर्ता को किसी अन्य आपराधिक मामले में आवश्यक न होने पर हिरासत से तुरंत रिहा किया जाए। उपरोक्त के मद्देनजर, आपराधिक अपील का निपटारा किया जाता है। बाद में तर्कसंगत आदेश जारी जाएगा।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून के छात्र अन्नू उर्फ ​​अनिकेत को पहली बार 11 जुलाई, 2024 के आदेश द्वारा एहतियाती हिरासत में लिया गया था और इस हिरासत आदेश को चार बार बढ़ाया गया और अंतिम विस्तार आदेश के अनुसार, उसकी निवारक हिरासत 12 जुलाई, 2025 तक है।

पीठ ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत की गयी सामग्री के अनुसार, अदालत ने पाया कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के तहत एहतियाती हिरासत को उचित ठहराने के लिए कानून के छात्र के खिलाफ वर्तमान आपराधिक मामले समेत नौ आपराधिक पृष्ठभूमि का हवाला दिया गया है।

पीठ ने कहा कि लेकिन उसके (याचिकाकर्ता के) वकील ने कहा कि पिछले आठ मामलों में से पांच में अन्नू को बरी कर दिया गया है और एक मामले में उसे दोषी ठहराया गया है, लेकिन सजा केवल जुर्माना लगाने की है।

शीर्ष अदालत को बताया गया कि शेष दो मामले अभी लंबित हैं और विधि छात्र उन मामलों में जमानत पर है।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि पिछले साल उसके खिलाफ दर्ज वर्तमान आपराधिक मामले में उसे 28 जनवरी, 2025 को जमानत दी गई थी।

पीठ ने कहा, ‘‘इस प्रकार जो परिदृश्य उभर कर आता है, वह यह है कि अपीलकर्ता केवल एहतियाती हिरासत के आदेश के आधार पर हिरासत में बना हुआ है। यह कहा गया है कि अपीलकर्ता सेंट्रल जेल, भोपाल में बंद है।’’

मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने 25 फरवरी को अन्नू के पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी थी।

भाषा राजकुमार पवनेश

पवनेश


लेखक के बारे में