न्यायालय का 1984 भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी याचिका पर विचार करने से इनकार

न्यायालय का 1984 भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी याचिका पर विचार करने से इनकार

न्यायालय का 1984 भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी याचिका पर विचार करने से इनकार
Modified Date: July 24, 2025 / 01:46 pm IST
Published Date: July 24, 2025 1:46 pm IST

नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि 1984 की भोपाल गैस त्रासदी में गंभीर रूप से घायल हुए कई लोगों को कम मुआवजा दिया गया, क्योंकि उन्हें अस्थायी विकलांग या मामूली रूप से घायल व्यक्ति के तौर पर ‘गलत तरीके से वर्गीकृत’ किया गया था।

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिकाकर्ता संगठनों को इस मामले में संबंधित उच्च न्यायालय का रुख करने की स्वतंत्रता दे दी।

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि उच्चतम न्यायालय ने मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं किया है।

 ⁠

भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कारखाने से 2-3 दिसंबर, 1984 की दरम्यानी रात अत्यधिक विषैली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ, जिसके बाद 5,479 लोगों की मौत हो गई और पांच लाख से ज्यादा लोग अपंग हो गए। इसे दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है।

जब मामला पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया, तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि दशकों बीत चुके हैं।

याचिकाकर्ता संगठनों के वकील ने कहा कि उन्होंने याचिका में सीमित अनुरोध किया है और वह किसी मामले को पुनः खोलने की मांग नहीं कर रहे हैं।

याचिकाकर्ताओं ने केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार को यह निर्देश देने की मांग की है कि वे उन लोगों की पहचान करके उन्हें मुआवजा देने के लिए उचित कदम उठाएं, जिन्हें भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावों का निपटान) अधिनियम, 1985 और योजना के प्रावधानों के तहत ‘अस्थायी विकलांगता’ या ‘मामूली रूप से चोटिल’ व्यक्ति के तौर पर गलत वर्गीकृत किए जाने के कारण कम मुआवजा दिया गया था।

वकील ने कहा कि गैस त्रासदी के कारण बड़ी संख्या में लोग गुर्दे संबंधी रोगों और कैंसर से पीड़ित हुए हैं और उनका इलाज मामूली रूप से घायल लोगों की तरह किया गया है।

भाषा जोहेब नरेश

नरेश


लेखक के बारे में