न्यायालय का पूर्व आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार

न्यायालय का पूर्व आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार

न्यायालय का पूर्व आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार
Modified Date: February 28, 2025 / 10:01 pm IST
Published Date: February 28, 2025 10:01 pm IST

नयी दिल्ली, 28 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 2011 के भूमि आवंटन मामले में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के पूर्व अधिकारी प्रदीप एन शर्मा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया। हालांकि, शीर्ष अदालत ने शर्मा को अग्रिम जमानत दे दी और कहा कि मामले की जांच मुख्य रूप से दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर की जानी है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि प्राथमिकी को रद्द करने के अनुरोध को अनुमति देने का दायरा सीमित है और इस शक्ति का प्रयोग केवल असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए, जहां यह बहुत अधिक स्पष्ट हो कि कोई अपराध नहीं बनता है।

पीठ ने कहा, ‘‘प्राथमिकी और आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करने वाले अनुरोध को अस्वीकार किया जाता है, क्योंकि आवेदक के खिलाफ आरोपों में आधिकारिक पद के दुरुपयोग, आपराधिक विश्वासघात और सार्वजनिक कर्तव्यों के निर्वहन में कथित भ्रष्ट आचरण के गंभीर आरोप शामिल हैं।’’

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मामले के अनुसार, पूर्व आईएएस अधिकारी पर गुजरात के राजकोट के टंकारा गांव के तत्कालीन मामलतदार (राजस्व प्रशासन का प्रबंधन करने वाला एक सरकारी अधिकारी) द्वारा उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में एक लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात और अदालत में बेईमानी पूर्वक झूठा दावा करने का आरोप लगाया गया था।

प्राथमिकी के अनुसार, आनंदपारा में डी जे मेहता और अन्य लोगों को आवंटित भूमि का एक टुकड़ा राज्य सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था, क्योंकि वे गांव में नहीं रह रहे थे और व्यक्तिगत रूप से जमीन पर खेती नहीं कर रहे थे।

भूमि मालिकों ने 2006-07 में शर्मा के समक्ष भूमि अपील का मामला दायर किया, जो उस समय क्षेत्र के कलेक्टर थे।

शर्मा ने एकपक्षीय आदेश के जरिए मेहता को जमीन दोबारा आवंटित कर दी, जिसे प्रमुख सचिव, राजस्व (अपील),अहमदाबाद ने संशोधित किया और सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। मेहता ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जिसने शर्मा द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा।

शिकायतकर्ता के अनुसार, राजकोट तत्कालीन जिला अधिकारी शर्मा ने यह जानते हुए भी कि उक्त आवंटी विदेश में रह रहे हैं, उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए डिप्टी कलेक्टर द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया और वह भी ‘पावर-ऑफ-अटॉर्नी’ धारक की वास्तविकता की पुष्टि किए बिना।

शर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत, अधिवक्ता अजय देसाई के साथ अदालत में पेश हुए, जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व किया।

अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि शर्मा के खिलाफ मामला एक ऐसा आदेश पारित करने से संबंधित है, जो कथित तौर पर निजी आवंटियों के पक्ष में था, जबकि वे लंबे समय से देश से बाहर थे और उनका खुद का अधिकार क्षेत्र संबंधित क्षेत्र से स्थानांतरित हो चुका था।

भाषा संतोष माधव

माधव


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