उच्चतम न्यायालय तेलंगाना में विधि अधिकारियों की बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगा |

उच्चतम न्यायालय तेलंगाना में विधि अधिकारियों की बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगा

उच्चतम न्यायालय तेलंगाना में विधि अधिकारियों की बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगा

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Modified Date: April 18, 2025 / 03:50 PM IST
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Published Date: April 18, 2025 3:50 pm IST

नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) तेलंगाना में कांग्रेस नीत सरकार के गठन के बाद राज्य के कई विधि अधिकारियों की बर्खास्तगी के खिलाफ दायर याचिका पर उच्चतम न्यायालय पांच मई को सुनवाई करेगा।

राज्य की पूर्ववर्ती भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार द्वारा विभिन्न न्यायिक संस्थाओं में उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किये गए विधि अधिकारियों ने उनकी बर्खास्तगी को बरकरार रखे जाने संबंधी तेलंगाना उच्च न्यायालय के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।

सत्रह अप्रैल को न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने येंडाला प्रदीप और अन्य की याचिका पर विचार किया तथा उनकी याचिका पर सुनवाई निर्धारित की, क्योंकि राज्य सरकार के वकील ने संबद्ध प्राधिकारों से निर्देश प्राप्त करने के लिए समय देने का आग्रह किया था।

पीठ ने सुनवाई टालते हुए कहा, ‘‘याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ वकील की दलीलें सुनने के बाद, राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि बहस के दौरान जो मुद्दे सामने आए हैं, उन्हें मद्देनजर रखते हुए विशेष रूप से ऐसे मुद्दों पर नये निर्देश लेने की आवश्यकता होगी।’’

प्रदीप और अन्य लोगों ने राज्य की कांग्रेस सरकार द्वारा जून 2024 में जारी एक सरकारी आदेश को चुनौती दी है, जिसमें पूर्ववर्ती बीआरएस सरकार द्वारा नियुक्त विभिन्न विधि अधिकारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं।

तेलंगाना में नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद, गठित कांग्रेस सरकार ने इन अधिकारियों को बदलने के लिए कार्रवाई की, जिससे उनकी बर्खास्तगी की वैधता पर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई।

याचिकाकर्ताओं ने पहले तेलंगाना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने दलील दी कि उनकी नियुक्तियां केवल सत्ता परिवर्तन के कारण अचानक समाप्त नहीं की जा सकतीं।

हालांकि, उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश और खंडपीठ, दोनों ने उनकी इस दलील को खारिज कर दिया था।

उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया था कि विधि अधिकारियों की नियुक्ति सरकार के विवेक पर की जाती है और पद पर बने रहने के लिए उन्हें अवश्य ही सरकार का विश्वास प्राप्त होना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि ये नियुक्तियां औपचारिक चयन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं की गई थीं और राज्य सरकार के पास अपने कानूनी प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार बरकरार है।

भाषा सुभाष मनीषा

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