न्यायालय ने जमानत अर्जी खारिज किये जाने पर मप्र उच्च न्यायालय के प्रति नाराजगी जताई

न्यायालय ने जमानत अर्जी खारिज किये जाने पर मप्र उच्च न्यायालय के प्रति नाराजगी जताई

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  • Publish Date - April 18, 2025 / 03:52 PM IST,
    Updated On - April 18, 2025 / 03:52 PM IST

नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश पर नाराजगी व्यक्त की जिसमें कहा गया था कि दोषी की सजा निलंबित करने की अर्जी तभी स्वीकार की जा सकती है जब वह अपनी आधी सजा काट ली हो।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने एक व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा कि यदि लंबित मामलों की बड़ी संख्या के कारण उच्च न्यायालयों में निकट भविष्य में दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर निर्णय की कोई संभावना नहीं है तो दोषी को जमानत दी जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने 17 अप्रैल को दिये फैसले में कहा, ‘‘हमें आश्चर्य है कि उच्च न्यायालय ने कानून का एक नया प्रस्ताव तैयार किया है जिसका कोई आधार नहीं है।’’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय को मौजूदा कानून को लागू करना चाहिए था और याचिकाकर्ता को जमानत के लिए उसके समक्ष जाने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए था।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इस तथ्य को देखते हुए कि अपीलकर्ता की पैंट की जेब से दागदार नोट बरामद किए गए हैं और इसके लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है, इसलिए सजा को निलंबित करने और जमानत देने का कोई मामला नहीं बनता है।’’

उच्च न्यायालय ने फैसले में कहा, ‘‘दूसरा आवेदन पहले आवेदन को खारिज किये जाने के दो महीने से भी कम समय में दायर किया गया है। तदनुसार, यह स्पष्ट किया जाता है कि अपीलकर्ता छूट सहित जेल की सजा की आधी अवधि पूरी करने के बाद सजा के निलंबन के लिए दोबारा अर्जी दाखिल कर सकता है।’’

उच्चतम न्यायालय ने अपने कई फैसलों के बावजूद कानून के सामान्य उल्लंघन से जुड़े मामलों में आरोपियों को जमानत देने से इनकार करने वाली निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों पर भी नाराजगी जताई।

भाषा धीरज मनीषा

मनीषा