अदालत ने आरोपियों को हाथ उठाकर खड़ा रहने की सजा दरकिनार की

अदालत ने आरोपियों को हाथ उठाकर खड़ा रहने की सजा दरकिनार की

अदालत ने आरोपियों को हाथ उठाकर खड़ा रहने की सजा दरकिनार की
Modified Date: August 3, 2025 / 09:29 pm IST
Published Date: August 3, 2025 9:29 pm IST

नयी दिल्ली, तीन अगस्त (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने एक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को खारिज कर दिया है जिसमें कुछ आरोपियों को अदालत की अवमानना का दोषी पाए जाने के बाद पूरे दिन न्यायालय में हाथ ऊपर करके खड़े रहने का निर्देश दिया गया था।

प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश अंजू बजाज चांदना आरोपियों–कुलदीप और राकेश की अपील पर सुनवाई कर रही थीं, जिनके खिलाफ मजिस्ट्रेट अदालत ने 15 जुलाई को एक शिकायत मामले की सुनवाई करते हुए आदेश जारी किया था।

एक अगस्त के आदेश में जिला एवं सत्र न्यायालय ने कहा कि यह आदेश वैधता और औचित्य की कसौटी पर खरा नहीं उतरता तथा यह एक ‘अवैध आदेश’ है, जिसे कानूनी प्रक्रिया अपनाए बिना पारित किया गया है।

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न्यायालय ने कहा, ‘‘आरोपी व्यक्तियों द्वारा जमानत बांड प्रस्तुत न करना किसी भी तरह से अवमाननापूर्ण कृत्य नहीं कहा जा सकता।’’

न्यायालय ने कहा है कि मजिस्ट्रेट ने आरोपियों को यह बताने का कोई मौका नहीं दिया कि उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों न की जाए और उनकी बात सुने बिना ही, आरोपियों को अदालत के उठने तक हाथ उठाकर खड़े रहने को कहा गया।

अदालत ने कहा, ‘‘कानून में इस तरह की सजा का प्रावधान नहीं है।’’

इससे पहले, 15 जुलाई को न्यायिक मजिस्ट्रेट सौरभ गोयल ने 2018 के एक शिकायत मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया था। यह मामला आरोप-पूर्व साक्ष्य के चरण में था।

भाषा राजकुमार नरेश

नरेश


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