उत्तराखंड की राजी जनजाति ने राजस्व भूमि का पट्टा तत्काल दिए जाने की मांग की
उत्तराखंड की राजी जनजाति ने राजस्व भूमि का पट्टा तत्काल दिए जाने की मांग की
देहरादून, 16 दिसंबर (भाषा) उत्तराखंड की अति संवेदनशील और विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) में शामिल राजी जनजाति के प्रतिनिधियों ने मंगलवार को आरोप लगाया कि वन अधिकार कानून लागू हुए दो दशक बीत जाने के बावजूद उन्हें अब तक राजस्व भूमि का पट्टा नहीं मिला है। उन्होंने राज्य सरकार से अपनी मांगों का शीघ्र समाधान करने की मांग की।
केवल 11 गांवों में सिमटी और अत्यंत संकोची राजी जनजाति के सदस्य पहली बार संगठित रूप से अपनी समस्याओं और अधिकारों की मांग को लेकर यहां पहुंचे।
पिछले करीब तीन दशकों से राजी जनजाति के लिए काम कर रही ‘एसोसिएशन फॉर रूरल प्लानिंग एंड एक्शन’ (अर्पण) के सहयोग से पिथौरागढ़ से यहां आए करीब 20 युवक-युवतियों के एक दल ने संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि वन अधिकार कानून 2006 बने लगभग 20 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन उन्हें आज तक राजस्व भूमि का पट्टा नहीं मिल पाया है।
राजी जनजाति के कमल सिंह रजवार ने कहा, “जिन अधिकारों को कानून लागू होते ही मिल जाना चाहिए था, वे आज भी फाइलों और प्रक्रियाओं में उलझे हुए हैं। दुर्गम जंगलों और पहाड़ों में रहने वाला राजी समुदाय आज भी वनोपज संग्रह और दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर है।”
उन्होंने कहा कि सड़क, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा और स्थायी रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी ने समुदाय को हाशिए पर धकेल रखा है।
रजवार ने कहा कि वे लोग केवल ज्ञापन देने नहीं आए हैं, बल्कि अपनी आजीविका, पहचान और भविष्य के लिए ठोस समाधान की मांग कर रहे हैं।
तत्काल राजस्व भूमि का पट्टा देने के साथ-साथ राजी समुदाय ने कई अन्य मांगें भी रखीं। इनमें बलुवाकोट और छारछुम के आश्रम स्कूलों को 12वीं तक उच्चीकृत करना, डीडीहाट में नया आश्रम स्कूल खोलना, आवास योजना की राशि बढ़ाकर लंबित तीसरी किस्त जारी करना, सतत रोजगार की व्यवस्था करना और आईटीआई जैसे संस्थानों में नि:शुल्क कौशल प्रशिक्षण देना शामिल है। इसके अलावा गांवों में नियमित एएनएम और डॉक्टर की तैनाती, पंचायत चुनावों में योग्यता संबंधी शर्तों से अगले 10 वर्षों तक छूट, सड़क, पानी और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने तथा कृषि और आजीविका सशक्त करने के लिए वर्षा जल संग्रहण टैंक लगाने की मांग भी की गई।
इस क्रम में उन्होंने यहां बैंबू बोर्ड, उत्तराखंड राज्य महिला आयोग, उत्तराखंड राज्य मानवाधिकार आयोग सहित अन्य संस्थानों के अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने बताया कि बुधवार को वह राज्य जनजातीय आयोग सहित अन्य संस्थाओं के अधिकारियों से भी मिलकर अपनी बात रखेंगे।
‘अर्पण’ की मुख्य कार्यकारी रेणु ठाकुर ने कहा कि राजी समुदाय की समस्याएं किसी एक जनजाति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह पूरे समाज और राज्य की सामूहिक जिम्मेदारी हैं।
उन्होंने कहा, “यह समुदाय अपनी संस्कृति और प्रकृति आधारित जीवनशैली के साथ मुख्यधारा में शामिल होना चाहता है, लेकिन विकास की राह आज भी इनके लिए अवरुद्ध है। विलुप्ति के कगार पर खड़े इस समुदाय के संरक्षण और संवर्धन के लिए उनकी आवाज को गंभीरता से सुना जाना जरूरी है।”
राजी समुदाय उत्तराखंड की पांच पीवीटीजी जनजातियों में से एक है और राज्य की सबसे छोटी व विलुप्ति के कगार पर खड़ी जनजाति मानी जाती है। यह समुदाय राज्य के केवल 11 गांवों में निवास करता है जिनमें से नौ गांव पिथौरागढ़ जिले में, एक चंपावत और एक ऊधम सिंह नगर में स्थित है।
कुछ दशक पहले तक यह समुदाय गुफाओं में रहता था और बाहरी दुनिया से लगभग कटा हुआ था।
भाषा दीप्ति नोमान
नोमान

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