उच्चतम न्यायालय ने एनजीओ से पूछा, क्या राज्यों को राय रखने का अधिकार नहीं?

उच्चतम न्यायालय ने एनजीओ से पूछा, क्या राज्यों को राय रखने का अधिकार नहीं?

उच्चतम न्यायालय ने एनजीओ से पूछा, क्या राज्यों को राय रखने का अधिकार नहीं?
Modified Date: November 29, 2022 / 08:20 pm IST
Published Date: March 19, 2021 2:20 pm IST

नयी दिल्ली, 19 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को याचिका दायर करने वाले एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) से जानना चाहा कि राज्यों की विधायिका को केंद्रीय कानून पर राय रखने का अधिकार है या नहीं। न्यायालय ने इसके साथ ही एनजीओ को इस विषय पर और अधिक शोध करने को कहा।

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी एनजीओ द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए की जिसमें संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और तीन कृषि कानून जैसे केंद्रीय कानूनों के खिलाफ विभिन्न राज्यों की विधायिका के प्रस्ताव पारित करने की अर्हता को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि ये कानून संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लिखित संघीय सूची के तहत आते हैं।

एनजीओ ने केंद्र और पंजाब, राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल विधानसभा के स्पीकर को याचिका में पक्षकार बनाते हुए कहा कि शीर्ष अदालत पहले ही संसद द्वारा पारित इन कानूनों के खिलाफ दायर कई याचिकाओं पर विचार कर रही है।

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प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमणियन की पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई चार हफ्ते के लिए स्थगित करते हुए टिप्पणी की, ‘‘हम समस्या सुलझाने के बजाय और समस्या खड़ी नहीं करना चाहते हैं, हम इसे देखेंगें।’’

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता एनजीओ ‘समता आंदोलन समिति’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सौम्या चक्रवर्ती ने कहा कि राज्य विधानसभााएं केंद्रीय कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने में सक्षम नहीं हैं।

इस पर पीठ ने उन प्रस्तावों को दिखाने को कहा, जिनपर उन्हें आपत्ति है।

इसपर चक्रवर्ती ने केरल विधानसभा द्वारा सीएए के खिलाफ पारित प्रस्ताव का संदर्भ दिया है और कहा कि यह अमान्य है।

केरल विधानसभा में सीएए कानून के खिलाफ पारित प्रस्ताव का संदर्भ देते हुए चक्रवर्ती ने कहा कि विधानसभा ने केंद्रीय कानून के खिलाफ पारित प्रस्ताव में कानून को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताया क्योंकि यह मुस्लिमों को नागरिकता नहीं देता और केवल हिंदू, जैन, सिख, ईसाई और बौद्ध को नागरिकता देता है।

इस पर पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘यह केरल विधानसभा के बहुमत की राय है और यह कानून नहीं है। यह मात्र राय है। उन्होंने इसमें केंद्र से केवल कानून वापस लेने की अपील की। क्या उन्हें अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार नहीं है? उन्होंने लोगों से केंद्रीय कानून की अवज्ञा करने की अपील नहीं की।’’

अदालत ने याचिकाकर्ता से सवाल किया, ‘‘आप कैसे कह सकते हैं कि विधानसभा को अपनी राय रखने का अधिकार नहीं है।’’

इसपर चक्रवर्ती ने कहा कि शीर्ष अदालत सीएए के खिलाफ पहले ही करीब 60 याचिकाओं पर विचार कर रही है और ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष का कर्तव्य है कि अदालत में विचाराधीन मामले पर फैसला होने तक ऐसे प्रस्तावों पर चर्चा की अनुमति नहीं दें।

उन्होंने कहा, ‘‘ केरल विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने के दिन तक करीब 60 याचिकाएं अदालत के समक्ष लंबित थी। विधानसभा ऐसे मामले पर प्रस्ताव नहीं पारित कर सकती जो न्यायालय में विचाराधीन है। यह आपके के समक्ष विचाराधीन है।’’

चक्रवर्ती ने केरल विधानसभा की नियमावली की नियम संख्या 119 का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि वह इस सदन में ऐसे किसी प्रस्ताव पर चर्चा की अनुमति नहीं देगी, जो अदालत के समक्ष विचाराधीन है।

इसपर पर पीठ ने कहा, ‘‘हम जानना चाहते हैं कि क्या विधानसभा में इस नियम पर पहले चर्चा हुई है या नहीं? हमें ऐसा मामला दिखाइए अगर कोई है तो। क्या विधानसभा में इस नियम की कभी व्याख्या नहीं हुई?’’

चक्रवर्ती ने कहा कि इसकी कभी व्याख्या नहीं हुई।

इसपर पीठ ने कहा कि जरूर ऐसे मामले में पूर्व में नजीर होगा, आप कुछ शोध करिए।

अदालत ने कहा, ‘‘हम समस्या के समाधान के बजाय और समस्या नहीं उत्पन्न करना चाहते हैं। हम देखेंगे।’’

भाषा धीरज दिलीप

दिलीप


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