Delhi Air Quality Monitor: ये मॉनिटर दिखाते हैं हवा की हालत, पर खुद की हालत कब बिगड़ जाए , पता नहीं!… जानें रीडिंग में कैसे होती है गड़बड़ी?
देश की सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि दिल्ली के एयर मॉनिटर क्या सही आंकड़े दे रहे हैं। दरअसल CAAQMS और CPCB के उपकरणों में कुछ तकनीकी सीमाएं होती हैं, जो AQI रीडिंग को बिगाड़ सकती हैं। जानें कैसे ये मशीनें हवा की गुणवत्ता को मापते समय गलतियां कर सकती हैं।
(Delhi Air Quality Monitor / Image Credit: ANI News)
- सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के AQMS उपकरणों की सटीकता पर सवाल उठाए।
- शहर में 40 ऑटोमेटेड एयर क्वालिटी स्टेशनों का नेटवर्क है।
- राब मौसम, बिजली और हाई ह्यूमिडिटी रीडिंग को प्रभावित कर सकते हैं।
नई दिल्ली: Delhi Air Quality Monitor: पिछले हफ्ते, 17 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों से दिल्ली में उपयोग होने वाले एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों (AQMS) में लगाए गए उपकरणों की उपयुक्तता पर स्पष्टीकरण मांगा। अदालत ने जानना चाहा कि क्या ये उपकरण दिल्ली की विशेष वायु परिस्थितियों के लिए भरोसेमंद हैं। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि शहर अपने दैनिक प्रदूषण स्तर के आंकलन के लिए एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) पर अत्यधिक निर्भर है।
दिल्ली का एयर क्वालिटी निगरानी नेटवर्क
शहर में कुल 40 CAAQMS (Continuous Ambient Air Quality Monitoring Stations) स्टेशनों का नेटवर्क है। ये सभी तापमान-नियंत्रित, धूलरोधी केबिन वाले ऑटोमेटेड लैब हैं। हर स्टेशन आठ प्रमुख प्रदूषकों पर नजर रखता है – PM2.5, PM10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, अमोनिया और सीसा (Lead)। ये स्टेशन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के 2012 के दिशानिर्देशों के अनुसार काम करते हैं, जो उपकरणों के सिद्धांत, कैलिब्रेशन और गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रिया का विवरण देते हैं।
प्रदूषकों को मापने की तकनीक
कण प्रदूषक :
PM2.5 और PM10 को बीटा एट्यूनेशन मॉनिटर (BAM) से मापा जाता है। इस प्रक्रिया में बीटा किरणें फिल्टर टेप से गुजरती हैं, और टेप पर जमा धूल की मात्रा को देखकर कण प्रदूषण का स्तर निकाला जाता है।
गैसीय प्रदूषक:
गैसीय प्रदूषकों को ऑप्टिकल और रासायनिक विधियों से मापा जाता है। प्रमुख तकनीकें इस प्रकार हैं:
- सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂): UV फ्लोरेसेंस विधि
- ओजोन (O₃): UV फोटोमेट्री
- कार्बन मोनोऑक्साइड (CO): नॉन-डिस्पर्सिव इन्फ्रारेड (NDIR)
- नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx): केमिल्यूमिनेसेंस
- अमोनिया (NH₃): ऑप्टिकल स्पेक्ट्रोस्कोपी
ये सभी तकनीकें 2009 के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) के तहत अनुमोदित हैं।
रीडिंग पर असर डालने वाले कारक
AQI की सटीकता कई चीजों पर निर्भर करती है:
- उपकरण का प्रदर्शन और डेटा की मात्रा: CPCB के अनुसार कम से कम तीन प्रदूषकों के लिए 16 घंटे का विश्वसनीय डेटा होना चाहिए, जिसमें PM2.5 या PM10 शामिल हो।
- तकनीकी और परिचालन समस्याएं: उपकरण का कैलिब्रेशन, बिजली की बाधा, खराब मौसम, उच्च आर्द्रता आदि रीडिंग को प्रभावित कर सकते हैं।
- स्थान का चयन: यदि स्टेशन इमारत, पेड़ या निकास वेंट के पास हैं, तो हवा का प्रवाह विकृत हो सकता है।
- डेटा ट्रांसमिशन: बिजली में उतार-चढ़ाव या नेटवर्क फेल्योर वास्तविक समय के अपडेट को रोक सकते हैं।
इस साल की CAG रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि कई DPCC स्टेशन पर्याप्त मान्य डेटा देने में असफल रहे, खासकर सीसा जैसे प्रदूषकों के मामले में।
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