जहरीली हवा मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा; एडीएचडी होने की संभावना भी बढ़ती है: विशेषज्ञ

जहरीली हवा मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा; एडीएचडी होने की संभावना भी बढ़ती है: विशेषज्ञ

जहरीली हवा मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा; एडीएचडी होने की संभावना भी बढ़ती है: विशेषज्ञ
Modified Date: December 27, 2025 / 08:52 pm IST
Published Date: December 27, 2025 8:52 pm IST

नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) दिल्ली में जहरीली हवा का प्रकोप जारी रहने के बीच विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा रही है, जिससे बच्चों में बुद्धि स्तर कम रहने, स्मृति संबंधी विकार और एडीएचडी विकसित होने की संभावना बढ़ रही है।

अनुसंधान आधारित साक्ष्यों का हवाला देते हुए, चिकित्सकों ने कहा कि जहरीली हवा अवसाद, बढ़ती चिंता, स्मृति कमजोर करने और संज्ञानात्मक विकास के बाधित होने का कारण बन रही है, जबकि लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से अल्जाइमर और पार्किंसन रोग जैसे तंत्रिका अपक्षयी विकारों का खतरा बढ़ जाता है।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों की देखभाल करने वाली संस्था ईमोनीड्स की मनोचिकित्सक डॉ. आंचल मिगलानी ने कहा कि हालांकि श्वसन, हृदय संबंधी और एलर्जी संबंधी स्थितियां सार्वजनिक ध्यान आकर्षित करती हैं, लेकिन वायु प्रदूषण का मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव भी उतना ही चिंताजनक है।

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उन्होंने कहा कि अनुसंधान से प्रदूषण और बढ़ते संज्ञानात्मक एवं तंत्रिका संबंधी विकारों के बीच एक स्पष्ट संबंध का पता चलता है, जिसमें बच्चे, बुजुर्ग आबादी और कम आय वाले समुदाय सबसे अधिक संवेदनशील हैं।

मिगलानी के अनुसार, प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क में रहने से अल्जाइमर और पार्किंसन रोग जैसे तंत्रिका संबंधी विकारों का खतरा बढ़ जाता है।

उन्होंने कहा कि प्रदूषित वातावरण में पलने-बढ़ने वाले बच्चों में बौद्धिक स्तर (आईक्यू) का स्तर कम होता है, स्मृति संबंधी विकार होते हैं और एडीएचडी विकसित होने की संभावना अधिक होती है।

मिगलानी ने कहा कि लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से कोर्टिसोल का स्तर बढ़ जाता है, मनोदशा का नियमन बाधित होता है और दीर्घकालिक तनाव में वृद्धि होती है।

उन्होंने रेखांकित किया, ‘‘दिल्ली के निवासियों में कम एक्यूआई स्तर वाले शहरों की तुलना में अवसाद और चिंता की दर 30-40 प्रतिशत अधिक है। सामाजिक अलगाव, बाहरी गतिविधियों में कमी और लगातार स्वास्थ्य संबंधी चिंता इन प्रभावों को और बढ़ा देती है।’’

सीताराम भारतिया विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान के उप चिकित्सा अधीक्षक और बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र नागपाल ने कहा कि दिल्ली के बच्चे विश्व स्तर पर सबसे प्रदूषित वातावरण में से एक में पल-बढ़ रहे हैं, और इसका प्रभाव उनके फेफड़ों से कहीं अधिक दूरगामी है।

उन्होंने कहा, ‘‘आजकल कई बच्चों में ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, चिड़चिड़ापन और खराब शैक्षणिक प्रदर्शन जैसी व्यवहार संबंधी एवं सीखने की समस्याओं की एक विस्तृत शृंखला देखी जा रही है।’’

डॉ. नागपाल ने कहा कि हालांकि इन चुनौतियों के कई कारण हैं, लेकिन यह अनुमान लगाना उचित है कि लगातार वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारक, स्क्रीन के बढ़ते उपयोग के साथ मिलकर, इस सबमें योगदान दे रहे होंगे।

दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की मनोवैज्ञानिक डॉ. दीपिका दहिमा ने कहा कि वायु प्रदूषण का संकट जितना पर्यावरणीय संकट है, उतना ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी एक गंभीर समस्या है।

उन्होंने कहा कि महीन प्रदूषक कणों और जहरीली गैसों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से चिंता, अवसाद, संज्ञानात्मक क्षति और दीर्घकालिक तनाव जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।

भाषा

नेत्रपाल सुरेश

सुरेश


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