त्रिपुरा का एकमात्र तितली पार्क पर्यटन का प्रमुख आकर्षण केंद्र बना |

त्रिपुरा का एकमात्र तितली पार्क पर्यटन का प्रमुख आकर्षण केंद्र बना

त्रिपुरा का एकमात्र तितली पार्क पर्यटन का प्रमुख आकर्षण केंद्र बना

:   Modified Date:  March 19, 2023 / 07:38 PM IST, Published Date : March 19, 2023/7:38 pm IST

अगरतला, 19 मार्च (भाषा) त्रिपुरा के दक्षिण जिले में भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास एक गांव में वन विभाग द्वारा विकसित एक तितली पार्क अब देश के विभिन्न हिस्सों और बांग्लादेश के पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र बन गया है।

तृष्णा वन्यजीव अभयारण्य के करीब छोटाखोला स्थित तितली इकोपार्क पूर्वोत्तर का पहला तितली पार्क है। इसका उद्घाटन वर्ष 2016 में 5.5 हेक्टेयर भूमि पर तितलियों की 250 प्रजातियों के साथ किया गया था।

उप वन संरक्षक कृष्णगोपाल रॉय ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘कई पर्यटक तितली पार्क आ रहे हैं। जिसमें घरेलू पर्यटक और पड़ोसी देश बांग्लादेश के पर्यटक भी हैं। यह पार्क तृष्णा वन्यजीव अभयारण्य में लुप्तप्राय बाइसन पार्क और भारत-बांग्लादेश मैत्री पार्क के पास है। इसलिए, पर्यटक यहां एक साथ तीन पर्यटन स्थल देख सकते हैं।’’

त्रिपुरा के पर्यटन मंत्री सुशांत चौधरी ने बताया कि तृष्णा वन्य जीवन अभयारण्य और इसके आसपास के इलाके बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करते हैं और इससे राज्य के आर्थिक विकास में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा, ‘‘तितलियों का जीवनकाल बहुत कम होता है। वे केवल 15 दिनों से लेकर लगभग 30 दिनों तक जीवित रहती हैं। लेकिन इतने कम समय में भी तितली लोगों को आनंदित करती हैं। वे पर्यावरण के पारिस्थितिकी तंत्र को सुंदर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।’’

वहीं, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ), केएस सेठी ने बताया, ‘त्रिपुरा का आकार छोटा होने के बावजूद यहां वन्य जीवन और जैव विविधता की कोई कमी नहीं है। त्रिपुरा में तितलियों की लगभग 250 प्रजातियां हैं। ये रंग-बिरंगी तितलियां बच्चों सहित सभी को पसंद आती हैं। इसलिए वन विभाग राज्य के पर्यटन उद्योग को और आकर्षक बनाने के लिए तितलियों की संख्या बढ़ाने का प्रयास कर रहा है।’

पर्यटन मंत्री ने चिंता जताते हुए कहा, ‘‘हाल के दिनों में जलवायु परिवर्तन और मानव जनित वैश्विक पर्यावरण प्रदूषण के कारण तितलियों और उनके प्राकृतिक वास की संख्या में खतरनाक रूप से कमी हो रही है। यही कारण है कि उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है।’’

भाषा साजन संतोष

संतोष

 

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