दृष्टिबाधित व्यक्तियों को सहानुभूति और करुणा की आवश्यकता है: न्यायालय
दृष्टिबाधित व्यक्तियों को सहानुभूति और करुणा की आवश्यकता है: न्यायालय
नयी दिल्ली, तीन दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि दृष्टिबाधित व्यक्तियों के साथ “सहानुभूति और करुणा” के साथ पेश आने की जरूरत है। न्यायालय ने कुछ राज्यों में न्यायिक सेवाओं में दृष्टिबाधित व्यक्तियों को आरक्षण न दिए जाने के मामले में स्वत: संज्ञान सहित अन्य याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि छह याचिकाओं पर फैसला उस अहम दिन सुरक्षित रखा गया जब विश्व अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मना रहा था।
पीठ ने कहा, “दृष्टिबाधित व्यक्तियों को अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम बनाने के लिए सहानुभूति और करुणा की आवश्यकता है। उनके प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया नहीं होना चाहिए।”
न्यायमित्र के रूप में पीठ की सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने कहा कि अंधेपन और कम दृष्टि जैसी दृष्टि संबंधी दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए निर्धारित कोटे के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम की धारा 34 का हवाला देते हुए अग्रवाल ने कहा कि प्रत्येक समुचित सरकार अपने प्रत्येक “प्रतिष्ठान में पदों के प्रत्येक समूह में कैडर क्षमता की कुल रिक्तियों की कम से कम चार प्रतिशत संख्या बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्तियों से भरेगी, जिनमें से एक-एक प्रतिशत खंड (ए), (बी) और (सी) के अंतर्गत बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के लिए आरक्षित होगा और एक प्रतिशत खंड (डी) और (ई) के अंतर्गत बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के लिए आरक्षित होगा, अर्थात (ए) दृष्टिबाधित और कम दृष्टि…”।
पीठ ने कहा कि यदि ऐसे व्यक्तियों को अन्य सामान्य श्रेणी के छात्रों की तरह न्यायिक सेवा परीक्षा देने की अनुमति दी जाती है तो राज्य या उच्च न्यायालय यह तर्क नहीं दे सकते कि वे अयोग्य हैं और न्यायाधीश के रूप में अपना कर्तव्य नहीं निभा सकते।
न्याय मित्र ने कहा कि यदि ऐसे व्यक्तियों को न्यायपालिका में सेवा करने के अवसर से वंचित किया गया तो कानून का उद्देश्य, जो बेंचमार्क दिव्यांगता से पीड़ित लोगों के लिए आरक्षण प्रदान करता है, समाप्त हो जाएगा।
बेंचमार्क दिव्यांग उस व्यक्ति को माना जाता है जिसकी दिव्यांगता दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत कम से कम 40 प्रतिशत है।
पीठ ने कहा कि वह भविष्य के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी कर सकती है और व्यक्तिगत मामलों में निर्देश पारित नहीं कर सकती है। कुछ दृष्टिबाधित व्यक्तियों को 2024 में मध्य प्रदेश और राजस्थान में आयोजित न्यायिक सेवा परीक्षाओं की मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार में शामिल होने का अवसर नहीं दिये जाने पर न्यायालय ने यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, “वे अगली बार उपस्थित हो सकते हैं।” उन्होंने पक्षों के वकीलों से एक सप्ताह के भीतर लिखित नोट दाखिल करने को कहा।
भाषा प्रशांत संतोष
संतोष

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