आत्मविश्वास से भरे थे, ब्रेल लिपि के जनक,लुइस ब्रेल

आत्मविश्वास से भरे थे, ब्रेल लिपि के जनक,लुइस ब्रेल

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  • Publish Date - January 3, 2018 / 02:13 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:56 PM IST

दृष्टिहीन के मसीहा के रूप में जाने वाले लुइस ब्रेल की आज जयंती है इनका जन्म 4  जनवरी 1809 में फ्रांस के छोटे से ग्राम कुप्रे में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोडों के लिये काठी और जीन बनाने का कार्य किया करते थें। पारिवारिक आवश्यकताओं के अनुरूप पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं होने के कारण साइमन केा अतिरिक्त मेहनत करनी होती थी इसीलिये जब बालक लुइस मात्र तीन वर्ष के हुये तो उनके पिता ने उसे भी अपने साथ घोड़ों के लिये काठी और जीन बनाने के कार्य में लगा लिया। अपने स्वभाव के अनुरूप तीन वर्षीय बालक अपने आस पास उपलब्ध वस्तुओं से खेलने में अपना समय बिताया करता था इसलिये बालक लुइस के खेलने की वस्तुये वही थीं जो उसके पिता द्वारा अपने कार्य में उपयोग की जाती थीं जैसे कठोर लकड़ी, रस्सी, लोहे के टुकडे, घोड़े की नाल, चाकू और काम आने वाले लोहे के औजार।

 किसी तीन वर्षीय बालक का अपने नजदीक उपलब्ध वस्तुओं के साथ खेलना और शरारतों में लिप्त रहना नितांत स्वाभाविक भी था। एक दिन काठी के लिये लकड़ी को काटते में इस्तेमाल किया जाने वाली चाकू अचानक उछल कर इस नन्हें बालक की आंख में जा लगी और बालक की आँख से खून की धारा बह निकली। रोता हुआ बालक अपनी आंख को हाथ से दबाकर सीधे घर आया और घर में साधारण जडी लगाकर उसकी आँख पर पट्टी कर दी गयी।

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शायद यह माना गया होगा कि छोटा बालक है और  कुछ ही दिन में उसकी चोट अपने आप ठीक हो जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं बल्कि बालक लुइस ने अपनी दूसरी आंख से भी कम दिखलायी देने की शिकायत की परन्तु यह उसके पिता साइमन की साघन हीनता रही होगी अथवा लापरवाही जिसके चलते बालक की आँख का समुचित इलाज नहीं कराया जा सका और धीरे धीरे वह नन्हा बालक आठ वर्ष का पूरा होने तक पूरी तरह दृष्टि हीन हो गया। रंग बिरंगे संसार के स्थान पर उस बालक के लिये सब कुछ गहन अंधकार में डूब गया। अपने पिता के चमडे के उद्योग में उत्सुकता रखने वाले लुई ने अपनी आखें एक दुर्घटना में गवां दी। 

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धीरे धीरे बालक को अपने दृस्तिहीन होने का अहसास खलने लगा  उसके मन में संसार से लडने की प्रबल इच्छाशक्ति थी  उसने अपने अंधत्व से हार नहीं मानी और फा्रंस के मशहूर पादरी बैलेन्टाइन की शरण में जा पहुंचा। पादरी बैनेन्टाइन के प्रयासों के चलते 1819 में इस दस वर्षीय बालक को ‘ रायल इन्स्टीट्यूट फार ब्लाइन्डस् ’ में दाखिला मिल गया। यह वर्ष 1821 था। बालक लुइस अब तक बारह बर्ष का हो चुका था। इसी दौरान विद्यालय में बालक लुइस केा पता चला कि शाही सेना के सेवानिवृत कैप्टेन चार्लस बार्बर ने सेना के लिये ऐसी कूटलिपि का विकास किया है जिसकी सहायता से वे टटोलकर अंधेरे में भी संदेशों के पढ सकते थे।

कैप्टेन चार्लस बार्बर का उद्देश्य युद्व के दौरान सैनिकों को आने वाली परेशानियों को कम करना था। बालक लुइस का मष्तिष्क सैनिकों के द्वारा टटोलकर पढ़ी जा सकने वाली कूटलिपि में दृष्ठिहीन व्यक्तियो के लिये पढने की संभावना ढूंढ रहा था। उसने पादरी बैलेन्टाइन से यह इच्छा प्रगट की कि वह कैप्टेन चार्लस बार्बर से मुलाकात करना चाहता है। पादरी ने लुइस की कैप्टेन से मुलाकात की व्यवस्था करायी। अपनी मुलाकात के दौरान बालक ने कैप्टेन के द्वारा सुझायी गयी कूटलिपि में कुछ संशोधन प्रस्तावित किये। कैप्टेन चार्लस बार्बर उस अंधे बालक का आत्मविश्वाश देखकर दंग रह गये। अंततः पादरी बैलेन्टाइन के इस शिष्य के द्वारा बताये गये संशोधनों को उन्होंने स्वीकार किया।कालान्तर में स्वयं लुइस ब्रेल ने आठ वर्षो के अथक परिश्रम से इस लिपि में अनेक संशोधन किये और अंततः 1829 में छह बिन्दुओ पर आधारित ऐसी लिपि बनाने में सफल हुये। अपने प्रयासों केा सामाजिक एवं संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिये संर्घषरत लुइस 43 वर्ष की अवस्था में अंततः 1852 में जीवन की लडाई से हार गये .  मृत्यु के बाद ब्रेल  लिपि को कुछ और लोगो ने देखा समझा  लोकप्रियता के चलते अंततः  लुइस की मृत्यु के पूरे एक सौ वर्षों के बाद फ्रांस में 20 जून 1952 का दिन उनके सम्मान का दिवस निर्धारित किया गया।

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छत्तीसगढ़ में भी सर् लुई ब्रेल जयंती के अवसर पर नगर की सेवाभावी संस्था सँस्कार श्रधांजलि के तत्वावधान में माहेश्वरी पंचायत व नगर निगम के विशेष सहयोग से 3 व 4 जनवरी 2018 को दो दिवसीय अखिल भारतीय दृष्टिहीन महासम्मेलन का आयोजन राजनांदगाव में किया जा रहा है। संस्था के अध्यक्ष सतीश भट्टड़ ने बताया कि 2006 से अनवरत इस आयोजन में 3 जनवरी को लुई ब्रेल के तैल चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ के साथ स्वास्थ्य परीक्षण खेलकूद विभिन्न प्रतियोगिताये विवाह परिचय सम्मेलन के साथ ही संध्या में पद्मश्री गोविंदराम निर्मलकर आटोडीयम में दृष्टिहीन व सामान्य कवियों द्वारा एक शाम दृष्टिहीनों के नाम कवि सम्मेलन आयोजित किया जायेगा ,4 जनवरी के प्रातः सर लुई ब्रेल की स्मृति में देश भर से आये दृष्टिहीनों की रैली निकाली जाएगी,कार्यक्रम का समापन प्रदेश के यस्वशी मुख्यमंत्री डॉ रमनसिंह के हाथों होगा,इस दौरान कार्यक्रम के विभिन्न प्रतियोगिता के विजेताओं के साथ समाज के अन्य विविध क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालो को भी सम्मानित किया जाएगा। दृष्टिहीन निर्धन छात्रों को उच्च शिक्षा के  हेतु  सीडी प्लेयर भी दिए जाएंगे।