अदालत ने याचिकाकर्ताओं से पूछा, आप दिल्ली दंगों के मामले में उच्चतम न्यायालय क्यों नहीं गए

अदालत ने याचिकाकर्ताओं से पूछा, आप दिल्ली दंगों के मामले में उच्चतम न्यायालय क्यों नहीं गए

अदालत ने याचिकाकर्ताओं से पूछा, आप दिल्ली दंगों के मामले में उच्चतम न्यायालय क्यों नहीं गए
Modified Date: November 21, 2025 / 07:45 pm IST
Published Date: November 21, 2025 7:45 pm IST

नयी दिल्ली, 21 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कथित नफरत भरे भाषणों के लिए कुछ राजनीतिक नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी और दिल्ली में 2020 में हुए दंगों की एक स्वतंत्र एसआईटी जांच का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं से शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय का रुख न करने का कारण पूछा, जो इसी तरह के मामले की सुनवाई कर रहा है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि समान तथ्यों के आधार पर समान राहत देने का अनुरोध करने वाली एक याचिका पहले से ही शीर्ष अदालत में लंबित है, इसलिए दो अलग-अलग अदालतों में दो सुनवाई करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा, ‘‘आज की तारीख में हम पूछ रहे हैं, क्या यह उचित नहीं होगा कि आप लोग भी उच्चतम न्यायालय का रुख करें और वहां अपनी बात रखें। क्योंकि आप सभी एक ही सामग्री के आधार पर एक जैसी राहत मांग रहे हैं। एक ही मामले में दो सुनवाई क्यों होनी चाहिए, हम यही पूछ रहे हैं।’’

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पीठ ने कहा, ‘‘आप सभी को वहां पक्षकार बनाया जा सकता है और एक ही सामग्री पर अपने मामले पर बहस कर सकते हैं। इसे यहां लंबित क्यों रखें।’’

सुनवाई के दौरान, दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व कर रहे सरकारी वकील रजत नायर ने कहा कि माकपा नेता वृंदा करात द्वारा इसी तरह की प्रार्थना करते हुए दायर याचिका में, मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक अर्जी खारिज कर दी थी और अपील को उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने भी खारिज कर दिया था।

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी और वह वहां लंबित है।

याचिकाकर्ता शेख मुजतबा फारूक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि वह राज्य के बाहर के अधिकारियों को शामिल करते हुए एक स्वतंत्र एसआईटी जांच का अनुरोध कर रहे हैं और इसकी अनुमति केवल एक संवैधानिक अदालत द्वारा ही दी जा सकती है।

अदालत ने मामले को 11 दिसंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के बीच फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए और लगभग 700 लोग घायल हो गए।

भाषा शफीक सुभाष

सुभाष


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