यासीन के मामले पर पुनर्विचार किया जाए: महबूबा; लोन ने एनआईए की अर्जी को ‘खतरनाक’ बताया |

यासीन के मामले पर पुनर्विचार किया जाए: महबूबा; लोन ने एनआईए की अर्जी को ‘खतरनाक’ बताया

यासीन के मामले पर पुनर्विचार किया जाए: महबूबा; लोन ने एनआईए की अर्जी को ‘खतरनाक’ बताया

:   Modified Date:  May 27, 2023 / 09:47 PM IST, Published Date : May 27, 2023/9:47 pm IST

श्रीनगर,27 मई (भाषा) जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक के मामले पर पुनर्विचार करने की शनिवार को मांग की, जबकि पीपुल्स कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष सज्जाद लोन ने अलगाववादी नेता (मलिक) को मौत की सजा सुनाये जाने संबंधी राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के अनुरोध को ‘खतरनाक’ करार दिया।

हालांकि, अपनी पार्टी के प्रमुख अल्ताफ बुखारी ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा करने का प्रयास करने वालों के खिलाफ निरोधक कदम उठाए जाने चाहिए।

उल्लेखनीय है कि एनआईए ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख कर जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख मलिक को मौत की सजा सुनाए जाने का अनुरोध किया। जांच एजेंसी ने दलील दी कि इस तरह के ‘दुर्दांत आतंकवादी’ को मौत की सजा नहीं सुनाए जाने से अन्याय होगा।

महबूबा ने ट्विटर पर कहा, ‘‘भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, प्रधानमंत्री के हत्यारे तक की सजा माफ कर दी जाती है, इसलिए यासीन मलिक जैसे राजनीतिक कैदी के मामले की अवश्य ही समीक्षा और पुनर्विचार किया जाना चाहिए।’’

उन्होंने बुखारी की भी आलोचना की, जो उनकी पार्टी के पूर्व नेता हैं और मंत्रिमंडल सहयोगी रहे थे। महबूबा ने कहा कि मलिक को फांसी की सजा दिये जाने का समर्थन कर रहे लोग ‘‘हमारे सामूहिक अधिकारों’’ के लिये एक गंभीर खतरा हैं।

बुखारी ने एक ट्वीट में कहा, “यासीन मलिक को मौत की सजा का अनुरोध करने वाली एनआईए की याचिका जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के वित्त पोषण के मुद्दे के समाधान की तात्कालिकता पर प्रकाश डालती है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्याय की जीत हो और जो लोग हमारे देश की सुरक्षा को खतरे में डालने की कोशिश कर रहे हैं, उनके खिलाफ निरोधक कदम उठाए जाने चाहिए।”

पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष लोन ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘यासीन मलिक पर एनआईए की अर्जी खतरनाक है।’’

उन्होंने सवाल किया, ‘‘उन लोगों का क्या जिन्होंने भारतीय संविधान के तहत हुए चुनावों (1987) में धांधली की और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया, उन्हें यातना दी, उनके परिवारों को प्रताड़ित किया। और तब तक चैन से नहीं बैठे जब तक कि उन्हें हथियार उठाने के लिए मजबूर नहीं कर दिया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं हथियार उठाने को सही नहीं मानता, लेकिन क्या हम उनकी निंदा नहीं कर सकते हैं, जिन्होंने युवाओं को हथियार उठाने के लिए मजबूर किया।’’

पूर्व मंत्री ने सवाल किया कि 1987 के बाद जिन लोगों ने ‘‘कब्रिस्तानों को शवों से भर दिया’’, क्या वे कानून के दायरे से बाहर हैं।

लोन ने कहा, ‘‘क्या हमेशा गरीब आदमी के बेटे को ही कानून का सामना करना पड़ता है, फांसी का सामना करना पड़ता है।’’ उन्होंने कहा कि और प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए और कश्मीरी अवाम को शांति से जीने देना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अफजल गुरु और उसकी मौत की सजा पर अमल करने में कांग्रेस की जल्दबाजी याद आती है।’’ उल्लेखनीय है कि संसद भवन पर हमला के मामले में अफजल को दोषी करार दिया गया था और उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल में 2013 में फांसी दी गई थी।

भाषा सुभाष दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)