बहुत प्रेरणादायक है सिंगर नितिन दुबे के संघर्ष की कहानी |

बहुत प्रेरणादायक है सिंगर नितिन दुबे के संघर्ष की कहानी

छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गायक एवं संगीतकार नितिन दुबे आज उस मकाम पर हैं जहाँ पर आज छत्तीसगढ़ का हर गायक पहुँचना चाहता है और वो छत्तीसगढ़ के कई युवा गायकों के रोल मॉडल भी हैं लेकिन उनके संघर्ष की कहानी भी बहुत प्रेरणादायक है जो युवाओं को बहुत प्रेरित कर सकती है

Edited By :   Modified Date:  December 4, 2022 / 11:51 AM IST, Published Date : December 4, 2022/11:51 am IST

Success story of Singer Nitin Dubey: छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध गायक एवं संगीतकार नितिन दुबे आज उस मकाम पर हैं जहाँ पर आज छत्तीसगढ़ का हर गायक पहुँचना चाहता है और वो छत्तीसगढ़ के कई युवा गायकों के रोल मॉडल भी हैं लेकिन उनके संघर्ष की कहानी भी बहुत प्रेरणादायक है जो युवाओं को बहुत प्रेरित कर सकती है। वैसे नितिन दुबे को पहली प्रेरणा उनकी माता जी से प्राप्त हुई कहते हैं कि माँ ही प्रथम गुरु होती है,और ये बात सिंगर नितिन दुबे के ऊपर पूरी तरह लागू होती है। नितिन दुबे की माता श्रीमती कालिंदी दुबे घर पर पूजा के वक़्त भजन गाया करती थीं जिसका नन्हे नितिन के ऊपर काफ़ी गहरा असर पड़ा और वो भी भजन गाने लगे,और धीरे धीरे अपने पिता परमहंस दुबे जी से गायकी की बारीकी समझने लगे क्योंकि नितिन के पिता जी भी लोकगीत और गज़लें बहुत अच्छी तरह से गाया करते थे लेकिन उन्होंने इसे अपना कैरियर नहीं बनाया।

नितिन दुबे ने महज 7 साल की उम्र में ही 1988 में स्कूली मंच पर पहली प्रस्तुति देशभक्ति गीत के रूप में दी और उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ । इसके बाद सन 1988 से लेकर सन 2000 तक नितिन दुबे विभिन्न प्रकार के स्कूली मंचो और ऑर्केस्ट्रा प्रोग्राम में गाते रहे, बॉलीवुड के लेजेंडरी गायक किशोर कुमार जी के गीतों को मंच पर प्रस्तुत करते रहे क्योंकि नितिन दुबे उन्हें अपना सबसे बड़ा गुरु मानते हैं पर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के बाद उन्हें ये एहसास हुआ कि अपने राज्य के संगीत को आगे बढ़ाने के लिए कुछ करना चाहिए और बहुत संघर्ष के बाद वर्ष 2001 में उनका पहला छत्तीसगढ़ी गीत “मनमोहिनी हे गाँव के गोरिया” रिलिज़ हुआ, जो कि “तैं दीवानी मैं दीवाना” ऑडियो कैसेट एलबम का गीत था,और इसमें नितिन जी ने 2 गीत और गाए थे “उड़ जा रे मैना” एवं “जावन दे जावन दे मोला” लेकिन इन गीतों से उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिल पाई।अक्सर सफलता आसानी से मिलती ही नहीं है, आइए जानते हैं उन्हें सफलता कैसे मिली?

चेहरा छुपाकर अपने ही एलबम का पोस्टर चिपकाया और गाँव गाँव घूमकर कैसेट बेचा

एक गायक के लिए कठोर संघर्ष एक बहुत बड़ा तप है । बिना तप के किसी भी तपस्वी को वरदान मिलना असम्भव है । वरदान के इच्छुक को कठोर तप करना ही होगा । तप का आशय मात्र रात दिन रियाज करना ही नहीं है बल्कि स्वयं की कला को जनता तक पहुँचाना भी है । शुरुआती दौर उनके संगीत जीवन का सबसे कठिन संघर्ष का दौर रहा । नितिन जी को रातों रात सफलता नहीं मिली क्योंकि उस वक्त सोशल मीडिया और यूट्यूब का ज़माना नहीं था कि आपका गीत रातों रात वायरल हो जाए। संघर्ष की तपिश से कई लोग तो टूट भी जाते हैं । लेकिन नितिन दुबे को असफ़लता और संघर्ष तोड़ ही नहीं पायी । मैदान छोड़कर भागे ही नहीं ।

उन दिनों आडियो टेप कैसेट का जमाना था । संगीत प्रेमियों के घरों में कैसेट प्लेयर हुआ करते थे । जिसमें वे गाने सुनते थे ,लेकिन इन गानों के चलने के लिए बड़ी म्यूजिक कम्पनी से एलबम रीलिज़ होना ज़रूरी था, तब मेलोडियस सिंगर के रूप में नितिन दुबे का थोड़ा बहुत नाम हो रहा था लेकिन नितिन दुबे की जिस प्रकार की आवाज़ थी और वे जिस प्रकार के गीत गाना चाहते थे वैसे गीत कोई भी आडियो म्युजिक कम्पनी नहीं गवाती थी । तब उन्होंने अपना एक सोलो एलबम निकालने का सोचा और तैयारी की और उन्होंने जितना भी पैसा प्रोग्राम करके कमाया था उन रुपयों से उन्होंने एलबम रिकॉर्ड किया लेकिन जब उसे रीलिज कराने आडियो म्युजिक कम्पनी वालों के पास लेकर गये,तब किसी ने भी उस एलबम के गानों को पसन्द नहीं किया । रीलिज करने के लिए राजी ही नहीं हुए ।

उसके बाद नितिन दुबे ने मार्केट से रुपये उधार लिये । इधर – उधर से जुगत भिड़ाये और इस एलबम को स्वयं ही रीलिज किया,लेकिन रीलिज़ के बाद समस्या ये थी कि इसे लोगों तक कैसे पहुचाएं क्योंकि पूंजी के अभाव मे नितिन जी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो किसी से मार्केटिंग करा सकें और उन्हें पेमेंट दे सकें ,तब उन्होंने बाइक से खुद ही पूरे छत्तीसगढ़ में इसकी मार्केंटिंग करने की ठानी और रोज़ अलग अलग शहरों में गांव में जिलों में जाकर छोटे से बड़े ऑडियो कैसेट के दुकानों में अपने एलबम को पहुंचाने लगे,लेकिन ये काम वो अपने मुंह पर गमछा बांध कर किया करते थे क्योंकि ऑडियो कैसेट और पोस्टर के फोटो को कोई देखकर पहचान न ले कि सिंगर खुद अपने पोस्टर चिपका रहा है और कैसेट बेच रहा है, क्योंकि उन्हें इस कैसेट को बेचने के लिए इसकी तारीफ करनी पड़ती थी और नितिन जी सोचते थे कि उन्हें किसी ने पहचान लिया कि ये तो खुद अपनी तारीफ कर रहा है और कैसेट ही नही खरीदे तो उन्हें नुकसान हो जाएगा इसलिए अपनी पहचान छुपाने के लिए वो ऐसा करते थे।

बहरहाल उनकी मेहनत रंग लाई और ये कैसेट देखते ही देखते सुपरहिट हो गया और उसके गीतों ने धूम मचा दिया । आप सभी को ये जानकर आश्चर्य होगा कि जिस एलबम को सभी म्यूजिक कम्पनी ने रिलिज़ करने से नकार दिया था उसी एलबम ने नितिन दुबे को स्टारडम प्रदान किया और ये एलबम थी 2005 में रिलिज़ “हाय मोर चाँदनी” जो आज भी युवा श्रोताओं के बीच काफी सुना जाता है । इस एल्बम इस अथक प्रयास से नितिन जी की खुद की आडियो म्युजिक कम्पनी भी अस्तित्व मे आ गई। नितिन जी के टैलेंट के साथ उनके आत्मविश्वास और अथक कठिन संघर्ष ने उन्हें ये सफलता दिलाई है।

बदलते दौर के साथ ख़ुद को बदल लिया

नितिन दुबे ने न सिर्फ सफलता प्राप्त की बल्कि उसे आज तक कायम किए हुए हैं पिछले तीन दशक से संगीत के क्षेत्र में बने रहना अत्यंत कठिन कार्य है,क्योंकि सफलता प्राप्त करने से ज़्यादा कठिन सफलता को बरकरार रखना होता है, आज नितिन जी ने बदलते वक्त के हिसाब से छत्तीसगढ़ी गीतों को आधुनिक रंग देकर अब अपने गीतों में एक्टिंग भी करने लगे हैं जिसे उनके फैंस ने बहुत प्यार दिया, हाय रे मोर कोचईपान, तोला प्यार होगे, रायगढ़ वाला राजा,हाय रे मोर मुनगाकाड़ी, तोर बारात,दिल के धड़कन,हाय रे मोर नीलपरी में उन्होंने एक गायक और संगीतकार के साथ साथ एक्टर के रूप में भी सफलता हासिल की है,ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार नितिन जी की सफलता की कहानी आज नए कलाकारों के लिए एक प्रेरणा श्रोत है, और आलम यह है कि कभी अपना चेहरा छुपाकर पोस्टर चिपकाने वाले गायक की आज एक झलक पाने को उनके स्टार नाईट में हज़ारों की संख्या में जनता की भीड़ उमड़ पड़ती है । जब तक नितिन मंच पर नहीं आ जाते , तब तक जनता उनका घण्टों इंतजार करती है । नितिन दुबे आज की तारीख में छत्तीसगढ़ फ़िल्म एवं संगीत जगत में एक बहुत बड़ा नाम और मंच पर सबसे आकर्षण का केन्द्र बन चुके हैं ।

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