नई दिल्ली । गणेश वासुदेव मावलंकर आज भले ही हमारे बीच मौजूद ना हो लेकिन उनके विचार आज भी लोगों के जहन में जिंदा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से ताल्लुक रखने वाले जी वी मावलंकर एक जन नेता और प्रखर वक्ता थे। भारत को स्वतंत्रता दिलाने में उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। G V Mavalankar को स्वतंत्र भारत के पहले लोकसभा अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है।
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वासुदेव मावलंकर ने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारंभ किया। 1921 में वे असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हुए। उन्होंने वकालत छोड़ दी तथा ‘गुजरात विद्यापीठ’ में एक अवैतनिक प्राध्यापक के रूप में नौकरी करने लगे। 1921 की अहमदाबाद कांग्रेस की स्वागत-समिति के वे सचिव थे। ‘अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी’ के भी वे सचिव रहे थे। ‘नमक सत्याग्रह’ में अपनी भूमिका के लिए उन्हें कारावास जाना पड़ा था। वह सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी अनेक बार जेल गए तथा जेल में दुर्दम्य अपराधियों को सुधारने का कार्य किया।
वासुदेव मावलंकर 1937 ई. में मुंबई विधान सभा के सदस्य और उसके अध्यक्ष चुने गए। 1945 ई. तक वे इस पद पर बने रहे। उसके बाद उन्हें केन्द्रीय असेम्बली का अध्यक्ष बना दिया गया। स्वतंत्रता के बाद 1947 ई. में उन्हें सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष (स्पीकर) चुना गया। 1952 ई. में पहले सार्वजनिक चुनाव के बाद उन्हें पुनः अध्यक्ष का आसन मिला। अपनी अध्यक्षता की इस दीर्घ अवधि में मावलंकर ने सदन के संचालन में नए मानदंडों की स्थापना की।