Independence Day 2024 : ऐसे ही नहीं मिली भारत को आजादी! इन क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति देर कराया देश को आजाद, देखें सूची
Independence Day 2024 : इन खास सेनानियों और आंदोलनकारियों के नेतृत्व में भयानक विद्रोह, युद्ध, लड़ाइयां तथा कई आंदोलन किए।
Independence Day 2024
Independence Day 2024 : नई दिल्ली। भारत में स्वतंत्रता दिवस हर साल 15 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन 1947 की ऐतिहासिक घटना को दर्शाता है जब भारत को लगभग दो शताब्दियों की गुलामी के बाद ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से आज़ादी मिली थी। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की विशेषता एक लंबे और कठिन अभियान से थी जिसमें कई स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं ने भाग लिया था, जिन्होंने अहिंसक विरोध और सविनय अवज्ञा से लेकर महात्मा गांधी जैसे लोगों के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय सेना जैसे समूहों द्वारा आयोजित क्रांतिकारी गतिविधियों तक कई तरह के तरीके अपनाए थे।
Independence Day 2024 : बता दें कि 15 अगस्त को भारत का स्वतंत्रता दिवस है। यह स्वतंत्रता हमें यूं ही आसानी से हासिल नहीं हुई हैं, बल्कि इस आजादी के पीछे हमारे कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर हमें यह स्वतंत्रता और स्वतंत्र भारत में रहने का सौभाग्य दिया है। इन खास सेनानियों और आंदोलनकारियों के नेतृत्व में भयानक विद्रोह, युद्ध, लड़ाइयां तथा कई आंदोलन हुए और इसमें अनगिनत शहीद गुमनामी के अंधेरे में खो गए। यहां आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं, भारत के उन महान सपूतों के बारे में जो 1857 से लेकर 1947 के बीच शहीद हुए थे।
प्रथम स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे
तात्या टोपे ने ही आजादी के लिए लड़ी जाने वाली पहली लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। तात्या टोपे का नाम उन लोगों में शामिल है, जिन्होंने सबसे पहले अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ा था। अंग्रेजों के खिलाफ हुई 1857 की क्रांति में तात्या टोपे का भी बड़ा योगदान रहा। जब यह लड़ाई उत्तर प्रदेश के कानुपर तक पहुंची तो वहां नाना साहेब को नेता घोषित किया गया और यहीं पर तात्या टोपे ने आजादी की लड़ाई में अपनी जान लगा दी। इसी के साथ ही उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई बार लोहा लिया था। नाना साहेब ने अपना सैनिक सलाहकार भी नियुक्त किया था।

रानी लक्ष्मीबाई
भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए पहला स्वतंत्रता आंदोलन एक महिला ने लड़ा था। इस लड़ाई को अंग्रेज सिपाहियों के खिलाफ विद्रोह भी कहते हैं। इस आंदोलन की नेतृत्वकर्ता झांसी की रानी लक्ष्मीबाई थीं, जिन्होंने महज 16 साल की उम्र में अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। उनकी वीर गाथा इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जो कहानी या किस्से के रूप में हर बच्चे को सुनाई जाती है ताकि वह साहसी और वीर बनें। महिला सशक्तिकरण का तो यह अतुलनीय उदाहरण है।

वीर सपूत मंगल पांडेय
भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, लेकिन आजादी पाने के लिए हमने वर्षों तक लड़ाई लड़ी। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सबसे पहले 1857 में बिगुल फूंकी गई और इसे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में पैदा हुए मंगल पांडेय ने अंजाम दिया था। मंगल पांडेय ने 1857 में भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मंगल पांडेय भारत के ऐसे वीर सपूत थे, जिन्होंने ये एहसास दिलाया कि अगर हम चाहे तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। उन्हीं के बदौलत आजादी की लड़ाई ने रफ्तार पकड़ी और हम आजाद हुए।

डॉ राजेन्द्र प्रसाद
भारत गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति एवं महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारत गणराज्य का संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने भारत के पहले मंत्रिमंडल में 1946 एवं 1947 मेें कृषि और खाद्यमंत्री का दायित्व भी निभाया था। सम्मान से उन्हें प्रायः ‘राजेन्द्र बाबू’ कहकर पुकारा जाता है।

मोहनदास करमचन्द गांधी
मोहनदास करमचन्द गांधी जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार करने के समर्थक अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत सहित पूरे विश्व में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें संसार में साधारण जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है।
जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे और स्वतन्त्रता के पूर्व और पश्चात् की भारतीय राजनीति में केन्द्रीय व्यक्तित्व थे। महात्मा गांधी के संरक्षण में, वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने 1947 में भारत के एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापना से लेकर 1964 तक अपने निधन तक, भारत का शासन किया। वे आधुनिक भारतीय राष्ट्र-राज्य – एक सम्प्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, और लोकतान्त्रिक गणतन्त्र – के वास्तुकार माने जाते हैं। कश्मीरी पण्डित समुदाय के साथ उनके मूल की वजह से वे पण्डित नेहरू भी बुलाए जाते थे, जबकि भारतीय बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के रूप में जानते हैं।

चन्द्रशेखर आजाद
चन्द्रशेखर ‘आजाद भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् 1927 में ‘बिस्मिल’ के साथ 4 प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।

भगत सिंह
भगत सिंह भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में बर्नी सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल
गुजरात के खेड़ा जिले में 31 अक्तूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ था। एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले पटेल ने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर भविष्य में खास बन गया। वह आजादी की जंग का हिस्सा बने। इस दौरान उन्होंने शराब, छुआछूत और स्त्री अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। हिंदू मुस्लिम एकता को बनाए रखने का प्रयास जारी रखा और आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए।


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