रामानुजगंज विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए जनता का मूड मीटर
रामानुजगंज विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए जनता का मूड मीटर
बलरामपुर। विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है छत्तीसगढ़ की रामानुजगंज विधानसभा सीट की। बलरामपुर जिले में आने वाली रामानुजगंज विधानसभा सीट बेहद खास मानी जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां से बीजेपी के कद्दावर नेता रामविचार नेताम 1990 से यहां से लगातार पांच बार विधायक चुने गए लेकिन 2013 में कांग्रेस के बृहस्पति सिंह ने उन्हें 11 हजार से अधिक वोटों से शिकस्त दी। बीजेपी नेता को हराने के बाद बृहस्पति सिंह का आत्मविश्वास उनकी बॉडी लैंग्वेज और उनकी बातों में साफ दिखता है। लेकिन उनके कार्यकाल में कुछ ऐसे मुद्दे ऐसे हैं, जिनका जवाब विधायकजी को चुनावी मैदान में देना होगा कि जनता क्यों उनको दोबारा कुर्सी पर बिठाए।
आप इसे कांग्रेस विधायक बृहस्पति सिंह का बीजेपी के कद्दावर नेता रामविचार नेताम को हराने के बाद पैदा हुआ आत्मविश्वास कहें या जिस जनता ने उन्हें जीत दिला? उस पर उनका भरोसा। लेकिन चुनाव नजदीक आने के साथ ही विधायक के तेवर कुछ ज्यादा ही तीखे हो चले हैं। नेताजी का आत्मविश्वास उनकी बातों में साफ झलकता है। लेकिन कांग्रेस विधायक के लिए इस बार जीत की राह इतनी आसान भी नहीं रहने वाली। कई ऐसे मुद्दे हैं जो आगामी चुनाव में उनके खिलाफ जा सकते हैं। इसमें सबसे बलरामपुर की सीमा पर उत्तर प्रदेश में बन रहा कन्हर बांध सबसे बड़ा मुद्दा है। कन्हर बांध के बनने से छत्तीसगढ़ के कई गांव डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। इस बार के विधायक के सामने एक और चुनौती है और वो है रामचंद्रपुर ब्लाक। कहने को तो ये ब्लाक है, लेकिन यहां की सारी सुविधाएं और शासकीय कार्यालय रामानुजगंज को मिले हुए हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर लोगों में नाराजगी है।
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चुनावी साल है तो बीजेपी भी इन मुद्दों को हथियार बनाकर कांग्रेस विधायक को घेरने में जुट गई है। लेकिन विधायक महोदय विपक्ष के हमलों का जबाव देते नजर आते हैं। रामानुजगंज की जनता ने जिस भरोसे पर वृहस्पति सिंह को अपना नेता चुना था। उस भरोसे पर वो कितना खरा उतरे हैं। ये तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा। कुल मिलाकर रामानुजगंज विधानसभा में सियासी घमासान होना तय है।
चुनावी साल है तो रामानुजगंज में सियासी पारा फिर चढ़ने लगा है। टिकट के लिए नेता अपनी-अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुट गए हैं। संभावित उम्मीदवारों की बात की जाए तो बीजेपी में कोई नाम अभी तय नहीं हुआ है। पांच बार के विधायक रामविचार नेताम को लेकर फिलहाल संशय की स्थिति बनी हुई है। दूसरी तरफ कांग्रेस की तरफ से बृहस्पति सिंह फिर से जनता के सामने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में होंगे। ऐसे में एक बार फिर यहां दिलचस्प सियासी घमासान देखने को मिल सकता है।
2008 के पहले रामानुजगंज विधानसभा क्षेत्र पाल के नाम से जाना जाता था और पिछला चुनाव हारने वाले रामविचार नेताम की पहचान यहां पाल के लाल के नाम से होती है। 1990 से लगातार पांच चुनाव जीतने वाले रामविचार को साल 2013 में कांग्रेस के बृहस्पति सिंह से हार का सामना करना पड़ा था। अब 2018 के चुनावों में बीजेपी पिछले चुनाव में मिली हार का बदला लेने की तैयारी में जुट गई है। हालांकि रामविचार नेताम खुले मन से तो ये नहीं कह रहे हैं कि वो चुनाव लड़ेंगे, लेकिन इशारों में वो जरूर बता रहे हैं कि उनकी चुनाव लड़ने की इच्छा जरूर है। हालांकि पार्टी के पदाधिकारी सीट को जीतने का दावा जरूर कर रहे हैं।
कांग्रेस के लिए रामानुजगंज सीट 23 वर्षों तक अबूझ पहेली बनी रही, लेकिन इस पहेली को साल 2013 में कांग्रेस के बृहस्पति सिंह ने तोड़ दिया इसलिए आगामी चुनाव में भी वृहस्पति सिंह कांग्रेस से टिकट के प्रबल दावेदार हैं। कभी बीजेपी के गढ़ रहे रामानुजगंज में जीत हासिल कर कुर्सी पर बैठी हुई कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए ही आने वाली लड़ाई आसान नहीं दिख रही है। माना जा रहा है कि रामविचार नेताम अपने मुद्दे, विकास की बातें और उपलब्धियों के साथ चुनाव मैदान में उतरेंगे तो वहीं विधायक की कुर्सी पर बैठे बृहस्पति भी बीजेपी सरकार पर आरोपों की बौछार करते हुए फिर से कुर्सी पाने की पूरी कोशिश करेंगे।
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सीट के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो रामानुजगंज विधानसभा पहले पाल के नाम से जानी जाती थी। अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर 1990 तक कांग्रेस का कब्जा हुआ करता था लेकिन 1990 से लेकर 2013 तक इस सीट पर बीजेपी काबिज रही। 2013 में इस सीट का सियासी समीकरण एक बार फिर बदला, जब बीजेपी के कद्दावर नेता और मंत्री रामविचार नेताम को कांग्रेस नेता बृहस्पति सिंह ने शिकस्त दी। इस बार फिर से कांग्रेस को अपनी कुर्सी बचाए रखने की चुनौती है।
कई कुदरती अजूबों को अपने भीतर समेटे हुए रामानुजगंज विधानसभा क्षेत्र बेहद खूबसूरत इलाका है। झारखंड की सीमा से लगे इस विधानसभा क्षेत्र में कभी नक्सलियों की दहशत थी और दिन के उजाले में भी सेमरसोत के इन जंगलों के भीतर बने रास्ते से गुजरने की हिम्मत शायद ही कोई जुटा पाता था। लेकिन अब हालात बदल चुका है और नक्सलियों के पैर इस इलाके से लगभग उखड़ चुके हैं। 2008 में परिसीमन होने से पहले इस विधानसभा को पाल के नाम से जाना जाता था। सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1962 में सामान्य रही इस सीट पर राजपरिवार के चंडीकेश्वर शरण सिंहदेव ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीता। 1967 में इस सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व कर दिया गया। कांग्रेस के देवसाय मरावी ने 1967 और 1972 के चुनाव जीते। 1977 में देशव्यापी कांग्रेस विरोध की लहर यहां भी दिखी और जनता पार्टी के शिवप्रताप सिंह ने यहां से चुनाव जीता। लेकिन 1980 में एक बार फिर से देवसाय मरावी ने इस सीट को कांग्रेस की झोली में डाल दिया। 1985 में फिर से देवसाय मरावी कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुने गए। 1990 में पाल विधानसभा की सियासी कहानी बदल गई। जब शिक्षक की नौकरी छोड़कर रामविचार नेताम ने बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा और 1990 से लेकर 2008 तक हुए लगातार पांच चुनावों को जीतकर विधायक की कुर्सी बरकरार रखी। लेकिन बीजेपी की टिकट पर लगातार छठवीं बार चुनाव लड़ रहे रामविचार नेताम को 2013 में कांग्रेस के बृहस्पति सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर ये कुर्सी कांग्रेस के हाथों में चली गई।
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1 लाख 80 हजार 858 मतदाता वाले इस विधानसभा की जातिगत समीकरणों की बात करें तो यहां खैरवार और गोंड एक बड़ी सियासी ताकत माने जाते हैं। यहां यादव और कोरकू मतदाताओं की तादाद भी अच्छी खासी है। इस विधानसभा क्षेत्र में बलरामपुर और रामचंद्रपुर विकासखंड शामिल हैं। यहां एक नगर पालिका बलरामपुर और एक नगर पंचायत रामचंद्रपुर आते हैं। कुल मिलाकर यहां विकास का मुद्दा ही उम्मीदवारों की हार जीत का फैसला करता आया है, लेकिन इस बार चेहरा भी चुनाव का मुद्दा बनेगा ऐसा माना जा रहा है।
वेब डेस्क, IBC24

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