Samgra kranti Diwas

आज ही के दिन 1974 में हुई थी संपूर्ण क्रांति की घोषणा, जानें किसने इंदिरा के खिलाफ फूंका था बिगुल

Samgra kranti Diwas जानें 5 जून 1974 में जयप्रकाश नारायण की ‘संपूर्ण क्रांति’ ने भारतीय राजनीति को कैसे बदल दिया

Edited By :   Modified Date:  June 5, 2023 / 10:32 AM IST, Published Date : June 5, 2023/10:31 am IST

Samgra kranti Diwas: 5 जून, 1974 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने पटना के गांधी मैदान से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका था। तब उन्‍होंने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था। इस दौरान लाखों की भीड़ उमड़ी थी। ‘सिंघासन खाली करो कि जनता आती है’ का नारा भी यहीं दिया गया था। इस रैली में कवि रेणु ने जयप्रकाश नारायण के स्‍वागत में दिनकर के क्रांति के भाव जगाती कविताओं का पाठ किया था। ये आजादी के बाद स्वतंत्र भारत में संपूर्ण क्रांति अनोखा प्रयोग था।

आमसभा में बदल गया जुलूस

Samgra kranti Diwas: पांच जून 1974 को राजधानी की सड़कों पर विशाल जुलूस निकाला जो बेली रोड से होते हुए गांधी मैदान पहुंचा था। आंदोलनकारियों का जुलूस गांधी मैदान में आते-आते आम सभा में तब्दील हो गया था। सभा में पहली बार जेपी ने संपूर्ण क्रांति की घोषणा की थी। उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि संपूर्ण क्रांति राजनीति नहीं, व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई है। सभा के दौरान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने जेपी का स्वागत किया था। उन्होंने राष्ट्रकवि दिनकर की कविता पढ़ी थीं। जेपी को सुनने के लिए बिहार के अलग-अलग जिलों से लोग आए थे। मंच पर जेपी के सामने आचार्य राममूर्ति कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे।

भीड़ में था अनुशासन

Samgra kranti Diwas: कवि सत्यनारायण बताते हैं कि गांधी मैदान में जेपी को सुनने के लिए लाखों की भीड़ थी। जेपी ने मैदान के बीचो-बीच बने मंच से लोगों को संबोधित किया था। गांधी मैदान के चारों ओर पुलिस का पहरा था। लोगों ने जेपी की बातों को शांतिपूर्वक सुना था। उन्हें सुनने को लेकर लोग बैरक को भी लांघ कर मैदान में पहुंचे थे। मंच पर जेपी के साथ नाना भाई देशमुख, आचार्य राममूर्ति आदि भी थे। भीड़ के बावजूद लोग अनुशासन में थे।

रेणु के स्वागत गीत पर बजी थीं तालियां

Samgra kranti Diwas: सभा के दौरान रेणु ने राष्ट्रकवि दिनकरजी की कविता ‘झंझा सोई, तूफान रुका, प्लावन जा रहा कगारों में, जीवित है सबका तेज किंतु अब भी तेरे हुंकारों में, है जयप्रकाश वह जो न कभी सीमित रह सकता घेरे में, अपनी मशाल जो जला बांटता फिरता ज्योति अंधेरे में.. पेश कर उनका स्वागत किया था। तालियों की गडग़ड़ाहट और जेपी अमर रहे की आवाज मैदान में गूंज उठी थी।

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