The Big Picture With RKM: भागवत के बाद इंद्रेश का संदेश! क्या अहंकार से हुई से हार? BJP पर हमले के पीछे RSS का मकसद क्या ? |

The Big Picture With RKM: भागवत के बाद इंद्रेश का संदेश! क्या अहंकार से हुई से हार? BJP पर हमले के पीछे RSS का मकसद क्या ?

The Big Picture With RKM: चुनाव नतीजों के बाद जिस तरीके से शीर्ष पर बैठे आरएसएस के नेताओं के बयान आ रहे हैं उससे यह लगता है कि बीजेपी और आरएसएस के बीच में सब कुछ ठीक नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि चुनावों से पहले इन दोनों में जो समन्वय नहीं हो पाया उसकी भड़ास अब निकल रही है।

Edited By :   Modified Date:  June 15, 2024 / 12:04 AM IST, Published Date : June 15, 2024/12:02 am IST

रायपुर: लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद से आरएसएस के दिग्गजों का बीजेपी को स्ट्रांग मैसेज देना लगातार जारी है। कभी नसीहत तो कभी तंज और तंज के साथ-साथ कुछ थोड़ी बहुत तल्खी भी सामने आ रही है। आखिर संघ कह क्या चाहता है? बीजेपी को क्या इसमें नजर आता है क्या इसके मायने निकलते है?

चुनाव नतीजों के बाद जिस तरीके से शीर्ष पर बैठे आरएसएस के नेताओं के बयान आ रहे हैं उससे यह लगता है कि बीजेपी और आरएसएस के बीच में सब कुछ ठीक नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि चुनावों से पहले इन दोनों में जो समन्वय नहीं हो पाया उसकी भड़ास अब निकल रही है। अब ये जो इन दोनों के नरम गरम रिश्ते हैं वो आज खबरों में इसलिए आए कि एक बड़े सीनियर एक्टिव नेता इंद्रेश कुमार जो कि आरएसएस और बीजेपी के बीच में भी कभी-कभी समन्वय का काम करते हैं, उन्होंने यह कहा कि जिसको अहंकार हो जाता है, भले ही वह राम भक्त हो, उसको राम बहुमत से दूर कर देते हैं। उससे पहले मोहन भागवत भी इस तरह की बात कह चुके हैं। आरएसएस के मुख पत्र और इंग्लिश के ऑर्गेनाइजर में रतन शारदा जो कि आरएसएस के काफी एक्टिव मेंबर हैं उन्होने भी यह लिखा कि जो बीजेपी है वह अपनी करनी की वजह से इस बहुमत को नहीं पा पाई। तो आखिर यह आरएसएस वाले कहना क्या चाह रहे हैं?

मुझे यह लगता है कि जो आरएसएस के बयान आ रहे हैं उसका लबो लुआब यह है कि जो बीजेपी बहुमत या कहे कि आशाओं के अनुरूप जो प्रदर्शन था, वह नहीं कर पाई उसके पीछे तीन ‘अ’ हैं, वे कौन से तीन अ है? अहंकार मतलब एरोगेंस, आत्म संतुष्टि यानी कंप्लेसेंट और अति आत्म विश्वासी हो जाना यानी ओवर कॉन्फिडेंट ये तीन आ हैं जो बीजेपी के प्रदर्शन ना कर पाने के पीछे हैं।

अब सबसे पहले अहंकार की बात — इंद्रेश कुमार ने यह कहा कि ये अच्छी बात है कि आप राम भक्त हो आप राम का आपने मंदिर बनवाया लेकिन जैसे धीरे-धीरे आप अहंकारी होते गए तो आपको राम ने 241 पर ही रोक दिया। और जो राम के विरोधी थे उनको तो सब मिलजुल के भी 234 से आगे नहीं जाने दिया। यह बोले कि कि हम जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे, हम राम को लाए हैं जनता हमको लाएगी। यह अहंकार ऐसा होना नहीं चाहिए, इस तरह का अगर आप अहंकार करोगे तो भगवान के राम राज्य में सब न्याय हो जाता है और आपके अहंकार की वजह से आप इसको नहीं प्राप्त कर पाए।

दूसरी तरफ जो मोहन भागवत ने कहा था कि मोदी की गारंटी, मोदी की सरकार, हर घर मोदी, रात मोदी दिन मोदी, इस तरीके का अहंकार नहीं करना चाहिए। जो सेवक होता है वह मैं से ऊपर उठकर होता है वो कभी भी अच्छे काम करने का सेवा करने का अपने ऊपर या मैं से ऊपर उठता है तभी वह सेवक कहलाता है तो यह सब बातों से जो हमको समझ में आ रहा है कि आप राम भक्त तो हो सकते हैं लेकिन राम भक्त होने के साथ आपको अहंकार और घमंडी नहीं होना चाहिए।

दूसरी बात हुई आत्म संतुष्ट हो जाना। मतलब अबकी बार 400 पार या फिर आएगा तो मोदी ही। अरे भाई मोदी आएगा तब जब आप मेहनत करोगे, जब जो कार्यकर्ता है उनकी सुनोगे। तो इसमें जो उनका मानना है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं ने मतलब यह समझ लिया कि बस यह कहने से नारा लगाने से कि आएगा तो मोदी ही मोदी जी आ जाएंगे। ऐसा नहीं होता है आपको जमीन पर काम करना पड़ता है, आपको लोगों से मिलना जुलना पड़ता है। एक नेता तो यह कहते सुने गए कि देखो अगर मैं आपके बीच नहीं आ पाया हूं आपका काम नहीं कर पाया हूं तो मेरी गलतियों की सजा मोदी जी को मत देना। लेकिन ऐसा होता नहीं है जनता अगर आप उसकी 5 साल नहीं सुनोगे तो पाच सेकंड में वो दूसरी पार्टी का बटन दबा देती है तो इस तरह से जनता होती है। आप इतने ज्यादा आत्म संतुष्ट हो गए थे, कंप्लेसेंट हो गए थे कि बस अब तो मोदी जी ने कमाल कर दिया है और उनके नाव पर हमारी वैतरणी पार हो जाएगी। ऐसा हो नहीं पाया।

तीसरी बात अति आत्मविश्वास ओवर कॉन्फिडेंट होना। आप इतना ओवर कॉन्फिडेंट थे कि बस 400 पार का नारा आप लगा देना। तो जो ऑर्गेनाइजर में रतन शारदा लिखती हैं कि चुनावों से पहले बीजेपी ने आरएसएस के जो स्वयंसेवक होते हैं जो कार्यकर्ता होते हैं उनसे भी मदद की मांग नहीं की जबकि हमने पिछले चुनावों में देखा है कि आरएसएस जिस तरीके से पूरे देश में फैला हुआ है, उसकी मदद से बीजेपी को बहुत फायदा होता है, वो लिखती है कि भाई लगता है कि मोदी के नाम पे मोदी की चमक में कार्यकर्ता की आंखें इतनी चौंधिया गई कि उसकी आंखें खुली नहीं रह पाई, वह जमीन की हकीकत ही नहीं देख पाए, जमीन में क्या चल रहा है, उनको समझ में नहीं आया और वह उसमें इतने अति आत्मविश्वास से काम कर रहे थे कि उनको लगा कि बस अब मोदी मोदी है मोदी की चमक है इसी में वह जीत जाएंगे। यही वो गलती कर बैठे तो इस तरीके की जो बातें चल रही है, उससे ये निकल के आ रहा है। मतलब इससे नजर आता है कि इनमें आपस में कहीं ना कहीं तो कुछ ना कुछ गड़बड़ है। कुछ समन्वय की कमी है ।

अब मेरा ऐसा मानना है कि अगर आप इतना शुभचिंतक हो इतना सोचते हो तो आपस में बैठो जो गलतफहमियां है उन्हें दूर करो और एक कोर्स करेक्शन कर लो । हालांकि आने वाले दिनों में केरल में आरएसएस की एक बैठक होने वाली है तो मुझे लगता है कि उससे कुछ और या तो बयान निकलेंगे या फिर बीजेपी के लिए कुछ मार्गदर्शन निकलेगा। तो ये जो कहानी है ये खत्म नहीं हुई है अभी ये चलने वाली है। अभी ये एक के बाद एक जिस तरह से आरएसएस नेताओं के बयान आ रहे हैं, ये कह सकते हैं कि जो परिणाम निकल के सामने आए भारतीय जनता पार्टी को अब उनकी जमीन दिखाई जा रही है कि कहां-कहां पर आपसे गलती हुई और अहंकार किस तरह से पार्टी को ले डूबता। ये तो ठीक है कि इस तरह के आंकड़े आ गए कि सरकार बना ली।

इन सब के बीच एक और बात एक और महत्त्वपूर्ण इशू है। जीत के बाद अक्सर उत्साह और एकता दिखती है लेकिन छत्तीसगढ़ में सत्ता में लौटी बीजेपी में क्या सब कुछ ठीक है क्योंकि कुछ तस्वीरें ऐसी सामने आई हैं जहां पर एक समारोह के दौरान एक मंच था एक ही वक्त पर दो तस्वीरें निकल के सामने आईं, इसे किस तरह से देखा जा रहा है?

तो आपको बता दूं कि मैंने आज इस पर ट्वीट भी किया था क्योंकि ये जो दोनों फोटो हैं यह जो अपनी कहानी वो खुद कह रही है और राजनीति में एक दूसरे को कैसे काटा जाता है उसको बयां कर रही हैं। सीएम ने अपनी फोटो में से बृजमोहन को काट दिया और बृजमोहन ने अपनी में से सीएम को। ऊपर से बृजमोहन कह रहे हैं कि अभी तो मैं छ: महीने मंत्री रह सकता हूं। अब बृजमोहन जो है वह ठहरे छत्तीसगढ़ के धुरी नेता और पुराने चावल। उनकी अपनी सरकार चलती है यहां पर, हम सब जानते हैं, लेकिन जो असली सरकार है उसकी डोर तो विष्णुदेव साय के हाथ में है अब कोई यह डोर ना काट जाए इसीलिए तो बृजमोहन को लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया था लेकिन अगला कह रहा है कि जब पार्टी मुझे निर्देश देगी तब मैं इस्तीफा दूंगा और यहां से हटूंगा। अगले दिन सबसे पहले मतलब सीएम ने उनको फोटो से काट दिया अब बात निकली है देखिए दिन भर इस पर चर्चा हुई है इस पर ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं है मैं इतना ही कहूंगा और बाकी जिसके पीछे क्या राजनीति चल रही है यह हम भी समझते हैं और जनता भी समझ रही है वैसे कहा जाता है हर तस्वीर के दो पहलू होते हैं लेकिन यहां दो तस्वीर हैं और उसका क्या पहलू है इसका फैसला हम जनता पर ही छोड़ते हैं। फिलहाल आज की बिग पिक्चर पर यह आज का सबसे संभवत: सटीक एक आंसर हो सकता है, विश्लेषण हो सकता है।

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