बैतूल: Betul Lok Sabha seat 2024 लोकसभा चुनाव के लिए रणभेरी बच चुकी है। चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश के बैतूल लोकसभा सीट पर तीसरे चरण में मतदान कराने का फैसला किया है। इस सीट पर बीएसपी उम्मीदवार अशोक भलावी की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। उनके निधन के बाद इस सीट पर चुनावी प्रक्रिया रोक दी गई थी। इस सीट पर दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना था।
मध्य प्रदेश का बेतूल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र भारत की चुनावी राजनीति में अपने महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 2019 के आम चुनावों में, यहाँ बहुत मजेदार चुनावी मुकाबला देखने को मिला था। भाजपा के प्रत्याशी दुर्गादास उइके ने पिछले चुनाव में 3,60,241 मतों के अंतर से जीत दर्ज़ किया। उन्हें 8,11,248 वोट मिले। दुर्गादास उइके ने कांग्रेस के उम्मीदवार रामू टेकम को हराया जिन्हें 4,51,007 वोट मिले। बेतुल की जनसांख्यिकी विविधताओं से भरी है और चुनावी नजरिए से यह मध्य प्रदेश के लोक सभा क्षेत्रों में रोचक और अहम है। इस निर्वाचन क्षेत्र में विगत 2019 के लोक सभा चुनाव में 78.20% मतदान हुआ था।
2014 चुनाव में इस सीट पर INC को हराकर गठबंधन एनडीए के प्रत्याशी ज्योति धुर्वे विजयी रहे। कुल मतों 10,47,720 में से 6,43,651 मत हासिल कर BJP ने जीत दर्ज की। 2009 लोकसभा चुनाव में BJP ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। 2014 लोकसभा चुनाव में कुल 65.17% मतदाताओं ने मतदान किया। 17वीं लोकसभा चुनने के लिए बैतूल सीट पर, 2019 आम चुनाव के पांचवे चरण में यानी 6 मई को मतदान हुआ था।
इस बार 2024 में मतदाताओं में खासा उत्साह है और वे लोकतंत्र में वोटों की ताकत दिखाने को और ज़्यादा जागरुक और तैयार हैं। इस वर्ष 2024 में बेतूल लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी से दुर्गा दास उइके और इंडियन नेशनल कांग्रेस से रामू टेकम प्रमुख उम्मीदवार हैं।
बैतूल लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यह एक ग्रामीण संसदीय क्षेत्र है जहां साक्षरता दर 68.44% के करीब है। यहां 8,36,846 पुरुष और 7,70,954 महिलाएं मतदाता हैं। 31 मतदाता अन्य अथवा थर्ड जेंडर हैं। यहां अनुसूचित जाति की आबादी 11.28% के लगभग है और अनुसूचित जनजाति 40.56% के करीब है। बैतूल लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं, मुलताई, घोड़ाडोंगरी, हर्दा, अमला,भैंसदेही, हरसूद,बैतूल, तिमरनी विधानसभा सीटें हैं।
बैतूल लोकसभा में सबसे पहले 1952 में चुनाव हुआ था। तब कांग्रेस के भीकूलाल चांडक ने जीत दर्ज की थी। 1957, 1962, 1967 और 1971 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी जीत दर्ज करती रही। लेकिन 1977 में सुभाष चंद्र अहूजा ने भारतीय लोकदल की टिकट पर यहां से जीत दर्ज की और कांग्रेस से यह सीट छीन ली। 1980 में कांग्रेस के गुफरान आजम संसद बने। इसके बाद 1984 में अशलम शेरखान ने कांग्रेस की टिकट पर जीत हासिल की। असलम शेर खान अंतरराष्ट्रीय हाकी खिलाड़ी थे। उन्होंने 1975 में कुआलालंपुर में आयोजित विश्वकप में भारतीय हाकी टीम में शामिल रहकर स्वर्ण पदक जीतने में विशेष भूमिका निभाई थी।
मां ताप्ती की उद्गम स्थली और सतपुड़ा के जंगलों से घिरे बैतूल संसदीय क्षेत्र में आदिवासी वर्ग के मतदाताओं का अच्छा प्रभाव है, ऐसे में यहां आदिवासी वर्ग ही हार-जीत का फैसला करता है। बात अगर बीजेपी की जाए तो बैतूल लोकसभा सीट पर भाजपा की मजबूत पकड़ मानी जाती है, 1996 से बीजेपी लगातार बैतूल सीट पर चुनाव जीत रही है। हालांकि पार्टी चुनावों में चेहरे जरूर बदलती रही, लेकिन जीत का सिलसिला बरकरार रहा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां बड़ी जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस ने 1991 में आखिरी बार इस सीट पर जाती हासिल की थी। ऐसे में इस बार चुनाव का भी दिलचस्प होने की पूरी उम्मीद है।