सत्र में ठप रहा काम.. हेडगेवार पर संग्राम, 5 दिन का सत्र, 5 घंटे में खत्म! शिवराज सरकार के इस ऐलान के बाद गरमाई सियासत
सत्र में ठप रहा काम.. हेडगेवार पर संग्राम, 5 दिन का सत्र, 5 घंटे में खत्म! Politics heats up after this announcement of Shivraj government
भोपालः पहली बात 5 दिन का मॉनसून सत्र सिर्फ़ पांच घंटे में समाप्त हो गया। यानी हमारी और आपकी बात को न तो वो विधानसभा की पटल पर रखा गया और न हमारे विषय पर चर्चा हो पाईं। मतलब हमारी समस्या को इग्नोर कर दिया गया। आप अपने विधायकों को लेकर सदन का मार्च कीजिए या हंगामा..अब तो चिड़िया खेत चुग गई क्योंकि 2022 का मानसून सत्र अब कभी नहीं आएगा। मध्यप्रदेश की जनता एक सत्र पीछे हो गई। दूसरी बात बीजेपी और कांग्रेस के विधायकों को जान का ख़तरा है। सवाल ये कि आपके पास दुनिया की सारी सुविधा है फिर भी आपकी जान को ख़तरा है? ज़रा सोचिए उनके बारे में जिनकी बात आपको उठना था, सदन सुनाना था..वो तो नहीं हुआ?
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मध्यप्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया. पांच दिनों तक चलने वाला सत्र कुल 5 घंटे ही चला। इस दौरान विधानसभा में न तो जरूरी मुद्दों पर चर्चा हुई न ही प्रश्नकाल जैसे महत्वपूर्ण समय में जनता से जुड़े सवाल लिए जा सके..पहले दिन किसानों के मुद्दे पर दूसरे दिन पोषण आहार के बाद तीसरे दिन आदिवासियों पर अत्याचार और आदिवासी विधायकों के अपमान को लेकर जमकर सियासत हुई। पुलिस की कार्रवाई के विरोध में कांग्रेस विधायक पांचीलाल मेढा ने अपने कपड़े फाड़ लिए। मेढा फटे पकड़े पहने ही विधानसभा से बाहर निकले। उन्होंने मीडिया के सामने बयान देते हुए बीजेपी विधायकों पर गंभीर आरोप लगाए। दूसरी ओर कल तक कांग्रेस के विधायकों से जान की सुरक्षा की मांग करने वाले बीजेपी विधायक उमाकांत शर्मा ने कहा कि कांग्रेस सिर्फ़ ड्रामेबाज़ी कर रही है।
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हालांकि तीसरे दिन सत्ता पक्ष और विपक्ष के भारी हंगामे के बीच बिना चर्चा के सरकार ने 9 हजार 519 करोड़ का अनुपूरक बजट पास कराया। इसमें RSS नेता केशव बलिराम हेडगेवार की याद में बनाने जा रही म्यूजियम के लिए 1 करोड़ रुपए का प्रावधान भी शामिल है..जिसे लेकर अब सियासत शुरू हो गई है।
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मध्यप्रदेश का मानसून सत्र 17 सितंबर तक चलना था, लेकिन 15 सितंबर को ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। हंगामे के चलते न तो आरोपों का जबाब मिला न ही जनता के मुद्दे सदन में उठ पाए। वैसे ये पहला मौका नहीं है जब हंगामे की वजह से तय वक्त से पहले ही सत्रावसान हुआ हो। विधानसभा की कार्यवाही जल्द खत्म होना निश्चित तौर पर लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है। हालांकि सरकार और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप लगाकर जबाबदेही से बचते नजर आ रहे हैं।

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