बालाघाट विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए जनता का मूड-मीटर

बालाघाट विधानसभा सीट के विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड, देखिए जनता का मूड-मीटर

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  • Publish Date - July 16, 2018 / 02:28 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:47 PM IST

बालाघाट। विधायकजी के रिपोर्ट कार्ड में आज बारी है मध्यप्रदेश के बालाघाट विधानसभा सीट के विधायकजी की। इस विधानसभा क्षेत्र का इतिहास और मिजाज जानने से पहले हम बात करते हैं यहां के सबसे बड़े मुद्दे की। तो हम आपको बता दें कि इस क्षेत्र में आज सबसे बड़ा मुद्दा खुद यहां के विधायक और राज्य के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन बन गए हैं। दरअसल चुनाव के दौरान किए गए बीजेपी विधायक के वादों के अब तक पूरा नहीं होने से क्षेत्र के वोटर्स में नाराजगी बढ़ी है। लिहाज़ा गौरीशंकर बिसेन को अपने अधूरे वादों का हिसाब आने वाले विधानसभा चुनाव में देना पड़ेगा।

मध्यप्रदेश की हाईप्रोफाइल और खास सीटों में शामिल है बालाघाट विधानसभा। खास इसलिए कि यहां के विधायक गौरीशंकर बिसेन मध्यप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री है। 6 बार के विधायक, दो बार के सांसद बिसेन फिलहाल मध्यप्रदेश में कृषि मंत्री हैं। उनके मंत्री बनने के बाद बालाघाट के किसानों को लगा था कि उनकी सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी। लेकिन न तो गन्ना किसानों के लिए शुगर फैक्ट्री लगी और न ही बांस उत्पादकों के लिए पेपल मिल शुरू हुआ। लिहाजा स्थानीय किसानों में विधायक गौरीशंकर बिसेन को लेकर जबरदस्त गुस्सा है।

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अब जब 2018 में फिर विधानसभा चुनाव सिर पर है तो इन सभी वादों का जवाब बीजेपी विधायक के पास है। उनके मुताबिक गन्ना किसानों के लिए शुगर मिल और बांस उत्पादकों के लिए कागज़ कारखाना अब तक नहीं खोल पाने की वजह घाटे का सौदा बता रहे हैं। जाहिर है इसे लेकर वो अब विपक्ष के निशाने पर हैं।

किसानों की नाराजगी के अलावा बालाघाट में कई ऐसी समस्याएं हैं, जो आने वाले चुनाव में मंत्रीजी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। 2013 के चुनाव में गौरीशंकर बिसेन ने सरेखा में रेलवे ओवरब्रिज बनाने का वादा किया था, जो अब तक पूरा नहीं हुआ है। गौरीशंकर बिसेन सरेखा मे रेलवे ओवर ब्रिज अब तक नहीं बन पाने का जिम्मेदार रेलवे को ठहरा रहे हैं।

इन बड़े मुद्दों के अलावा भी कई ऐसी समस्याएं हैं, जिनका जवाब बीजेपी विधायक को देना होगा। दरअसल बालाघाट शहर में बारिश के दौरान नालियों का भर जाना, गर्मियों में पेयजल की किल्लत अभी भी गंभीर समस्या बनी हुई है। ऐसे में अधूरे वादों के बीच चुनावों में जाना गौरीशंकर बिसेन को नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन 6 बार से विधायक औऱ मध्यप्रदेश सरकार में कृषि मंत्री रहे गौरीशंकर बिसेन अब भी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं। उन्हें उम्मीद है कि बालाघाट के किसान और उनका खांटी वोट बैंक उन्हें धोखा नहीं देगा।

बालाघाट के सियासी इतिहास की बात की जाए तो बालाघाट में दो ही पार्टियों का वर्चस्व रहा है। 1951 से 1985 तक पहले कांग्रेस का कब्जा रहा फिर 1985 से अब तक बालाघाट पर बीजेपी ने अपना मजबूत कब्जा जमा लिया है। हालांकि 1985 से 2013 के बीच में साल 1998 के दौरान 1 बार कांग्रेस फिर जीती। इतना ही नहीं कांग्रेस पिछले चुनाव में अपनी जमानत भी जब्त करवा चुकी है। बालाघाट में जातिगत समीकरण को देखते हुए सपा और बीएसपी जैसी पार्टियां भी मैदान मे आती रहीं हैं। लेकिन बालाघाट के वोटर्स ने उन पर कभी भरोसा नहीं जताया।

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बालाघाट में 1985 से बीजेपी का वर्चस्व है तो इसमें सबसे बड़ी भूमिका गौरीशंकर बिसेन की रही है.. दरअसल 1985 से छात्र राजनीति से निकलकर भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। हालांकि 1998 में लोकसभा चुनाव के लिए बिसेन ने बालाघाट सीट छोड़ी और सीट पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया। वैसे सीट के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1951 में अस्तित्व में आई बालाघाट विधानसभा सीट 1985 तक कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा। 1951 में यहां हुए पहले चुनाव में कन्हैया लाल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। इसके बाद वो 1957 से 1980 तक लगातार पांच बार बालाघाट से विधायक चुने गए। 1980 में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस के ही सुरेंद्र नाथ खरे ने जीत दर्ज की। लेकिन 1985 के बाद यहां का सियासी समीकरण बदला, जब गौरीशंकर बिसेन ने पहली बार बीजेपी के टिकट पर यहां चुनाव लड़े और जीतकर विधानसभा पहुंचे। बिसेन बालाघाट सीट से 1985, 1990-92, 1993, 2003, 2008, 2013 तक 6 बार विधायक रहे हैं। 2013 के विधानसभा चुनाव में गौरीशंकर बिसेन को 70 हज़ार 869 वोट मिले तो सपा की अनुभा मुंजारे 68 हजार 993  वोट लेकर दूसरे नंबर पर रही। कांग्रेस इस चुनाव में तीसरे नंबर पर रही।

गौरीशंकर बिसेन अगर बालाघाट में अगर अजेय बने हुए हैं तो इसमें कास्ट फैक्टर भी अहम रहा है। दरअसल गौरीशंकर बिसेन पवार समाज से ताल्लुक रखते हैं और बालाघाट विधानसभा के कुल 2 लाख 16 हजार 419 वोटर्स का 35 फीसदी हिस्सा पवार समाज का ही है। इसके बाद 26 फीसदी हिस्सा लोधी समाज का है। इसके अलावा 22 फीसदी मतदाता गवारी, कलार और कुनबी समाज से आते हैं। जबकि 6 फीसदी आदिवासी और 10 फीसदी दूसरी जाति के वोटर्स भी चुनाव में हार-जीत तय करते हैं। कुल मिलाकर आने वाले चुनाव में भी जिसने यहां जाति समीकरण को साधने में सफलता हासिल की, वो बालाघाट के सियासी बिसातो को जीतने में कामयाब होगा।

चुनाव का वक्त जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है। बालाघाट में सियासी सरगर्मी बढ़ गई है। बैठकों और जनता के दरबार में हाजिरी लगाने का दौर भी जारी है। बालाघाट से बीजेपी विधायक गौरीशंकर बिसेन को टक्कर देने के लिए समाजवादी पार्टी से पिछला चुनाव लड़ीं अनुभा मुंजारे ने भी अपनी तैयारी तेज़ कर दी हैं। कयास लगाया जा रहा है कि 2013 में जमानत जब्त करवा चुकी कांग्रेस इस बार अनुभा मुंजारे पर ही दांव लगा सकती है। हालांकि कांग्रेस के कई नेता भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।

6 बार के विधायक और कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन एक बार फिर बालाघाट में चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। लेकिन इस बार यहां का सियासी समीकरण बीजेपी विधायक के खिलाफ नजर आ रहा है। दरअसल गौरीशंकर के खिलाफ दो धड़ा एक होकर मुकाबला करने की तैयारी में हैं। 2013 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाली अनुभा मुंजारे को लेकर इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ सकती है। वहीं कांग्रेस भी अनुभा मुंजारे के लिए रास्ता खाली करने के लिए तैयार है।

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दरअसल अनुभा मुंजारे बालाघाट नगर पालिका से 2 बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर महापौर बन चुकी हैं। बालाघाट शहर में अनुभा मुंजारे की लोकप्रियता अब भी बनी हुई है। ग्रामीण इलाकों में ज़रुर अनुभा मुंजारे अपना वोट बैंक नहीं बना सकीं हैं। वहीं दूसरी ओर बीजेपी में मौजूदा विधायक के अलावा कोई दूसरा दावेदार नजर नहीं आता। गौरीशंकर बिसेन भी अपने वोट बैंक के साथ मजबूती से मैदान मे हैं। वो राज्य सरकार की उपलब्धियों को लेकर एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं। गौरीशंकर बिसेन का दावा है कि इस बार रिकॉर्ड वोटों से जीत उन्हीं की होगी।

कुल मिलाकर बालाघाट में इस बार सियासी समीकरण दिलचस्प बन रहे हैं। बालाघाट से गौरीशंकर बिसेन को टक्कर देने के लिए कांग्रेस पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ने जा रही है। ऐसे में गौरीशंकर बिसेन के लिए सियासी महासमर 2018 में अपने गढ़ को बचाने के चुनौती होगी।

वेब डेस्क, IBC24