मुंबई, 26 जुलाई (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद और माओवादियों के बीच संबंध से जुड़े मामले में वकील सुरेन्द्र गाडलिंग सहित पांच आरोपियों की ओर से तकनीकी आधार पर जमानत के लिए दायर की गयी (वैधानिक) याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दीं।
न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की खंडपीठ ने गडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, सुधीर धावड़े और रोना विल्सन की जमानत अर्जियों को खारिज कर दिया। विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है।
गाडलिंग ने मूल रूप से वर्ष 2018 में वैधानिक जमानत के लिए सत्र अदालत में आवेदन दायर किया था। तब पुणे पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी।
इस आवेदन में आरोपपत्र दाखिल करने के लिए सत्र अदालत द्वारा पुलिस को दी गई 90 दिन की अतिरिक्त अवधि को ‘अवैध’ बताया गया और कहा गया कि इसलिए आरोपी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत जमानत के हकदार हैं।
उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में गडलिंग ने दावा किया कि विशेष अदालत ने इस तथ्य पर विचार ही नहीं किया कि जांच को पूरा करने की अवधि को बढ़ाना पुणे की अदालत के अधिकारक्षेत्र से बाहर की बात है।
इस मामले में ‘जेसुइट’ पादरी स्टेन स्वामी समेत 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। न्यायिक हिरासत के दौरान स्वामी की एक निजी अस्पताल में मृत्यु हो गई थी।
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है। पुलिस ने दावा किया था कि इसी भाषण के बाद अगले दिन पुणे जिले में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी थी।
पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया कि माओवादियों ने इस सम्मेलन के आयोजन में साथ दिया था। बाद में इस मामले की जांच राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को सौंप दिया गया था।
भाषा
राजकुमार संतोष
संतोष