आईओबी नीत परिसंघ से ऋण धोखाधड़ी में गिरफ्तार व्यवसायी की रिहायी याचिका अदालत ने खारिज की

आईओबी नीत परिसंघ से ऋण धोखाधड़ी में गिरफ्तार व्यवसायी की रिहायी याचिका अदालत ने खारिज की

आईओबी नीत परिसंघ से ऋण धोखाधड़ी में गिरफ्तार व्यवसायी की रिहायी याचिका अदालत ने खारिज की
Modified Date: May 12, 2025 / 09:05 pm IST
Published Date: May 12, 2025 9:05 pm IST

मुंबई, 12 मई (भाषा) मुंबई की एक विशेष अदालत ने इंडियन ओवरसीज बैंक (आईओबी) में करोड़ों रुपये के ऋण घोटाले में एक कारोबारी को आरोपमुक्त करने से इनकार करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया उसके खिलाफ मामला बनता है।

आरोपी प्रेमल गोरागांधी की याचिका को विशेष केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) अदालत के न्यायाधीश बी वाई फड ने 9 मई को खारिज कर दिया था।

सोमवार को उपलब्ध कराए गए विस्तृत आदेश में अदालत ने कहा कि मामला बैंक धोखाधड़ी से संबंधित है। अदालत ने कहा कि आरोपमुक्त करने संबंधी आवेदनों पर निर्णय लेने के चरण में, वह याचिकाकर्ता (आरोपी) द्वारा दायर अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों और दस्तावेजों का विस्तृत आकलन नहीं कर सकती।

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अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत बैंक रिकॉर्ड सहित दस्तावेजों से प्रथम दृष्टया उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत धोखाधड़ी, जालसाजी के साथ-साथ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध का मामला सामने आता है।

सीबीआई ने आरोप लगाया है कि दिवंगत अमिताभ अरुण पारेख सहित पारेख एल्युमिनेक्स लिमिटेड (पीएएल) के निदेशकों ने अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलकर इंडियन ओवरसीज बैंक के नेतृत्व वाले बैंकों के एक परिसंघ के साथ धोखाधड़ी करने के लिए एक आपराधिक साजिश रची थी।

उसने आरोप लगाया है कि पीएएल के ‘टर्नओवर’ को सर्कुलर ट्रेडिंग और जाली लेनदेन के माध्यम से कृत्रिम रूप से बढ़ा दिया गया, जिससे कंपनी को बैंकों से बढ़ी हुई ऋण सुविधाएं प्राप्त करने में मदद मिली।

सीबीआई ने कहा कि गोरागांधी ने कथित तौर पर तीन फर्जी कंपनियों में निदेशक के तौर पर काम करके इस साजिश में अहम भूमिका निभायी। उसने कहा कि इन ईकाइयों का इस्तेमाल केवल पीएएल के साथ फर्जी बिक्री और खरीद लेनदेन करने के लिए किया गया था।

उसने कहा है कि लेन-देन में माल की वास्तविक आवाजाही नहीं थी और व्यापारिक गतिविधि के झूठे आख्यान का समर्थन करने के लिए चालान और बिल धोखाधड़ी से बनाए गए थे।

सीबीआई ने कहा कि जांच में यह भी पता चला है कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी को दिवंगत पारेख से प्रति कंपनी 20,000 रुपये मासिक मिलते थे, कथित तौर पर निदेशक के तौर पर उनके नाम देने के लिए। सीबीआई ने कहा कि इस प्रकार आपराधिक कृत्यों से मौद्रिक लाभ का सबूत मिलता है।

गोरागांधी ने अपनी याचिका में दावा किया कि वह न तो लाभार्थी हैं और न ही उन्होंने अपराध में कोई भूमिका निभायी है।

भाषा अमित रंजन

रंजन


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