आरोपियों ने वकील न रखा होता तो मालेगांव मामला 15 साल पहले खत्म हो गया होता: कुलकर्णी
आरोपियों ने वकील न रखा होता तो मालेगांव मामला 15 साल पहले खत्म हो गया होता: कुलकर्णी
मुंबई, 31 जुलाई (भाषा) मालेगांव विस्फोट मामले में बृहस्पतिवार को बरी किए गए सात लोगों में से एक समीर कुलकर्णी ने कहा कि यदि उनके सह-आरोपियों ने वकील नहीं रखा होता तो मुकदमा 15 साल पहले ही समाप्त हो गया होता।
उन्होंने बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष दोनों पर मुकदमे को लम्बा खींचने का आरोप लगाया।
स्वयं अपना केस लड़ने वाले कुलकर्णी ने ‘पीटीआई वीडियो’ से कहा, ‘मैं अदालत का शुक्रिया अदा करता हूं। मैंने कोई वकील नहीं रखा क्योंकि मुझे हमारी न्यायिक प्रणाली पर भरोसा था। मैंने मामले में तेजी लाने के लिए बंबई उच्च न्यायालय का रुख किया था और इसके लिए 26 बार अनशन भी किया था।’
कुलकर्णी ने कहा, ‘सभी आरोपी निर्दोष थे। अगर उन्होंने वकील न रखा होता तो मामला 15 साल पहले खत्म हो चुका होता।’
उत्तरी महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में हुए विस्फोट में छह लोगों की मौत के लगभग 17 साल बाद मुंबई की एक विशेष अदालत ने बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि उनके खिलाफ ‘कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं’ है।
इस बीच महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि मालेगांव विस्फोट मामले में सबूत पेश करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार और राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की है।
चव्हाण ने ‘पीटीआई वीडियो’ को बताया, ‘महाराष्ट्र एटीएस (आतंकवाद-रोधी दस्ते) ने इस मामले की जांच की और आरोपपत्र दाखिल किया। 2011 में एनआईए ने मामले को अपने हाथ में ले लिया और 2014 में सरकार बदल गई (राज्य और केंद्र में)। अगर ये आरोपी अपराधी नहीं होते तो सरकार को 2014 से 2025 तक जांच नहीं करनी चाहिए थी लेकिन उसने मामला जारी रखा। अगर यह फर्जी मामला होता तो दोबारा जांच हो सकती थी…।’
चव्हाण ने जोर देकर कहा, ‘किसी ने निर्दोष लोगों की हत्या की है।’ उन्होंने कहा कि सरकार का नागरिकों के प्रति यह दायित्व है कि वह वास्तविक दोषियों का पता लगाए।
चव्हाण ने कहा कि साक्ष्य प्रस्तुत करना राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है, न कि कांग्रेस या पीड़ितों और परिजनों की।
भाषा
शुभम अविनाश
अविनाश

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