मालेगांव, मुंबई ट्रेन विस्फोट पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सकने का एक कारण राजनीतिक हस्तक्षेप: बोरवणकर
मालेगांव, मुंबई ट्रेन विस्फोट पीड़ितों को न्याय नहीं मिल सकने का एक कारण राजनीतिक हस्तक्षेप: बोरवणकर
पुणे, 22 अगस्त (भाषा) भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की पूर्व अधिकारी मीरा बोरवणकर ने कहा है कि मालेगांव और 11 जुलाई 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोटों के पीड़ितों तथा तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर के परिजनों को पूर्ण न्याय नहीं मिल सकने का एक कारण राजनीतिक हस्तक्षेप था।
बुधवार को शहर में डॉ. दाभोलकर की 12वीं पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में पूर्व आईपीएस अधिकारी ने दावा किया कि उन्हें एक धमकी भरा ईमेल मिला है जिसमें कार्यक्रम में उनकी भागीदारी पर सवाल उठाया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उसी विषय पर बोलने का फैसला किया, जिस पर मैंने हाल में एक मराठी दैनिक में पुलिस के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप के बारे में एक लेख लिखा था।’’
बोरवणकर ने कहा कि मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त जूलियो रिबेरो ने पंजाब में एक अंग्रेजी दैनिक में एक लेख लिखा था जिसमें बताया गया था कि मुंबई के पूर्व एटीएस (आतंकवाद निरोधक दस्ता) प्रमुख हेमंत करकरे ने उन्हें मालेगांव विस्फोट मामले में दिल्ली के एक नेता द्वारा ‘‘राजनीतिक दबाव’’ बनाए जाने की बात कही थी।
बोरवणकर ने बताया कि रिबेरो ने लेख में लिखा कि करकरे के साथ उनकी बातचीत 26 नवंबर 2008 के (मुंबई) हमलों में मुंबई एटीएस प्रमुख की मौत से एक या दो दिन पहले हुई थी।
बोरवणकर ने कहा, ‘‘इसी तरह, रोहिणी सालियान, जिनके साथ मैंने काम किया था और जो एक ईमानदार और प्रतिबद्ध अभियोजक हैं, को मालेगांव विस्फोट मामले की जांच की जिम्मेदारी एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) के संभालने के बाद अलग कर दिया गया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि उन पर नरम रुख अपनाने का दबाव था। मालेगांव विस्फोटों का फैसला आने के बाद, उन्होंने जानना चाहा कि सबूत कहां गए।’’
पूर्व आईपीएस अधिकारी ने दाभोलकर हत्याकांड में पुणे की एक अदालत की टिप्पणियों का भी हवाला दिया।
उन्होंने सवाल किया, ‘‘दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए और तीन अन्य को बरी करते हुए, न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि अगर तीन आरोपियों को बरी कर दिया गया है, तो मुख्य षडयंत्रकारी कौन था और डॉ. दाभोलकर की हत्या की साजिश किसने रची थी? न तो सीबीआई और न ही पुलिस सरगना तक पहुंच पाई। क्या यह नाकामी थी, या जानबूझकर की गई थी, या किसी प्रभावशाली व्यक्ति का प्रभाव था?’’
उन्होंने कहा कि अगर दाभोलकर हत्याकांड और मालेगांव विस्फोट जैसे मामलों में राजनीतिक नेता दखल देते हैं और पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता है, तो इससे बुरा और क्या हो सकता है?
बोरवणकर ने कहा, ‘‘यह सच है कि हम 7/11 (ग्यारह जुलाई 2006 के मुंबई) ट्रेन बम विस्फोटों के 190 पीड़ितों, मालेगांव पीड़ितों को न्याय नहीं दिला पाए और न ही दाभोलकर हत्याकांड के असली गुनहगारों का पता लगा पाए। कई अन्य कारकों के साथ, राजनीतिक हस्तक्षेप भी एक प्रमुख कारण है।’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘…पुलिस विभाग में विभिन्न भूमिकाओं में काम करते हुए, दबाव पुलिस की कार्यक्षमता को कैसे प्रभावित करता है और कैसे, सच्चाई तक पहुंचने के बजाय, हम अपना रास्ता भटक जाते हैं।’’
दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को पुणे में ओंकारेश्वर मंदिर के पास एक पुल पर सुबह की सैर के दौरान दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
मालेगांव विस्फोट में छह लोगों की जान जाने के लगभग 17 साल बाद, 31 जुलाई को मुंबई की एक विशेष अदालत ने पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया तथा कहा कि उनके खिलाफ ‘‘कोई विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं’’ था।
वहीं, मुंबई उच्च न्यायालय ने 11 जुलाई 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोटों के मामले में 21 जुलाई को सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में ‘‘पूरी तरह से विफल’’ रहा है तथा ‘‘यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने अपराध किया है।’’
मुंबई ट्रेन विस्फोटों में 180 लोग मारे गए थे।
भाषा
सुभाष नरेश
नरेश

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