सलवा जुडूम:विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री ने साधा निशाना

सलवा जुडूम:विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री ने साधा निशाना

सलवा जुडूम:विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री ने साधा निशाना
Modified Date: August 23, 2025 / 09:40 am IST
Published Date: August 23, 2025 9:40 am IST

पुणे, 23 अगस्त (भाषा) छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने सलवा जुडूम आंदोलन पर प्रतिबंध लगाने वाले 2011 के फैसले को लेकर कांग्रेस नीत गठबंधन के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी पर निशाना साधा और दावा किया है कि इस फैसले के बाद नक्सली हिंसा में वृद्धि हुई।

शर्मा ने शुक्रवार को यहां रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी द्वारा आयोजित ‘छत्तीसगढ़ में नक्सल चुनौती पर काबू पाना’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा, ‘‘2011 के फैसले के बाद बस्तर में दहशत फैल गई थी। पूरे इलाके में नक्सलियों द्वारा हत्याओं की बाढ़ आ गई और हज़ारों लोग इसके शिकार हुए। कई लोगों को गोली मार दी गई, दिव्यांग कर दिया गया या गला घोंटकर मार डाला गया।’’

भाजपा नेता ने कहा, ‘‘ मैं यह बताना चाहूंगा कि जिस न्यायाधीश ने वह फैसला सुनाया था, वही आज कांग्रेस के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं। बस्तर के लोगों ने मुझसे पूछा है कि क्या उपराष्ट्रपति पद के यह उम्मीदवार वही जज हैं? उन्हें उनका नाम याद है। ऐसे व्यक्ति को कोई कैसे स्वीकार कर सकता है?’’

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उन्होंने कहा कि सलवा जुडूम आंदोलन बस्तर में नक्सलियों द्वारा किये गये अत्याचारों के जवाब में शुरू हुआ था।

उन्होंने कहा, ‘‘ ग्रामीणों ने नक्सलियों से अपनी सुरक्षा के लिए बिना किसी सरकारी मदद के शिविर स्थापित किए थे, हालांकि बाद में सरकार ने कुछ सहायता प्रदान करनी शुरू की। यह आंदोलन पूरी तरह से जनता द्वारा संचालित था। सलवा जुडूम शब्द का अर्थ है ‘शांति बहाली’।’’

आंदोलन से जुड़े लोगों ने नक्सलियों का विरोध किया और उन्हें गांव छोड़ने के लिए कहा। शर्मा ने बताया कि जब नक्सलियों ने इन शिविरों पर हमला करना शुरू किया तो सरकार ने आंदोलन के सदस्यों को विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रूप में नियुक्त करना शुरू कर दिया।

उन्होंने कहा कि 2011 में न्यायमूर्ति रेड्डी ने एक फैसला सुनाते हुए कहा था कि सलवा जुडूम की स्थापना गलत थी और इसे असंवैधानिक समानांतर व्यवस्था बताया था तथा इसे समाप्त करने का आदेश दिया था।

शर्मा ने कहा कि यह निर्णय ठोस कानूनी तर्क पर आधारित नहीं था, बल्कि यह काफी हद तक अकादमिक तर्क पर आधारित था।

उन्होंने कहा, ‘‘ बस्तर के लोग अब भी कहते हैं कि उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में याचिकाकर्ताओं और पुलिस की दलीलें तो सुनीं, लेकिन उनकी आवाज कभी नहीं सुनी गई। अदालत ने सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों की बात सुने बिना ही फैसला सुना दिया।’’

भाषा प्रशांत शोभना

शोभना


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