Navratri 2025: माँ कुष्मांडा देती है दुःख और दरिद्रता से मुक्ति.. नवरात्रि के चौथे दिन हो रही आराधना, जानें मंत्र और पूजा विधान..

2025 के नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्मांडा की आराधना के नाम समर्पित है। वो माँ जिनकी मुस्कान ने अंधकारमय ब्रह्मांड में प्रकाश फैला दिया और जिनकी पूजा करने से जीवन में खुशियों और समृद्धि का द्वार खुल जाता है। क्या आप जानते हैं इस दिन छुपा है कौन सा खास वरदान, जो आपके जीवन को पूरी तरह बदल सकता है?

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  • Publish Date - September 25, 2025 / 09:03 AM IST,
    Updated On - September 25, 2025 / 11:34 AM IST

Image Source: @Servdharm / IBC24

HIGHLIGHTS
  • माँ कूष्मांडा के आठ हाथ और सिंह पर सवारी उनके साहस और सृजनात्मक ऊर्जा के प्रतीक हैं।
  • इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व है, जो ऊर्जा और सकारात्मकता का प्रतिनिधित्व करता है।
  • “ॐ कूष्माण्डायै नमः” मंत्र का जाप और मालपुआ, मौसमी फल आदि का भोग अर्पण पूजा का अनिवार्य हिस्सा है।

Navratri 2025: नवरात्रि के पावन पर्व में ऐसा एक दिन भी आता है, जो अपने साथ छुपा कर लाता है असीम शक्ति और अद्भुत रचनात्मक ऊर्जा का रहस्य। 2025 के नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्मांडा की आराधना के नाम समर्पित है। वो माँ जिनकी मुस्कान ने अंधकारमय ब्रह्मांड में प्रकाश फैला दिया और जिनकी पूजा करने से जीवन में खुशियों और समृद्धि का द्वार खुल जाता है। क्या आप जानते हैं इस दिन छुपा है कौन सा खास वरदान, जो आपके जीवन को पूरी तरह बदल सकता है? आइये जानते हैं…
नवरात्रि का पर्व देवी दुर्गा के नौ रूपों की उपासना का महापर्व है। हर दिन भक्त माँ के अलग-अलग स्वरूप की साधना करते हैं। 2025 के नवरात्रि का चौथा दिन माँ कूष्मांडा को समर्पित है। ये दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि माँ कूष्मांडा को सम्पूर्ण सृष्टि की अधिष्ठात्री और रचनात्मक ऊर्जा का स्रोत माना गया है। श्रद्धालु इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करके अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।

क्यों है नवरात्रि चौथा दिन खास?

Navratri 2025: चौथा दिन माँ कूष्मांडा की आराधना के लिए होता है। मान्यता है कि माँ कूष्मांडा ने अपनी मधुर और तेजस्वी मुस्कान से अंधकारमय ब्रह्मांड में प्रकाश का संचार किया और सृष्टि का विस्तार हुआ। उनका नाम तीन शब्दों से बना है “कू” अर्थात छोटा, “उष्मा” अर्थात ऊर्जा और “अंडा” अर्थात ब्रह्मांडीय अंडा। इन तीनों के मेल से उनका स्वरूप जीवनदायिनी और सृजनात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। माँ कूष्मांडा को अष्टभुजा देवी कहा जाता है। वो सिंह की सवारी करती हैं, जो साहस और शक्ति का प्रतीक है। उनका ये स्वरूप आनंद, ऊर्जा और सकारात्मक सृजन की शक्ति को दर्शाता है। भक्तों का विश्वास है कि चौथे दिन की आराधना से रोग, दुःख और निराशा का अंत होता है और जीवन में नई ऊर्जा, उत्साह और समृद्धि का प्रवेश होता है। यही कारण है कि माँ कूष्मांडा की पूजा को नवरात्रि में अहम माना जाता है।

पूजा विधि

नवरात्रि के चौथे दिन पूजा करने के लिए भक्त विशेष नियम और विधि का पालन करते हैं:
प्रारंभ और शुद्धि: सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें। स्वच्छ और हल्के रंग के वस्त्र पहनकर मानसिक और शारीरिक शुद्धि करें।
स्थापना: पूजा स्थल को साफ-सुथरा कर देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। आसन और कलश की स्थापना भी इसी समय की जाती है।
सामग्री अर्पित करना: देवी को अक्षत, कुमकुम, हल्दी, पुष्प, धूप, दीप और शुद्ध जल अर्पित करें।
भोग अर्पण: माँ कूष्मांडा को विशेष रूप से मालपुआ, मौसमी फल, पान, सुपारी, लौंग-इलायची आदि का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि इन भोगों से देवी प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं।
मंत्र-जप और पाठ: “ॐ कूष्माण्डायै नमः” मंत्र का जप करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ भी किया जाता है।
आरती और प्रसाद: अंत में माँ की आरती कर भक्तों के बीच प्रसाद का वितरण किया जाता है। आरती के समय वातावरण भक्तिमय और ऊर्जावान हो जाता है।

रंग और प्रतीक

नवरात्रि के प्रत्येक दिन का एक विशेष रंग निर्धारित है। चौथे दिन का शुभ रंग पीला या हल्का पीला माना जाता है। ये रंग प्रसन्नता, ऊर्जा और रचनात्मकता का प्रतीक है। भक्त इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं और पूजा स्थल को पीले फूलों से सजाते हैं। ये भी मान्यता है कि पीला रंग माँ कूष्मांडा को अत्यंत प्रिय है।
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नवरात्रि के चौथे दिन कौन सा रंग पहनना चाहिए?

इस दिन पीला या हल्का पीला रंग शुभ माना जाता है। यह रंग ऊर्जा और प्रसन्नता का प्रतीक है।

माँ कूष्मांडा को कौन सा भोग चढ़ाया जाता है?

मालपुआ, मौसमी फल, पान, सुपारी, लौंग-इलायची और अन्य मीठे व्यंजन प्रमुख भोग हैं।

माँ कूष्मांडा की पूजा में कौन सा मंत्र जपना चाहिए?

मुख्य मंत्र है “ॐ कूष्माण्डायै नमः”। इसके अलावा सप्तशती और चालीसा का पाठ भी किया जाता है।