Damnak Chaturthi Vrat Katha
Damnak Chaturthi Vrat Katha : भगवान गणेश को दमनक के नाम से भी जाना जाता है। जो व्यक्ति दमनक चतुर्थी का व्रत रखता है भगवान गणेश उसके सारे कष्ट हर लेते हैं। दमनक चतुर्थी का व्रत हर साल चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। यह व्रत रोगों से मुक्ति दिलाने में भी सहायक माना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा-उपासना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। दमनक चतुर्थी व्रत रखने से व्यक्ति को सुख, सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत करने से संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। दमनक चतुर्थी के अवसर पर इस पौराणिक कथा का पाठ जरुर करना चाहिए।
Damnak Chaturthi Vrat Katha : आईये यहाँ प्रस्तुत हैं दमनक चतुर्थी की पौराणिक व्रत कथा
दमनक चतुर्थी की प्राचीन कथा के अनुसार, एक नगर में एक राजा राज करता था, जिसके दो पत्नियां थीं और प्रत्येक पत्नी के एक-एक पुत्र थे। एक रानी के पुत्र का नाम गणेश था और दूसरी रानी के पुत्र का नाम दमनक था। दोनों बच्चों का पालन-पोषण बहुत अच्छे से हुआ, लेकिन उनके जीवन में एक अंतर था।
जब गणेश अपने ननिहाल जाता था, तो वहां सभी उसे अत्यधिक प्रेम करते थे और उसका बहुत ध्यान रखते थे। ननिहाल में उसे ढेर सारी खुशियां और सम्मान मिलता था। दूसरी ओर, दमनक जब भी अपने ननिहाल जाता था, तो उसे वहां पर कोई प्रेम नहीं मिलता था। उसके मामा और मामियां उससे घर के सारे काम करवाते और उसके साथ बुरा व्यवहार करते थे।
गणेश तो अपने ननिहाल से हर बार ढेर सारी चीज़ें लेकर लौटता था, लेकिन दमनक को ननिहाल से कुछ भी नहीं मिलता था। वह हमेशा खाली हाथ वापस आता था। इस प्रकार, दोनों बच्चों के जीवन में सुख और दुःख की लहरें आती रहीं। समय बीतता गया और दोनों का विवाह हो गया। फिर वे अपनी-अपनी बहनों के साथ ससुराल गए। गणेश के ससुराल में उसका बहुत सम्मान किया जाता था। वहां उसे ढेर सारी मिठाइयां, पकवान और विशेष भोजन मिलते थे।
Damnak Chaturthi Vrat Katha
दमनक का ससुराल में हाल बिल्कुल विपरीत था। वहां भी उसे कोई विशेष सम्मान नहीं मिला और न ही उसे कोई सुखद अनुभव हुआ। दमनक बहुत दुखी था, लेकिन उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।
जब दमनक अपने ससुराल जाता था, तो वहां के लोग उसकी कोई खास खातिरदारी नहीं करते थे। उसे सोने के लिए भी उचित स्थान नहीं दिया जाता था, और बहाने से उसे घोड़ों के बाड़े में सोने के लिए कहा जाता था। इसके विपरीत, गणेश जब अपने ससुराल जाता, तो वहां उसकी बहुत अच्छी खातिरदारी होती और उसे ढेर सारे उपहार और विशेष भोजन मिलते थे। लेकिन दमनक हमेशा खाली हाथ ही लौट आता था, उसे कभी भी कुछ नहीं मिलता था।
बुजुर्ग महिला को इन दोनों की स्थिति का भली-भांति पता था, क्योंकि वह उन्हें बचपन से देखती आ रही थी। दमनक की दयनीय स्थिति को देखकर वह बहुत दुखी होती थी। एक दिन शाम को भगवान शिव और माता पार्वती संसार के दुख-सुख को जानने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। उस समय वह बुजुर्ग महिला उनके मार्ग में आकर उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है और भगवान से दमनक और गणेश के बारे में सारी कहानी बता देती है। वह भगवान से पूछती है कि आखिर क्यों बचपन से ही दमनक को अपने ननिहाल से सुख नहीं मिल पाया और अब उसे ससुराल में भी तिरस्कार सहना पड़ रहा है।
Damnak Chaturthi Vrat Katha
भगवान शिव ने महिला को उत्तर दिया और बताया कि गणेश ने अपने पिछले जन्म में जो भी ननिहाल से लिया था, वह उसने सदैव वापस भी किया। वह किसी न किसी तरीके से मामा-मामी और उनके बच्चों को कुछ न कुछ देता रहता था। इसी तरह, ससुराल में भी उसने जो कुछ लिया था, वह उसने वापस कर दिया। इस कारण वह इस जन्म में न केवल अपने ननिहाल, बल्कि ससुराल पक्ष से भी ढेर सारा सम्मान और आदर प्राप्त करता है।
दूसरी ओर, दमनक अपने पूर्व जन्म में जो कुछ भी ननिहाल और ससुराल से प्राप्त करता था, वह कभी भी उसे वापस नहीं करता था। अपने कामकाज या किसी अन्य कारण से, वह कभी किसी को कुछ भी नहीं लौटाता था। इस वजह से उसे इस जन्म में ननिहाल और ससुराल दोनों से ही कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ और हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी।
Damnak Chaturthi Vrat Katha
यह कथा हमें यह सिखाती है कि हमें हमेशा किसी से प्राप्त हुई वस्तु को लौटाने का प्रयास करना चाहिए। यदि किसी से हमें कुछ मिले, तो हमें उसे अवश्य लौटाना चाहिए, क्योंकि जो चीज़ हमसे मिली है, उसे लौटाने पर हमें दुगना सुख और सम्मान प्राप्त होता है। हमें कभी भी किसी का हक नहीं लेना चाहिए और न ही किसी से प्राप्त वस्तु को अपने पास रखना चाहिए।
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