Kushmanda Devi ki Katha : नवरात्री के चौथे दिन ज़रूर पढ़ें ब्रह्मांड की रचयिता देवी कूष्मांडा जी की अद्भुत कथा

On the fourth day of Navratri, do read the amazing story of Goddess Kushmanda Ji, the creator of the universe

Kushmanda Devi ki Katha : नवरात्री के चौथे दिन ज़रूर पढ़ें ब्रह्मांड की रचयिता देवी कूष्मांडा जी की अद्भुत कथा

Kushmanda devi ki katha

Modified Date: October 5, 2024 / 02:49 pm IST
Published Date: October 5, 2024 2:45 pm IST

Kushmanda Devi ki Katha : कूष्मांडा देवी का चौथा स्वरूप है। माँ कुष्मांडा का नाम बहुत ही महत्वपूर्ण है – “कु” का अर्थ है छोटा, “ऊष्मा” का अर्थ है गर्मी या जीवन ऊर्जा, और “अंडा” का अर्थ है ब्रह्मांडीय अंडा। ग्रंथों के अनुसार इन्हीं देवी की मंद मुस्कार से अंड यानी ब्रह्मांड की रचना हुई थी। इसी कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। वह देवी दुर्गा का चौथा अवतार हैं और हृदय चक्र का प्रतीक हैं, जिस पर नारायण का शासन है, जो प्रेम और करुणा का प्रतिनिधित्व करता है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है।

Kushmanda Devi ki Katha : कुष्मांडा देवी का स्वरुप

माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन शेर है।

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Kushmanda Devi ki Katha : मंत्र 

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।’
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।

Kushmanda Devi ki Katha : माँ की महिमा

माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

Kushmanda Devi ki Katha
विधि-विधान से माँ के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढ़ने पर भक्त साधक को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुःख स्वरूप संसार उसके लिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है। माँ की उपासना मनुष्य को सहज भाव से भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है।

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लेखक के बारे में

Swati Shah, Since 2023, I have been working as an Executive Assistant at IBC24, No.1 News Channel in Madhya Pradesh & Chhattisgarh. I completed my B.Com in 2008 from Pandit Ravishankar Shukla University, Raipur (C.G). While working as an Executive Assistant, I enjoy posting videos in the digital department.