होलाष्टक में नहीं करें ये शुभ काम, क्या है महत्व और पौराणिक-वैज्ञानिक मान्यता…जानिए

होलाष्टक में नहीं करें ये शुभ काम, क्या है महत्व और पौराणिक-वैज्ञानिक मान्यता...जानिए

होलाष्टक में नहीं करें ये शुभ काम, क्या है महत्व और पौराणिक-वैज्ञानिक मान्यता…जानिए
Modified Date: November 29, 2022 / 08:10 pm IST
Published Date: March 22, 2021 9:11 am IST

Holashtak 2021: होली से आठ दिन पहले से सभी शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है, इसे होलाष्टक कहते हैं। आज से होलाष्टक शुरू हो गया है, इसके बाद शुभ कार्य होलिका दहन के बाद ही होंगे, शिव पुराण के मुताबिक भगवान शिव ने जब कामदेव को भस्म किया था, तब होलाष्टक लगा था, होलाष्टक की अवधि भक्ति की शक्ति का प्रभाव बताती है, इस बार होलाष्टक की शुरुआत रविवार से हुई है जो 28 मार्च होलिका दहन तक होगा, शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के प्रथम दिन फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी का चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु अपने उग्र रूप में होता है, इस दौरान काम बिगड़ने के अधिक आसार होते हैं।

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— होलाष्टक के 8 दिन किसी भी मांगलिक शुभ कार्य को करने के लिए शुभ नहीं होता है, इस दौरान शादी, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, मांगलिक कार्य, कोई भी नया व्यवसाय या नया काम शुरू करने से बचना चाहिए।
-शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक शुरू होने के साथ ही 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है।
-किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किया जाता है, इसके अलावा नवविवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है।

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होलाष्टक की अवधि भक्ति की शक्ति का प्रभाव बताती है, इस अवधि में तप करना ही अच्छा रहता है, होलाष्टक शुरू होने पर एक पेड़ की शाखा काट कर उसे जमीन पर लगाते हैं, इसमें रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकड़े बांध देते हैं, इसे भक्त प्रह्लाद का प्रतीक माना जाता है, मान्यताओं के अनुसार, जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए एक पेड़ की शाखा काट कर उसे जमीन पर लगाते हैं, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

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मान्यता है कि होली के पहले के आठ दिनों यानी अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक विष्णु भक्त प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थीं। प्रहलाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को ही हिरण्यकश्यप ने बंदी बना लिया था, प्रह्लाद को जान से मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी गईं लेकिन प्रह्लाद विष्णु भक्ति के कारण भयभीत नहीं हुए और विष्णु कृपा से हर बार बच गए, अपने भाई हिरण्यकश्यप की परेशानी देख उसकी बहन होलिका आईं, होलिका को ब्रह्मा ने अग्नि से न जलने का वरदान दिया था। यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई।

इसके बाद भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर नृसिंह भगवान प्रकट हुए और प्रह्लाद की रक्षा कर हिरण्यकश्यप का वध किया, तभी से भक्त पर आए इस संकट के कारण इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है। होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य वर्जित होते हैं, इसके साथ ही एक कथा यह भी है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के कारण शिव ने कामदेव को फाल्गुन की अष्टमी पर ही भस्म किया था।

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मौसम के परिवर्तन के कारण मन अशांत, उदास और चंचल रहता है, ऐसे मन से किए हुए कार्यों के परिणाम शुभ नहीं हो सकते हैं, इस समय मन को आनंदित करने के कार्य किए जाना बेहतर होता है, इसीलिए जैसे ही होलाष्टक समाप्त होता है, रंग खेलकर हम आनंद में डूबने का प्रयास करते हैं। धार्मिक ग्रंथ और शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दिनों में किए गए व्रत और किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।

इस दिन वस्त्र, अनाज और अपने इच्छानुसार धन का दान भी आप कर सकते हैं, होलाष्टक के दिनों में ही संवत और होलिका की प्रतीक लकड़ी या डंडे को गाड़ा जाता है, इस समय में अलग-अलग दिन अलग-अलग चीजों से होली खेली जाती है, पूरे समय में शिव जी या कृष्ण जी की उपासना की जाती है, होलाष्टक में प्रेम और आनंद के लिए किए गए सारे प्रयास सफल होते हैं।

 


लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com