Guru Nanak Jayanti: इस बार कब मनाई जाएगी गुरू नानक जयंती? कल या परसों? जानिए गुरु पर्व का पूरा इतिहास और महत्व
गुरु नानक जयंती हर साल कार्तिक पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन गुरुद्वारों में लंगर और पूजा-अर्चना का आयोजन होता है। सिक्ख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव की शिक्षाओं और योगदान को याद किया जाता है। यह पर्व भक्ति, सेवा और सामाजिक समानता का संदेश देता है।
(Guru Nanak Jayanti, Image Credit: Meta AI)
- गुरु नानक जयंती को गुरुपर्व या गुरु नानक प्रकाश पर्व भी कहा जाता है।
- यह पर्व सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
- 2025 में गुरु नानक जयंती 5 नवंबर, बुधवार को है।
Guru Nanak Jayanti: सिक्ख धर्म में गुरु नानक जयंती अत्यंत विशेष महत्व रखती है। इसे गुरुपर्व या गुरु नानक प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के जन्मोत्सव को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व श्रद्धा, भक्ति और सेवा का प्रतीक है। पूरे देश के गुरुद्वारों में विशेष आयोजन होते हैं, गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ होता है और श्रद्धालु लंगर सेवा में भाग लेकर गुरु नानक देव जी के उपदेशों को याद करते हैं।
कब है गुरु नानक जयंती?
पंचांग के अनुसार, गुरु नानक देव जी की जयंती कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को आती है, जो अक्टूबर और नवंबर के बीच पड़ती है। वर्ष 2025 में यह पर्व 5 नवंबर, बुधवार को मनाया जाएगा। इस साल गुरु नानक देव जी की 556वीं जयंती मनाई जाएगी।
शुभ समय
द्रिक पंचांग के अनुसार, गुरु नानक जयंती का आरंभ 4 नवंबर रात 10:36 बजे होगा और यह 5 नवंबर को शाम 6:48 बजे समाप्त होगी। यह समय श्रद्धालुओं के लिए पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए बेहद शुभ माना जाता है।
गुरु नानक जयंती का महत्व और इतिहास
गुरुपर्व केवल गुरु नानक देव जी के जन्मदिन का उत्सव नहीं है, बल्कि उनके जीवन और शिक्षाओं को अपनाने का अवसर भी है। गुरु नानक देव जी का संदेश सत्य बोलने, सभी के साथ समान व्यवहार करने और निःस्वार्थ सेवा करने का है।
पर्व की तैयारियां आम तौर पर दो दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। गुरुद्वारों में अखंड पाठ का आयोजन किया जाता है, जो लगातार 48 घंटे चलता है। इसके अलावा, नगर कीर्तन निकाला जाता है, जिसमें भक्तजन झांकियों के माध्यम से भजन-कीर्तन करते हुए गुरु जी के उपदेशों को साझा करते हैं। सुबह प्रभात फेरी निकाली जाती है, जिसमें सभी भक्तजन अरदास और कीर्तन में भाग लेते हैं।
लंगर का महत्व
लंगर सिख धर्म की सबसे पवित्र परंपराओं में से एक है। इसकी शुरुआत 1500 के दशक में गुरु नानक देव जी ने की थी। उस समय समाज जाति, धर्म और सामाजिक भेदभाव के कारण विभाजित था। गुरु नानक देव जी ने लंगर की परंपरा शुरू करके समाज को समानता और भाईचारे का संदेश दिया।
लंगर में हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या समाज वर्ग से हो, एक साथ जमीन पर बैठकर भोजन करता है। आज भी दुनियाभर के गुरुद्वारों में हजारों लोगों को मुफ्त भोजन कराया जाता है। इसमें कोई भेदभाव नहीं होता और सभी को समान सम्मान और स्नेह मिलता है।
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