Jain Parshwanath Chalisa : बेहद्द शक्तिशाली है पार्श्वनाथ चालीसा का पाठ, बढ़ जाएगी स्मरणशक्ति, धन एवं खुशियों की होगी बौछार

Jain Parshwanath Chalisa : बेहद्द शक्तिशाली है पार्श्वनाथ चालीसा का पाठ, बढ़ जाएगी स्मरणशक्ति, धन एवं खुशियों की होगी बौछार

Shri Parshwanath Chalisa

Modified Date: August 14, 2024 / 07:06 pm IST
Published Date: August 14, 2024 7:06 pm IST

Jain Parshwanath Chalisa : भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के तेइसवें (23वें) तीर्थंकर हैं। भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी के भेलूपुर में हुआ था | वाराणासी में अश्वसेन नाम के इक्ष्वाकुवंशीय क्षत्रिय राजा थे। उनकी रानी वामा ने पौष कृष्‍ण एकादशी के दिन महातेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसके शरीर पर सर्पचिह्म था। वामा देवी ने गर्भकाल में एक बार स्वप्न में एक सर्प देखा था, इसलिए पुत्र का नाम ‘पार्श्व’ रखा गया। तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने तीस वर्ष की आयु में घर त्याग दिया था और जैन दीक्षा ली। मान्यता है कि नियमित रूप से पार्श्वनाथ चालीसा का पाठ पढ़ने से बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है साथ जी दुःख दरिद्र समाप्त हो जाते हैं ।

Jain Parshwanath Chalisa : आईये पढ़तें हैं भगवन पार्श्वनाथ चालीसा

दोहा

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शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मंदिर में धार।|

।।चौपाई।।

पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा।

तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा।

अश्वसेन के राजदुलारे, वामा की आंखों के तारे।

काशीजी के स्वामी कहाए, सारी परजा मौज उड़ाए।

इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुंचे।

हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जंगल में गई सवारी।

एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुनाकर।

तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते।
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तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया।

निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे।

रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मंत्र नवकार सुनाया।

मरकर वो पाताल सिधाए, पद्मावती धरणेन्द्र कहाए।

तपसी मरकर देव कहाया, नाम कमठ ग्रंथों में गाया।

एक समय श्री पारस स्वामी, राज छोड़कर वन की ठानी।

तप करते थे ध्यान लगाए, इक दिन कमठ वहां पर आए।

फौरन ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना।

बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिराई।

बहुत अधिक पत्थर बरसाए, स्वामी तन को नहीं हिलाए।
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पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा में चित लाए।

धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया।

पद्मावती ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया।

कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया।

यही जगह अहिच्छत्र कहाए, पात्र केशरी जहां पर आए।

शिष्य पांच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना।

पार्श्वनाथ का दर्शन पाया, सबने जैन धरम अपनाया।

अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहां सुखी थी परजा सगरी।

राजा श्री वसुपाल कहाए, वो इक जिन मंदिर बनवाए।

प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया।

वह मिस्तरी मांस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता।

मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया।

मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना।

गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है।

वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अंदर।

उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी।
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जो अहिच्छत्र हृदय से ध्वावे, सो नर उत्तम पदवी वावे।

पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इकदम घटती हो।

है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी।

रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी-नर।

चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाए, हाथ जोड़कर शीश नवाए।

सोरठा

नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगंध अपार, अहिच्छत्र में आय के।
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।

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लेखक के बारे में

Swati Shah, Since 2023, I have been working as an Executive Assistant at IBC24, No.1 News Channel in Madhya Pradesh & Chhattisgarh. I completed my B.Com in 2008 from Pandit Ravishankar Shukla University, Raipur (C.G). While working as an Executive Assistant, I enjoy posting videos in the digital department.