Nashik Kapaleshwar Mahadev mandir
Nashik Kapaleshwar Mahadev Mandir: कपालेश्वर शिव मंदिर नासिक शहर में गोदावरी नदी के तट पर स्थित है और यह भारत का एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है जहाँ शिव के वाहन नंदी उनके साथ स्थापित नहीं हैं। इस मंदिर को बहुत पवित्र माना जाता है, क्योंकि भगवान शिव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति इसी स्थान पर मिली थी। कपालेश्वर मंदिर को १२ ज्योतिर्लिंगों के बाद सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कपालेश्वर के दर्शन करने से भक्तों को द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह अद्भुत कथा पवित्र पद्म पुराण में वर्णित है, जिसे ऋषि मार्कण्डेय ने सुनाया था।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान ब्रह्मा के पांच मुख थे, जिनमें चार मुख वेदों का जाप करते थे, जबकि पांचवां मुख ईर्ष्यावश भगवान विष्णु और भगवान शिव की हमेशा आलोचना और अपमान करता रहता था।
एक सभा के दौरान ब्रह्मा के पांचवें मुख ने हद से ज्यादा आलोचना करना शुरू कर दी, जिसको देखकर शिव क्रोध में आकर ब्रह्मा का अस्त्र छीन पांचवां मुख हमेशा के लिए काट दिया।
ब्रह्मा का पांचवां मुख काटने के बाद भगवान शिव अपराध बोध से भर गए। उन्होंने ब्रह्म हत्या यानी ब्राह्मण की हत्या का बड़ा पाप किया था। इस अपराध ने शिवजी को काफी क्षति पहुंचाई। इस अपराध से व्याकुल होकर उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की।
यात्रा करके शिव इतने थक चुके थे कि, उन्होंने नासिक के पंचवटी में देव शर्मा ब्राह्मण के घर विश्राम किया। वहां उन्होंने नंदी (एक सफेद बैल) और अपनी मां के बीच एक असाधारण बातचीत सुनी। नंदी ने अपने स्वामी के कठोर व्यवहार की बात मां को बताई और कहा कि वह उन्हें मार डालेगा, क्योंकि वह जानता था कि इस पाप का उपाय पवित्र नदियां हैं।
अगली सुबह जब देव शर्मा नंदी को गौशाला से ले जाने के लिए आए, तो बैल ने उनपर भयंकर रूप से हमला कर दिया। नंदी ने अपने तीखे सींग ब्राह्मण के पेट में घुसा दिए, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। ऐसा होता ही नंदी का शुद्ध सफेद रंग पूरी तरह काला पड़ गया, जो उसके घोर पाप का दैवीय संकेत था।
नंदी पंचवटी में पवित्र नदी गोदावरी की ओर दौड़े, जहां तीन पवित्र नदियां अरुणा, वरुणा और अदृश्य सरस्वती रामकुंड में मिलती है। जैसे ही नंदी पवित्र जल से बाहर निकले, उनका काला रंग पूरी तरह सफेद दूधिया रंग में बदल चुका था। वे अपने पाप से पूरी तरह शुद्ध हो चुके थे
भगवान शिव ये वृतान्त चुपचाप ये सब कुछ देख रहे थे। उन्होंने नंदी की ही तरह गोदावरी के जल में स्नान कर पास के ही राम मंदिर में भगवान राम के दर्शन किए। नई आशा साथ शिवजी एक पहाड़ी पर चढ़ गए, जहां उन्होंने एक शिवलिंग स्थापित किया और अपने पाप से मुक्ति के लिए घोर तपस्या शुरू कर दी।
जैसे ही शिव ने तपस्या करना शुरू की तो पूरी आकाशगंगा उनके ऊपर आकाश में प्रकट हो गई। शिवजी पर पुष्प वर्षा होने लगी। इस भक्ति से अभिभूत होकर भगवान विष्णु ने खुद, वहां स्थायी शिवलिंग की स्थापना की और उसका नाम कपालेश्वर रखा, जो पाप पर विजय पाने वाले भगवान हैं।
कपालेश्वर मंदिरों का महत्व इस विश्वास पर आधारित है कि वे पापों से मुक्ति, आध्यात्मिक शांति और दिव्य कृपा प्रदान करते हैं। माना जाता है कि कपालेश्वर के दर्शन और पूजा मात्र से ही मानव आत्मा पापों से मुक्त होकर मोक्ष का मार्ग प्राप्त करती है।