Ramayan Chaupai : रामचरितमानस की इन दिव्य चौपाईयों में छिपा है जीवन की हर समस्या का हल.. जिनके नियमित उच्चारण मात्र से ही होंगे आश्चर्यजनक लाभ
The solution to every problem of life is hidden in these divine verses of Ramcharitmanas.. Regular recitation of these verses will bring amazing benefits
Ramcharitmanas Chaupai
Ramayan Chaupai : श्रीरामचरितमानस के नायक श्रीराम हैं। जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है, जोकि मान्यताओं के अनुसार अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी हरि नारायण भगवान के अवतार है। जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्रीराम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज को ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों। प्रभु श्री श्रीराम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। गोस्वामी जी ने रामचरित का अनुपम शैली में दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद का आश्रय लेकर वर्णन किया है। मान्यता है कि रामचरितमानस की चौपाइयां पढ़ने से सभी संकट दूर होते हैं तथा हर तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
श्रीरामचरितमानस की रचना में 2 वर्ष 7 माह 26 दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् 1633 (1576 ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था।
Ramayan Chaupai
रामायण की दिव्य चौपाई जनसाधारण के लिए मंत्र समान कार्य कर मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। रामचरितमानस में कुछ ऐसी चौपाइयां हैं जिनका विपत्ति तथा संकट से बचाव और ऋद्धि-सिद्धि के लिए मंत्रोच्चारण के साथ पाठ किया जाता है। श्रद्धा-विश्वास के साथ समर्पण पूर्ण भाव से जब हृदय से यह चौपाइयां प्रफुल्लित होती हैं, तो भक्त का कार्य भगवान का कार्य हो जाता है, जिसे भगवान पूरा करते हैं, किसी भी शुभ संकल्प को पूर्ण होने में ज़रा भी देर नहीं लगती।
Ramayan Chaupai : यहाँ प्रस्तुत है रामचरितमानस के विषेश चौपाईयों का उल्लेख, जिनका जप जीवन में सुख-समृद्धि लाता है। आईये जानते हैं अर्थ सहित विस्तार से…
लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥
अर्थ:- हे लक्ष्मण! धनुष-बाण लाओ, मैं अग्निबाण से समुद्र को सोख डालूँ। मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति, स्वाभाविक ही कंजूस से सुंदर नीति (उदारता का उपदेश)
भावार्थ : प्रभु श्रीराम कहते हैं कि मूर्ख से विनयपूर्वक बात नहीं करना चाहिए मूर्ख लोगों को डराकर ही उनसे काम करवाया जा सकता है। इसी के साथ कुटिल स्वभाव वाले व्यक्ति के साथ प्रेमपूर्वक बात नहीं करना चाहिए। यह सदैव दूसरों को कष्ट ही देते हैं और इन पर भरोसा करना घातक होता है। कंजूस से सुंदर नीति अर्थात उदारता या उपदेश से काम नहीं चलता है। अत: उससे किसी की मदद या दान की अपेशा नहीं करना चाहिए।
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥
भावार्थ:- जो कुछ राम ने रच रखा है, वही होगा। तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावे। (मन में) ऐसा कहकर शिवजी भगवान् श्री हरि का नाम जपने लगे और सतीजी वहाँ गईं, जहाँ सुख के धाम प्रभु श्री रामचंद्रजी थे।
Ramayan Chaupai
ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥
भावार्थ:– ममता में फंसे हुए व्यक्ति से कभी भी ज्ञान की बात न करें। वह सत्य और असत्य में भेद नहीं कर पाता है। इसी तरह अति लोभी व्यक्ति के समक्ष त्याग या वैरोग्य की महिमा का वर्णन करना व्यर्थ है। इसी तरह जिस व्यक्ति को हर समय क्रोध आता रहता है उससे शांति की बातें करना व्यर्थ है। कामी व्यक्ति यानी वासना से भरे व्यक्ति के समक्ष कभी भी भगवान की बातें नहीं करना चाहिए।
काम, क्रोध, मद, लोभ, सब, नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि, भजहुँ भजहिं जेहि संत।
अर्थ : हे नाथ! काम, क्रोध, मद और लोभ- ये सब नरक के रास्ते हैं, इन सबको छोड़कर श्री रामचंद्रजी को भजिए, जिन्हें संत (सत्पुरुष) भजते हैं॥
भावार्थ:- विभीषणजी रावण को पाप के रास्ते पर आगे बढने से रोकने के लिए समझाते हैं कि काम, क्रोध, अहंकार, लोभ आदि नरक के रास्ते पर ले जाने वाले हैं। जिस प्रकार साधु लोग सब कुछ त्यागकर भगवान का नाम जपते हैं आप भी राम के हो जाएं। यही तारने वाला नाम है।
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना॥
अर्थ : जो लोग मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है। अपने पर्वत के समान दुःख को धूल के समान और मित्र के धूल के समान दुःख को सुमेरु (बड़े भारी पर्वत) के समान जाने॥
Ramayan Chaupai
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥
अर्थ : सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है। उन व्याधियों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं। काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है॥
नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं। संत मिलन सम सुख जग नाहीं॥
पर उपकार बचन मन काया। संत सहज सुभाउ खगराया॥
अर्थ: जगत् में दरिद्रता के समान दुःख नहीं है तथा संतों के मिलने के समान जगत् में सुख नहीं है। और हे पक्षीराज! मन, वचन और शरीर से परोपकार करना, यह संतों का सहज स्वभाव है॥
सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ।
हानि, लाभ, जीवन, मरण,यश, अपयश विधि हाँथ।
अर्थ : मुनिनाथ ने बिलखकर (दुःखी होकर) कहा- हे भरत! सुनो, भावी (होनहार) बड़ी बलवान है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के हाथ हैं॥ भले ही लाभ हानि जीवन, मरण ईश्वर के हाथ हो लेकिन हानि के बाद हम हार मानकर बैठें नहीं। ये हमारे ही हाथ हैं।
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।
जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥
अर्थ : हे नाथ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख की स्थिति) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ परिणाम में विपत्ति (दुःख) रहती है॥3॥
साधक सिद्ध बिमुक्त उदासी। कबि कोबिद कृतग्य संन्यासी।।
जोगी सूर सुतापस ग्यानी। धर्म निरत पंडित बिग्यानी।।
तरहिं न बिनु सेएँ मम स्वामी। राम नमामि नमामि नमामी।।
अर्थ : साधक, सिद्ध, जीवनमुक्त, उदासीन (विरक्त), कवि, विद्वान, कर्म (रहस्य) के ज्ञाता, संन्यासी, योगी, शूरवीर, बड़े तपस्वी, ज्ञानी, धर्मपरायण, पंडित और विज्ञानी-॥3॥ निम्न चौपाई जो बताती हैं की राम ही साधन हैं और राम ही साध्य हैं। जहां साधन और साध्य का भेद भी नहीं रहता।
Ramayan Chaupai
संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना॥
निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर सुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥
अर्थ : संतों का हृदय मक्खन के समान होता है, ऐसा कवियों ने कहा है, परंतु उन्होंने (असली बात) कहना नहीं जाना, क्योंकि मक्खन तो अपने को ताप मिलने से पिघलता है और परम पवित्र संत दूसरों के दुःख से पिघल जाते हैं॥
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