नयी दिल्ली, 21 सितंबर (भाषा) सीनियर स्तर पर अपनी दूसरी 200 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाले असम के युवा अमलान बोरगोहेन एथलेटिक्स में अपने सपने को पूरा करने के लिए एक समय में एक कदम उठाना चाहते हैं।
असम के जोरहाट जिले के मेलेंग गांव के रहने वाले 23 वर्षीय बोरगोहेन ने रविवार को तेलंगाना के वारंगल में राष्ट्रीय ओपन चैंपियनशिप के दौरान पुरुषों की 200 मीटर स्पर्धा में 20.75 सेकेंड के समय के साथ स्वर्ण पदक जीता। यह किसी भारतीय द्वारा पांचवां सबसे तेज और भारतीय सरजमीं पर दूसरा सबसे तेज समय है।
राष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक मोहम्मद अनस याहिया (20.63), धर्मबीर सिंह (20.66), अरोकिया राजीव (20.66) और अनिल कुमार (20.73) ने अब तक उनसे बेहतर प्रदर्शन किया है।
बोरगोहेन ने भुवनेश्वर से पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ 2019 में सीनियर स्तर पर भाग लेने के बाद से यह मेरी पहली 200 मीटर फाइनल रेस (सीनियर स्तर पर) थी और मेरे पास कोई अंतरराष्ट्रीय अनुभव नहीं है।’’
वह पिछले साल अप्रैल से रिलायंस फाउंडेशन ओडिशा एथलेटिक्स हाई परफॉर्मेंस सेंटर (एचपीसी) में प्रशिक्षण ले रहे हैं।
उन्होंने वारंगल में 100 मीटर फर्राटा दौड़ में 10.34 सेकेंड के समय के साथ रजत पदक भी जीता।
आगे की लक्ष्यों के बारे में पूछे जाने पर बोरगोहेन ने कहा, ‘‘ मैंने अभी अपना करियर शुरू किया है और मैं बस तेज दौड़ना चाहता हूं। ओलंपिक किसी भी एथलीट का अंतिम सपना होता है, लेकिन फिलहाल मैं उतना बहुत दूर नहीं देख रहा हूं। मैं एक बार में एक कदम उठाना चाहता हूं। मेरे कोच मेरी मदद करने के लिए मौजूद हैं और मेरे भविष्य की रणनीति तैयार करने के लिए हैं।’’
बोरगोहेन रिलायंस फाउंडेशन एचपीसी के मुख्य कोच वेल्शमैन जेम्स हिलियर की देखरेख में अभ्यास कर रहे हैं। जिन्होंने अतीत में रियो ओलंपिक चार गुणा 400 मीटर रिले कांस्य पदक विजेता एमिली डायमंड को प्रशिक्षित किया था।
कोच ने कहा, ‘‘बेशक, अगले साल एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेल हैं लेकिन मैं उन्हें पदक के बारे में बात कर उन पर दबाव नहीं डालने जा रहा हूं। सुधार की बहुत गुंजाइश है और हम उस पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।’’
हिलियर ने कहा, ‘‘ वह निश्चित रूप से इस समय देश के सर्वश्रेष्ठ 200 मीटर धावक हैं। मैं अगले साल उसे यूरोप ले जाने की योजना बना रहा हूं ताकि यूरोपीय सर्किट में प्रतिस्पर्धा कर सके और उसे बेहतर विदेशी एथलीटों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने का कुछ और अनुभव मिल सके।’’
भाषा आनन्द पंत
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