छोटे शहरों से बड़े सपने पूरे करने आई है भारतीय हॉकी की ‘बेखौफ’ युवा ब्रिगेड

छोटे शहरों से बड़े सपने पूरे करने आई है भारतीय हॉकी की ‘बेखौफ’ युवा ब्रिगेड

छोटे शहरों से बड़े सपने पूरे करने आई है भारतीय हॉकी की ‘बेखौफ’ युवा ब्रिगेड
Modified Date: December 12, 2025 / 03:45 pm IST
Published Date: December 12, 2025 3:45 pm IST

(मोना पार्थसारथी)

चेन्नई, 12 दिसंबर (भाषा) किसी को हॉकी विरासत में मिली तो किसी के लिये गरीबी से निकलने का जरिया बनी तो किसी ने फुटबॉल छोड़कर हॉकी स्टिक थामी । खुद को साबित करने की चाहत ने इन्हें दबाव को झेलने और बड़े सपने देखने की हिम्मत भी दी ।

जूनियर विश्व कप में कांस्य जीतने के बाद इस निडर युवा ब्रिगेड को देखकर विश्वास हो गया है कि भारतीय हॉकी का भविष्य सुरक्षित हाथों में है । इनमें से हर किसी की अलग पृष्ठभूमि और हॉकी से जुड़़ने की अलग कहानी है लेकिन मकसद एक है.. भारत के लिये ओलंपिक पदक जीतना ।

 ⁠

हरियाणा के डाबरा गांव के रहने वाले 21 वर्ष के कप्तान रोहित को पिछले साल सीनियर टीम के खिलाफ अभ्यास मैच के दौरान गेंद लगने से मुंह का फ्रेक्चर हो गया था । करीब दो महीने तक खाने पीने में भी इतनी दिक्कत थी कि एकबारगी हॉकी छोड़ने का भी ख्याल मन में आया ।

रोहित ने भाषा से कहा ,‘‘ वो चार पांच महीने इतने कठिन थे कि खाना पीना भी मुश्किल हो रहा था। एक बार तो लगा कि फिर नहीं खेल सकूंगा लेकिन फिर जब हॉकी थामी तो लगा कि रूकना नहीं है और डरना नहीं है ।’’

उन्होंने कहा ,‘‘अब सीनियर टीम के लिये खेलना है , विश्व कप और ओलंपिक पदक जीतना है । हम उम्मीद करते हैं कि हमारी जीत से और लड़कों को हॉकी थामने की प्रेरणा मिलेगी ।’’

भारतीय हॉकी की नर्सरी कहे जाने वाले ओडिशा के सुंदरगढ से निकले 19 वर्ष के अनमोल इक्का ने जूनियर विश्व कप में कांस्य पदक के मुकाबले में अर्जेंटीना के खिलाफ असाधारण प्रदर्शन करके सभी का ध्यान खींचा ।

मात्र तीन हजार की आबादी वाले केसरमल गांव से आये अनमोल की मां का बचपन में निधन हो गया था और नाना नानी ने उन्हें पाला ।

बीरेंद्र लाकड़ा के प्रशंसक फुल बैक अनमोल ने भाषा को बताया ,‘‘ मेरे गांव में सब फुटबॉल खेलते थे लेकिन जब मैं नाना नानी के पास आ गया तो वहां हॉकी लोकप्रिय थी । मैने भी शौकिया हॉकी खेलना शुरू किया और फिर होस्टल में जाने के बाद मुझे लगा कि मेहनत करके देश के लिये खेल सकता हूं ।’’

सुंदरगढ से ही आये 21 वर्ष के मिडफील्डर रोशन कुजूर ने घास के मैदान से एस्ट्रो टर्फ का सफर काफी मेहनत से तय किया और अब अपने पसंदीदा खिलाड़ी मनप्रीत सिंह की तरह ओलंपिक पदक जीतना चाहते हैं ।

कुजूर ने कहा ,‘‘ मेरे गांव में जमीनी स्तर पर हॉकी के बहुत टूर्नामेंट होते हैं । एस्ट्रो टर्फ नहीं है , लेकिन हम घास पर खेलते थे । कभी सोचा नहीं था कि भारतीय टीम में खेलूंगा । बचपन से मनप्रीत सिंह को खेलते देखता था और उन्हें देखकर ही मिडफील्डर बना ।’’

पंजाब के पठानकोट में 2015 से चीमा अकादमी के जरिये शुरूआत करने वाले गोलकीपर प्रिंसदीप सिंह ने बेल्जियम के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में शूटआउट में शानदार प्रदर्शन करके अपने कोच पी आर श्रीजेश की जर्सी नंबर 16 को पहनना सार्थक कर दिया ।

फुटबॉल छोड़कर हॉकी के गोलकीपर बने क्रिस्टियानो रोनाल्डो के प्रशंसक लंबी कद काठी के प्रिंसदीप ने कहा ,‘‘ अर्जेंटीना के खिलाफ कांस्य पदक के मुकाबले में तीन क्वार्टर तक दो गोल से पिछड़ने के बावजूद मुझे यकीन था कि हम जीतेंगे । आखिरी क्वार्टर में हमने यही कहा कि एक दूसरे के लिये खेलना है क्योंकि यह हमारा आखिरी जूनियर टूर्नामेंट था ।’’

तनाव दूर करने के लिये सिद्धू मूसेवाला के गाने सुनने वाले प्रिंसदीप ने कहा ,‘‘दर्शकों ने इतना साथ दिया कि अब आगे और अच्छा खेलने की प्रेरणा मिली है । हम किसी टीम से डरते नहीं हैं और अपना दिन होने पर किसी को भी हरा सकते हैं ।’’

ओलंपियन आकाशदीप सिंह के भतीजे 20 वर्ष के मनमीत सिंह को हॉकी विरासत में मिली है और कोचों से पहले उन्हें घरवालों से भी खराब खेलने पर डांट मिलती है ।

तरण तारण के छोटे से गांव वेरोवाल से आये इस मिडफील्डर ने कहा ,‘‘ मेरे पिता फौज में थे और राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी खेले । चाचा आकाशदीप सिंह भी हॉकी खिलाड़ी हैं जबकि तायाजी पंजाब पुलिस के लिये खेले हैं । मैदान में गलती होने पर कोचों के अलावा घरवालों से भी डांट पड़ती है ।’’

पांच महीने से बेंगलुरू में टूर्नामेंट की तैयारी में जुटे मनमीत अब जल्दी से घर जाकर मां के हाथ का बना पसंदीदा खाना चाहते हैं ।

उन्होंने कहा ,‘‘ हॉकी इंडिया लीग से पहले ब्रेक में घर जाकर मम्मी के हाथ का सरसों का साग और मक्के की रोटी खाना है । बहुत दिन हो गए ।’’

पंजाब के घुमन कलां गांव के 20 वर्ष के फॉरवर्ड दिलराज शुरूआत में खेल को लेकर संजीदा नहीं थे लेकिन मां की कुर्बानियों ने उन्हें कुछ कर दिखाने की प्रेरणा दी ।

नौकरी पाने के लिये हॉकी थामने वाले इस खिलाड़ी ने कहा ,‘‘मेरे पापा ठीक नहीं रहते थे और मम्मी ने अपने गहने बेचकर पहली गोलकीपिंग किट दिलाई थी । कई बार टूर्नामेंटों में जाने के पैसे नहीं होते थे और अब भी मैदान पर उतरता हूं तो मां की कुर्बानियां याद आती है ।’’

उन्होंने कहा ,‘‘ अब तो तय कर दिया है कि हॉकी में पूरी ईमानदारी से खेलकर मां को अच्छे दिन दिखाने हैं और देश का नाम रोशन करना है।’’

चार साल पहले बेल्जियम के खिलाफ जूनियर विश्व कप में विजयी गोल करने वाले उत्तर प्रदेश के 21 वर्ष के ड्रैग फ्लिकर शारदानंद तिवारी ने एक बार फिर इस बार उसी टीम के खिलाफ नॉकआउट में अहम गोल किया तो पिछले दोनों बार की कसक मिट गई ।

उन्होंने कहा ,‘‘ बेल्जियम के खिलाफ 2021 में भुवनेश्वर में हम एक गोल से जीते थे और वह गोल मैने ही किया था ।हम तब चौथे स्थान पर रहे और पिछली बार 2023 में कुआलालम्पुर में टूर्नामेंट के लिये जाने से एक दिन पहले मैं बीमार हो गया था । तीसरी बार लकी रहा और खुश हूं कि क्वार्टर फाइनल में अहम गोल दागा ।’’

उन्होंने कहा ,‘‘मैं दबाव में नहीं आता क्योंकि मन में भगवान का नाम लेता रहता हूं और मुझे भरोसा रहता है कि मौका मिलने पर गोल कर ही दूंगा।’’

भाषा

मोना पंत

पंत


लेखक के बारे में